कबीर साहेब के दोहे अर्थ सहित जानिये

कबीर साहेब के दोहे अर्थ सहित जानिये


कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi कबीर दास के दोहे हिन्दी
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय ।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय ॥
कस्तूरी कुन्डल बसे, म्रग ढ़ूंढ़े बन माहिं ।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ॥
कबीरा सोता क्या करे, जागो जपो मुरार ।
एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार ॥
कागा काको घन हरे, कोयल काको देय ।
मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ॥
कबिरा सोई पीर है, जो जा नैं पर पीर ।
जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ॥
कबिरा मनहि गयन्द है, आकुंश दै-दै राखि ।
विष की बेली परि रहै, अम्रत को फल चाखि ॥
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा मीठ ।
काल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने दीठ ॥
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय ।
आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ॥
कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव ।
कहत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ॥
कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा ।
कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा ॥
कलि खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय ।
चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय ॥
केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह ।
अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ॥

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल। तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल।
जो व्यक्ति तुम्हें कांटे बोता है, उसे तुम फूल बोकर उत्तर दो। तुम्हारा फूल ही तुम्हारा अस्तित्व है, जबकि उसका कांटा उसके लिए तीर बन जाएगा।

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास।
प्रेम के पंखों वाला बगुला आकाश में उड़ता है, और हर तिनका अपने समान तिनके के पास पहुंचता है।

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ।
यदि सातों समुद्रों को स्याही और पृथ्वी को कागज बना लिया जाए, तब भी भगवान के गुणों का लेखन संभव नहीं है।

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय। आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय।
साधु व्यक्ति किसी वस्तु को अपने पास नहीं रखता; वह सब कुछ भगवान को समर्पित कर देता है। भगवान उसके आगे और पीछे रहते हैं, और जब वह मांगता है, तब ही उसे मिलता है।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर।

लंबे समय तक माला फेरने से मन का फेर नहीं बदलता। हाथ की माला को छोड़कर, मन की माला फेरो।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।
यदि तुम राम के नाम की लूट कर सकते हो, तो कर लो। बाद में पछताओगे, जब प्राण शरीर से निकल जाएंगे।

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप। जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप।

जहां दया है, वहां धर्म है; जहां लोभ है, वहां पाप है। जहां क्रोध है, वहां पाप है; जहां क्षमा है, वहां भगवान हैं।

करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय। बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय।
जो किया, वह क्यों किया? अब जो कर रहे हो, उसका पछतावा क्यों? बबूल का पेड़ बोने से आम कहां से मिलेगा?

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं। ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं।
कस्तूरी मृग के नाभि में बसी होती है, फिर भी वह उसे जंगल में खोजता है। इसी प्रकार, भगवान हर हृदय में हैं, पर लोग उन्हें नहीं देख पाते।

कबीरा सोता क्या करे, जागो जपो मुरार। एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार।
कबीर कहते हैं, सोने से क्या लाभ? जागो और भगवान का नाम जपो। एक दिन सोने के लिए लम्बे पैर पसारने ही हैं।

कागा काको घन हरे, कोयल काको देय। मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय।
काग को हरा कौन देता है? कोयल को क्या मिलता है? मीठे शब्द बोलकर, दुनिया को अपना बना लो।

कबिरा सोई पीर है, जो जा नैं पर पीर। जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर।
सच्चा पीर वही है, जो दूसरों की पीड़ा समझे। जो दूसरों की पीड़ा नहीं समझता, वह काफिर है।

कबिरा मनहि गयन्द है, आकुंश दै-दै राखि। विष की बेली परि रहै, अम्रत को फल चाखि।
कबीर कहते हैं, मन में गंदगी है, उसे निकालने के लिए आंसू बहाओ। विष की बेल पर अमृत का फल नहीं उगता।

कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा मीठ। काल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने दीठ।

कबीर कहते हैं, यह संसार कुछ नहीं है; एक क्षण में खारा और मीठा दोनों है। कल जो बैठा था, आज वह भस्म हो गया।

कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय।

कबीर कहते हैं, स्वयं ठगना ठीक है, पर दूसरों को ठगना नहीं चाहिए। स्वयं ठगने से सुख मिलता है, और दूसरों को ठगने से दुख होता है।

कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव। कहत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय।
कबीर कहते हैं, कथा और कीर्तन ही संसार सागर की नौका है। यही एकमात्र उपाय है।

कबीर यह तन जात है, सके तो ठौर लगा। कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा।
कबीर कहते हैं, यह शरीर नश्वर है; इसे कहीं ठिकाना नहीं है। साधु की सेवा करो और भगवान के गुण गाओ।
 

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