कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

 
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत । प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ॥

ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत ।
प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ॥
तीर तुपक से जो लड़े, सो तो शूर न होय ।
माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय ॥
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय ।
सहजै सब विधि पाइये, जो मन जोगी होय ॥
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर ।
तब लग जीव जग कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर ॥
दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥
दस द्वारे का पींजरा, तामें पंछी मौन ।
रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय ।
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर भी नाम बीन, मुक्ति कैसे होय ॥
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय ॥
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ॥
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार ।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत।
प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत॥

अर्थ: वे दिन व्यर्थ चले गए जब संतों की संगति नहीं मिली। प्रेम के बिना जीवन पशु के समान है, और भक्ति के बिना भगवान के दर्शन संभव नहीं हैं।

तीर तुपक से जो लड़े, सो तो शूर न होय।
माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय॥

अर्थ: जो तीर और ढाल से लड़ते हैं, वे सच्चे वीर नहीं होते। जो माया को त्यागकर भक्ति करते हैं, वही सच्चे सूर (वीर) कहलाते हैं।

तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय।
सहजै सब विधि पाइये, जो मन जोगी होय॥

अर्थ: सभी लोग शरीर से योग करते हैं, लेकिन मन से योगी बहुत कम होते हैं। जो मन से योगी होते हैं, वे सहज ही सभी विधियों को प्राप्त कर लेते हैं।

तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर।
तब लग जीव जग कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर॥

अर्थ: तारे तभी चमकते हैं जब सूरज अस्त होता है। इसी प्रकार, जब तक ज्ञान पूर्ण नहीं होता, तब तक जीव कर्मों के अधीन रहते हैं।

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार॥

अर्थ: मानव जन्म दुर्लभ है, यह देह बार-बार नहीं मिलती। जैसे पेड़ की पत्तियाँ झड़ जाती हैं और फिर नहीं लगतीं, वैसे ही यह शरीर एक बार नष्ट हो जाने पर फिर नहीं मिलता।

दस द्वारे का पींजरा, तामें पंछी मौन।
रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन॥

अर्थ: दस द्वारों वाला यह शरीर एक पिंजरे के समान है, जिसमें आत्मा बंधी हुई है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि जो चला गया, वह कहाँ गया।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सीचें सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥

अर्थ: धैर्यपूर्वक कार्य करो, क्योंकि धीरे-धीरे ही सब कुछ होता है। जैसे माली सौ घड़े पानी सीचता है, लेकिन ऋतु आने पर ही फल मिलता है।

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