पतंजली संजीवनीवटी के फायदे Patanjali Sanjivani Vati Ke Fayde Hindi Benefits of Patanjali Sanjivani Vati
पतंजली संजीवनी वटी का उपयोग हैजा, ज्वर, जीर्ण ज्वर, एलर्जी , फ्लू, सर्दी, जुकाम, उदर कृमि आदि विकारों के निदान के लिए किया जाता है। इस ओषधि का उपयोग कई अन्य ओषधियों के योग से विभिन्न विकारों के निदान के लिए किया जाता है। संजीवनी वटी विष के प्रभावों को भी दूर करने में उपयोगी होती है। शरीर में जमा विषाक्त प्रदार्थों को दूर करने के लिए यह एक उत्तम ओषधि है। संजीवनी वटी (divya sanjivani vati) क्या है, और संजीवनी वटी का उपयोग किस काम में किया जाता है? आइये इस लेख में हम संजीवनी वटी का प्रयोग, लाभ / फायदे के विषय में विस्तार से जान लेते हैं.
संजीवनी वटी क्या है What is Sanjivani Vati in Hindi
संजीवनी वटी एक प्रमुख विषरोधी (Anti toxic) आयुर्वेदिक औषधि है। संजीवनी वटी सांप के काटने पर विष को खत्म करने में उपयोगी है और इसके अतिरिक्त संजीवनी वटी कीटाणु एवं बुखार को दूर करने में भी गुणकारी आयुर्वेदिक औशधि है।इन जड़ी-बूटियों के गुणों के कारण संजीवनी वटी के निम्नलिखित फायदे हैं:-
विषरोधी गुण: संजीवनी वटी सांप के काटने पर विष को खत्म करने में मदद करती है।
कीटाणुनाशक गुण: संजीवनी वटी शरीर से कीटाणुओं को खत्म करने में मदद करती है।
बुखाररोधी गुण: संजीवनी वटी बुखार को कम करने में मदद करती है।
अपचनाशक गुण: संजीवनी वटी अपच से पैदा हुए दोष को खत्म करती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला गुण: संजीवनी वटी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
संजीवनी वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो विषरोधी, एंटीबायोटिक और रोग प्रतिरोधक गुणों से भरपूर होती है। यह सांप के काटने, कीट के काटने, बुखार, सर्दी, खांसी, गठिया, और अन्य कई तरह की बीमारियों के इलाज में उपयोगी होती है। संजीवनी वटी के कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं हैं। हालांकि, कुछ लोगों को इसका सेवन करने से हल्का दस्त या पेट खराब हो सकता है।
पतंजली संजीवनी वटी के फायदे Patanali Sanjivati Vati Ke Fayade Benefits of Patanjali Sanjivani Vati
संजीवनी वटी एक आयुर्वेदिक दवा है जो टेबलेट फॉर्म में आती है। इसके निर्माता पतंजलि आयुर्वेदा है, पतंजलि के आलावा डाबर और अन्य कंपनियों की संजीवनी वटी भी बाजार में उपयोग हेतु उपलब्ध है। संजीवनी वटी के घटक के सबंध में उल्लेखनीय है की पतंजलि संजीवनी वटी में गिलोय का उपयोग भी किया जाता है।मूत्र रोग में संजीवनी वटी का इस्तेमाल लाभदायक Sanjivani Vati Benefits for Urinal Disorder in Hindi
संजीवनी वटी मूत्र रोग के लिए एक प्रभावी आयुर्वेदिक औषधि है। यह मूत्राशय और मूत्र मार्ग को स्वस्थ रखने में मदद करती है। संजीवनी वटी में वत्सनाभ (बच्छनाग) की प्रधानता होने के कारण यह कुछ गरम, और पसीना तथा पेशाब को बढ़ाने का काम करती है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी मूत्र रोग में फायदेमंद होती है।पेशाब कम आने की समस्या में संजीवनी वटी का उपयोग करने से पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है। यह मूत्राशय और मूत्र मार्ग को साफ करने में भी मदद करती है। संजीवनी वटी की खुराक आमतौर पर दो गोलियां दिन में दो बार होती है। हालांकि, किसी भी दवा का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर या आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श करना हमेशा सबसे अच्छा होता है।
बुखार दूर करने में संजीवनी वटी के उपयोग / लाभ Sanjeevani Vati Uses in Fighting with Fever in Hindi
