प्रेरणादायक कबीर साहेब के दोहे अर्थ सहित

प्रेरणादायक कबीर साहेब के दोहे अर्थ सहित

प्रेम-प्रिति का चालना, पहिरि कबीरा नाच । तन-मन तापर वारहुँ, जो कोइ बौलौ सांच ॥ सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप ॥

 
प्रेम-प्रिति का चालना, पहिरि कबीरा नाच ।
तन-मन तापर वारहुँ, जो कोइ बौलौ सांच ॥
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप ॥
खूब खांड है खीचड़ी, माहि ष्डयाँ टुक कून ।
देख पराई चूपड़ी, जी ललचावे कौन ॥
साईं सेती चोरियाँ, चोरा सेती गुझ ।
जाणैंगा रे जीवएगा, मार पड़ैगी तुझ ॥
तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाय ।
कबीर मूल निकंदिया, कौण हलाहल खाय ॥
जप-तप दीसैं थोथरा, तीरथ व्रत बेसास ।
सूवै सैंबल सेविया, यौ जग चल्या निरास ॥
जेती देखौ आत्म, तेता सालिगराम ।
राधू प्रतषि देव है, नहीं पाथ सूँ काम ॥
कबीर दुनिया देहुरै, सीत नवांवरग जाइ ।
हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताहि सौ ल्यो लाइ ॥
मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि ।
दसवां द्वारा देहुरा, तामै जोति पिछिरिग ॥
मेरे संगी दोइ जरग, एक वैष्णौ एक राम ।
वो है दाता मुक्ति का, वो सुमिरावै नाम ॥ 
प्रेम-प्रिति का चालना, पहिरि कबीरा नाच। तन-मन तापर वारहुँ, जो कोइ बौलौ सांच॥

अर्थ: कबीर प्रेम और प्रीति के मार्ग पर चलने की बात करते हैं। वे कहते हैं कि जो कोई सत्य की बात करता है, उस पर अपना तन-मन न्योछावर करना चाहिए।

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप॥

अर्थ: सत्य के समान कोई तपस्या नहीं है, और झूठ के समान कोई पाप नहीं। जिसके हृदय में सत्य है, उसमें स्वयं भगवान वास करते हैं।

खूब खांड है खीचड़ी, माहि ष्डयाँ टुक कून। देख पराई चूपड़ी, जी ललचावे कौन॥

अर्थ: खीचड़ी स्वादिष्ट होती है, जिसमें घी की कुछ बूंदें मिलाई जाती हैं। फिर भी, लोग दूसरों की चुपड़ी (रोटी) देखकर ललचाते हैं।

साईं सेती चोरियाँ, चोरा सेती गुझ। जाणैंगा रे जीवएगा, मार पड़ैगी तुझ॥

अर्थ: जो लोग भगवान के साथ धोखा करते हैं और चोरों के साथ मिलते हैं, उन्हें अंततः इसका दंड भुगतना पड़ेगा।

तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाय। कबीर मूल निकंदिया, कौण हलाहल खाय॥

अर्थ: तीर्थ स्थान सभी अस्थायी हैं, जैसे बेलड़ी (लता) होती है। कबीर कहते हैं कि मूल कारण को समझो, क्योंकि कौन विष (हलाहल) को पीना चाहता है?

जप-तप दीसैं थोथरा, तीरथ व्रत बेसास। सूवै सैंबल सेविया, यौ जग चल्या निरास॥

अर्थ: जप, तप, तीर्थ, और व्रत सभी बाहरी आडंबर हैं। कबीर कहते हैं कि यह संसार निराशा की ओर जा रहा है, जैसे तोता सैंबल (सेमल) के पेड़ की सेवा करता है, जो अंततः निरर्थक है।

कबीर दुनिया देहुरै, सीत नवांवरग जाइ। हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताहि सौ ल्यो लाइ॥

अर्थ: कबीर कहते हैं कि यह संसार एक मंदिर है, जिसमें भगवान निवास करते हैं। अपने हृदय में भगवान को बसाओ और उनसे प्रेम करो।

मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि। दसवां द्वारा देहुरा, तामै जोति पिछिरिग॥

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन को मथुरा, दिल को द्वारिका, और शरीर को काशी समझो। दसवें द्वार (मस्तिष्क) को मंदिर मानो, जिसमें ज्योति (प्रकाश) प्रज्वलित है।

मेरे संगी दोइ जरग, एक वैष्णौ एक राम। वो है दाता मुक्ति का, वो सुमिरावै नाम॥

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मेरे दो साथी हैं: एक वैष्णव (भक्त) और एक राम। एक मुक्ति का दाता है, और दूसरा नाम का स्मरण कराता है।
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