कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी

आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥
ऊंचे कुल का जनमिया करनी ऊंच न होय ।
सुबरन कलश सुरा भरा साधू निन्दत सोय 
 
कबीर ने सदैव स्वंय के विश्लेषण पर जोर दिया। स्वंय की कमियों को पहचानने के बाद हम शांत हो जाते है। पराये दोष और उपलब्धियों और दोष को देखकर हम कुढ़ते हैं जो मानसिक रुग्णता का सूचक यही। यही कारन हैं की आज कल "पीस ऑफ़ माइंड" जैसे कार्यकर्म चलाये जाते हैं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय


धर्म और समाज के बीच में आम आदमी पिसता जा रहा है। मनुष्य के जीवन का उद्देश्य गौण जो चुका है। वैश्विक स्तर पर देखें तो आज भी धर्म के नाम पर राष्ट्रों में संघर्ष होता रहता है। विलासिता के इस युग में ज्यादा से ज्यादा संसाधन जुटाने की फिराक में मानसिक शांति कहीं नजर नहीं आती है। ईश्वर की भक्ति ही सत्य का मार्ग है। कबीर की मानव के प्रति संवेदनशीलता इस दोहे में देखी जा सकती है।

चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय ।
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ॥

जहाँ एक और हर एक सुविधा और विलासिता प्राप्त करने की दौड़ मची है, सब आपाधापी छोड़कर कबीर का मानना है की संतोष ही सुखी जीवन की कुंजी है जो आज भी प्रासंगिक है। कबीर ने मानव जीवन का गहराई से अध्ययन किया और पाया की धन और माया के जाल में फंसकर व्यक्ति दुखी है।

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

कबीर माया डाकिनी, सब काहु को खाये
दांत उपारुन पापिनी, संनतो नियरे जाये।

ज्ञान प्राप्ति पर ही भ्रम की दिवार गिरती है। ज्ञान प्राप्ति के बाद ही यह बोध होता है की "माया " क्या है। माया के भ्रम की दिवार ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही गिरती है। माया से हेत छूटने के बाद ही राम से प्रीत लगती है।

आंधी आयी ज्ञान की, ढ़ाहि भरम की भीति
माया टाटी उर गयी, लागी राम सो प्रीति।

माया जुगाबै कौन गुन, अंत ना आबै काज
सो राम नाम जोगबहु, भये परमारथ साज। 
 
आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर। एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर॥
जो भी इस संसार में आया है, वह जाएगा, चाहे राजा हो, गरीब हो या फकीर। कोई सिंहासन पर बैठकर जाता है, तो कोई जंजीरों में बंधकर। अर्थात, मृत्यु सबको समान रूप से आती है, भले ही जीवन में उनका स्थान अलग हो।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
न तो माया (धन) मरती है, न मन की इच्छाएँ समाप्त होती हैं, जबकि शरीर बार-बार मरता है। आशा और तृष्णा कभी नहीं मरतीं, ऐसा कबीर दास कहते हैं। अर्थात, मनुष्य की इच्छाएँ और लालसाएँ अनंत हैं, जो शरीर के नष्ट होने पर भी समाप्त नहीं होतीं।

शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान। तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन॥
शील (सदाचार) सबसे बड़ा गुण है, जो सभी रत्नों की खान है। तीनों लोकों की संपदा शील में समाहित है। अर्थात, सदाचार ही सबसे बड़ी संपत्ति है, जो सभी भौतिक संपदाओं से श्रेष्ठ है।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
जो काम कल करना है, उसे आज करो, और जो आज करना है, उसे अभी करो। पल भर में प्रलय हो सकती है, फिर तुम कब करोगे? अर्थात, कार्यों को टालना नहीं चाहिए, क्योंकि भविष्य अनिश्चित है।

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय॥
रात सोने में बिता दी, दिन खाने में। अनमोल जीवन व्यर्थ चला गया, जैसे कौड़ी के बदले मूल्यवान वस्तु दे दी हो। अर्थात, समय का सदुपयोग न करने से जीवन व्यर्थ हो जाता है।

नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग। और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग॥
नींद मृत्यु की निशानी है, हे कबीर, उठो और जागो। अन्य सभी साधनों को छोड़कर, भगवान के नाम रूपी अमृत का सेवन करो। अर्थात, आलस्य छोड़कर ईश्वर के नाम का स्मरण करना चाहिए।

जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग। कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग॥
जहाँ अहंकार है, वहाँ आपदाएँ हैं; जहाँ संशय है, वहाँ रोग हैं। कबीर कहते हैं, यह कैसे मिटे, ये चारों धीरज के रोग हैं। अर्थात, अहंकार और संशय मनुष्य के लिए बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, जिन्हें धैर्य से ही दूर किया जा सकता है।

ऊंचे कुल का जनमिया करनी ऊंच न होय। सुबरन कलश सुरा भरा साधू निन्दत सोय॥
उच्च कुल में जन्म लेने से ही व्यक्ति महान नहीं होता, यदि उसके कर्म ऊंचे न हों। सोने के कलश में शराब भरी हो, तो साधु उसे निंदा ही करेगा। अर्थात, जन्म से नहीं, बल्कि कर्मों से व्यक्ति की महानता निर्धारित होती है।

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