कबीर साहेब के इन दोहों का अर्थ जानिये
कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार ।
वाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार ॥
कबीरा खालिक जागिया, और ना जागे कोय ।
जाके विषय विष भरा, दास बन्दगी होय ॥
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह ।
कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह ॥
खेत न छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह ।
आशा जीवन मरण की, मन में राखे नाँह ॥
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार ।
वाके अग्ङ लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ॥
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल ।
दाना तो दुश्मन भला, मूरख का क्या मेल ॥
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच ।
हारि चले सो साधु हैं, लागि चले तो नीच ॥
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।
दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय ॥
जा पल दरसन साधु का, ता पल की बलिहारी ।
राम नाम रसना बसे, लीजै जनम सुधारि ॥
कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार।
वाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि उन्होंने जाति-पाति की पुकार की, लेकिन चंदन की डाली पर चढ़ने से कोई लाभ नहीं हुआ। यदि मार्ग पर कांटे हों, तो चढ़ने से क्या लाभ?
कबीरा खालिक जागिया, और ना जागे कोय।
जाके विषय विष भरा, दास बन्दगी होय॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि परमात्मा का जागरण उन्होंने किया, और कोई नहीं कर सका। जिनके भीतर विषयों का विष भरा है, वे दासत्व की ओर अग्रसर होते हैं।
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह।
कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जो स्त्री अपने पति के साथ प्रेम नहीं करती, वह अपने बंधन को कैसे थाम सकती है? वे कहते हैं कि वे अपने गुरु के चरणों में प्रेम करते हैं।
खेत न छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह।
आशा जीवन मरण की, मन में राखे नाँह॥
अर्थ: सच्चे योद्धा अपने खेत नहीं छोड़ते, वे दल के बीच में संघर्ष करते हैं। जीवन-मरण की आशा को मन में न रखें।
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार।
वाके अग्ङ लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार॥
अर्थ: साधु चंदन के समान होते हैं, जो संसार के सर्पों के बीच रहते हुए भी अपने मन में विकार नहीं रखते।
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल।
दाना तो दुश्मन भला, मूरख का क्या मेल॥
अर्थ: घी का दर्शन अच्छा है, लेकिन तेल का खाना अच्छा नहीं है। दाना दुश्मन के लिए अच्छा है, मूर्ख के लिए क्या मेल?
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच।
हारि चले सो साधु हैं, लागि चले तो नीच॥
अर्थ: गाली से कलह, कष्ट और संघर्ष उत्पन्न होते हैं। जो हारते हैं, वे साधु होते हैं; जो लड़ते हैं, वे नीच होते हैं।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दुई पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय॥
अर्थ: चक्की की गति देखकर कबीर रोते हैं, क्योंकि दो पाटों के बीच आकर कुछ भी बचता नहीं।
जा पल दरसन साधु का, ता पल की बलिहारी।
राम नाम रसना बसे, लीजै जनम सुधारि॥
अर्थ: जिस पल साधु का दर्शन होता है, उस पल की बलिहारी है। राम का नाम जुबान में बस जाए, तो जीवन सुधर जाता है।
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