संजीवनी वटी में वत्सनाभ (बच्छनाग) की प्रधानता होने के कारण यह कुछ गरम, और पसीना तथा पेशाब को बढ़ाने का काम करती है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी बुखार में फायदेमंद होती है।मौसमी बुखार या पेट की गड़बड़ी के कारण आने वाले बुखार को ठीक करने में संजीवनी वटी मदद करती है। लगातार हल्का बुखार या मोतीझरा रोग (टॉयफॉयड) में इसकी एक-एक गोली लौंग के जल से साथ लेने से बुखार जल्दी उतर जाता है।
इसके अलावा, संजीवनी वटी के साथ सोंठ, अजवायन तथा सेन्धा नमक का प्रयोग करना भी लाभदायक होता है। सोंठ, अजवायन तथा सेन्धा नमक सभी ही बुखार को कम करने में मदद करते हैं। इनका प्रयोग करने से विकार नष्ट होते हैं और बुखार ठीक समय पर उतर जाता है।
पाचनतंत्र विकार /अपच में लाभकारी Benefits of Sanjeevani Vati for Indigestion in Hindi
संजीवनी वटी में वत्सनाभ (बच्छनाग) की प्रधानता होने के कारण यह कुछ गरम, और पसीना तथा पेशाब को बढ़ाने का काम करती है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी अपच में फायदेमंद होती है।अत्यधिक खाने से या बिना भूख के भोजन करने से, या दूषित पदार्थ को खाने से पाचन क्रिया में खराबी होने पर अपच हो जाती है। जिसके कारण पेट में दर्द, पेट में भारीपन, पतला व अनपचा दस्त, कम मात्रा में मूत्र आना तथा वमन (उल्टी) होना आदि हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में संजीवनी वटी का सेवन करने से पाचन क्रिया ठीक होने लगती है और इन लक्षणों से राहत मिलती है।
पाचन कमजोर होने पर पेट में आम यानी अनपचा भोजन जमा हो जाता है, इससे बुखार भी हो जाता है। संजीवनी वटी इस स्थिति में बहुत लाभकारी होती है। यह पाचक रसों को उत्पन्न कर अपच को ठीक करती है, साथ ही पसीना की कमी को दूर करती है। यह आमदोष को भी ठीक करती है, और आमदोष से होने वाले बुखार, हैजा, आदि रोगों को भी नष्ट करती है। यह पसीना एवं मूत्र द्वारा अन्दर के मलदोष भी बाहर कर देती है।
सांप के काटने पर संजीवनी वटी के लाभ Sanjivani Vati is Beneficial for Snake Bite in Hindi
संजीवनी वटी सांप के काटने पर विष को खत्म करने में मदद करती है। यह एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका उपयोग सदियों से सांप के काटने के इलाज के लिए किया जाता रहा है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी सांप के विष को खत्म करने में मदद करती है। सांप के काटने पर, तुरंत ही संजीवनी वटी की दो गोलियों को चूसकर निगल लें। इसके बाद, 10 से 15 मिनट के अंतराल पर एक-एक गोली लें। संजीवनी वटी के साथ, त्रिफला चूर्ण और शंखपुष्पी चूर्ण का भी सेवन किया जा सकता है।संजीवनी वटी की खुराक Doses of Sanjivani Vati in Hindi
संजीवनी वटी की खुराक आयु, लिंग, स्वास्थ्य की स्थिति और अन्य कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। कृपया संजीवनी वटी का सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें। संजीवनी वटी का उपयोग इतनी मात्रा में करनी चाहिएः-125 मिली ग्राम,
अनुपान- अदरक का रस, हल्का गर्म पानी
संजीवनी वटी के घटक Composition of Sanjivani Vati in Hindi
- विडंग (Embelia ribes Burm.) - फल - 1 भाग
- नागर (शुण्ठी) (Zingiber officinale Rosc.) - कन्द - 1 भाग
- कृष्णा (पिप्पली) (Pipper longum Linn.) - फल - 1 भाग
- पथ्या (हरीतकी) (Terminalia chebula Retz.) - फली - 1 भाग
- आमला (Emblica officinalis Gaertn.) - फला - 1 भाग
- बिभीतक (Terminalia bellirica Roxb.) - फला - 1 भाग
- वच (Acorus caloamus Linn.) - कन्द - 1 भाग
- गुडुची (Tinospora cordifolia (Willd.)) - तना - 1 भाग
- भल्लातक शुद्ध (Semecarpus anacardium Linn.) - फल - 1 भाग
- विष (वत्सनाभ) (Aconitum ferrox Wallex Seringe.) - मूलकन्द - 1 भाग
- गोमूत्र - मर्दनार्थ (आवश्यक मात्रा केवल विशेष उपयोग के लिए होती है)
कृपया ध्यान दें कि इसका उपयोग केवल आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह और पर्याप्त जानकारी के बाद किया जाना चाहिए, खासकर यदि आपके स्वास्थ्य समस्या गंभीर है या आपके द्वारा लिए जाने वाले दवाओं या उपचारों के साथ इसका प्रयोग करना हो।
पतंजली संजीवनी वटी के घटक Patanjali Sanjivani Vati Ke Ghatak Inredients of Patanjali Sanjivani Vati
Vati)संजीवनी वटी के लाभ जानने से पहले इसके घटक के बारे में जानना आवश्यक है जिससे यह ज्ञात हो सके की इसमें किन जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है और घटक हर्ब की क्या विशेषताएं होती हैं। सामान्यतया इसमें निम्न जड़ी बूटी और हर्ब का प्रयोग होता है लेकिन ये निर्माता के अनुसार बदल भी सकते हैं।
विडंग Embelia Ribes (पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
विडंग Embelia Ribes (पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
विडंग, बिडंग या बाय बिडंग एक औषधीय पेड़ होता है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में प्रधानता से किया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Embelia Ribes होता है। यह हर्ब पुरे भारत में पायी जाती है। मुख्य रूप से विडंग पर्वतीय इलाकों और दक्षिण भारत के नम इलाकों में इसके पेड़ पाए जाते हैं। विडंग का मुख्य गुण धर्म कृमि नाशक होता है।विडंग उदर कृमि, अग्निमंध्य, आद्मान, गृहणी , शूल एवं प्रमेह जैसे रोगों के उपचार के लिए उपयोग में ली जाती है। विडंग वातहर, ऑक्सीकरणरोधी, शुक्राणुजनन-रोधी, जीवाणु-निरोधक, कैंसर निरोधक गतिविधि और अन्य स्थितियों के उपचार के लिए निर्देशित किया जाता है। इसका रस तिक्त और कटु होता है और इसकी तासीर उष्ण होती है।
गिलोय (पतंजली संजीवनीवटी के घटक ) गिलोय घनवटी के बारे में जानने से पहले यह जानना आवशयक है की गिलोय क्या होती है, इसके क्या गुण होते हैं, इसके बारे में जाना जाय। गिलोय एक ओषधीय बेल होती है जो असंख्य गुणों से भरी हुयी होती है। आयुर्वेद में गिलोय को अमृता कहा गया है। गिलोय को अंग्रेजी में टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया कहा जाता है जो की इसका वानस्पतिक नाम है। आयुर्वेद में इसके गुणों को पहचान कर इसके बारे में विस्तार से बताया गया है और आयुर्वेद में इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि नामो से जाना जाता है। यह बेल पहाड़ों, खेतों के मेड़ों पर और पेड़ों के आस पास पायी जाती है और जिस पेड़ के सहारे ये ऊपर चढ़ती है उसके गुणों का समावेश स्वंय में कर लेती है। इसलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को "नीम गिलोय" कहा जाता है। नीम के सारे गुण अपने में समावेश कर लेती है इसीलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को श्रेष्ठ माना जाता है। आचार्य चरक ने इसके गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। आयुर्वेद में इसका वर्णन प्राप्त होता है। इसका रस कड़वा होता है। रक्त वर्धर्क इसका गुण है। यह ज्वर नाशक है।
इसके आलावा इस वटी में शुंठी, हरीतकी, आमलकी का मिश्रण होता है । संजीवनी वटी में इन सबकी मात्रा लगभग समान रखी जाती है। इसमें गो मूत्र की भावना भी दी जाती है। इसके घटक निर्माता के अनुसार बदल सकते हैं। इसके निर्माता मुख्यतया वैद्यनाथ, झंडू और पतंजलि आयुर्वेदा हैं।
पिप्पली (पतंजली संजीवनीवटी के फायदे पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
पीपली / पीपलामूल या बड़ी पेपर को Piper longum(पाइपर लोंगम)के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसे कई नाम दिए गए हैं यथा पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा आदि। बारिस की ऋतू में इसके पुष्प लगते हैं और शरद ऋतु में इसके फल लगते हैं। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में इसको अनेकों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। अनिंद्रा, चोट दर्द, दांत दर्द, मोटापा कम करने के लिए, पेट की समस्याओं के लिए इसका उपयोग होता है।पिप्पली की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए।विभीतक (पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
इसे सामान्य बोल चाल की भाषा में बहेड़ा या भरड़ भी कहा जाता है। इसका उपयोग त्रिफला चूर्ण में भी किया जाता है। विभीतक या बहेड़ा वात रोगों में लाभदायक होता है। पेट से सबंधित बिमारियों में भी बहेड़ा का उपयोग किया जाता है। बहेड़ा पित्त सबंधी रोगों को भी दूर करता हैं। बहेड़ा को कई रोगों के उपचार हेतु उपयोग में लिया जाता है यथा सर दर्द, बवासीर, आँखों के रोग, मस्तिष्क सबंधी विकार , रक्त विकार, बालों के रोग के लिए उपयोग में लिया जाता है। आयुर्वेदिक के अनुसार बहेड़ा कषैला, गुण में हल्का, खुश्क, प्रकृति में गर्म, दर्द को नष्ट करने वाला तथा आंखों के लिए गुणकारी होता है।वचा या वच (पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
वच का वर्णन और प्रयोग चरक और सुश्रुता के समय से ही किया जा रहा है। इस अंग्रेजी में कैलामस (Acorus Calamus) कहा जाता है। वच का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसको मुख्यतया त्वचा विकारों को दूर करने के लिए, मानसिक विकारों के इलाज करने, तनाव दूर ,याददास्त बढ़ाने, तनाव को दूर करने में, घाव के उपचार, और पेट सबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है।भलातक : भलातक (पतंजली संजीवनीवटी के घटक )
बिलवा, भिलावा गुणों से भरपूर वृक्ष का फल होता है। इसे संस्कृत में अग्निमुख और अंग्रेजी में Semecarpus Anacardium के नाम से जाना जाता है। इसका रस कटु, तिक्त और कषाय होता है | गुणों में यह लघु, स्निग्ध और तीक्षण होता है | भिलावा का वीर्य उष्ण होता है। यह मूत्रजनक और और दौर्बल्य नाशक है। इसका उपयोग शोधन के उपरांत किया जाता है। यह कफ और वात नाशक होता है। कृमि नाशक, शारीरिक दुर्बलता दूर करता है , रसायन और बाजीकरण में उपयोगी, इससे शुक्राणु की मात्रा बढ़ती है , पाचन कार्य को सुधारता है।गिलोय (पतंजली संजीवनीवटी के घटक ) गिलोय घनवटी के बारे में जानने से पहले यह जानना आवशयक है की गिलोय क्या होती है, इसके क्या गुण होते हैं, इसके बारे में जाना जाय। गिलोय एक ओषधीय बेल होती है जो असंख्य गुणों से भरी हुयी होती है। आयुर्वेद में गिलोय को अमृता कहा गया है। गिलोय को अंग्रेजी में टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया कहा जाता है जो की इसका वानस्पतिक नाम है। आयुर्वेद में इसके गुणों को पहचान कर इसके बारे में विस्तार से बताया गया है और आयुर्वेद में इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि नामो से जाना जाता है। यह बेल पहाड़ों, खेतों के मेड़ों पर और पेड़ों के आस पास पायी जाती है और जिस पेड़ के सहारे ये ऊपर चढ़ती है उसके गुणों का समावेश स्वंय में कर लेती है। इसलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को "नीम गिलोय" कहा जाता है। नीम के सारे गुण अपने में समावेश कर लेती है इसीलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को श्रेष्ठ माना जाता है। आचार्य चरक ने इसके गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। आयुर्वेद में इसका वर्णन प्राप्त होता है। इसका रस कड़वा होता है। रक्त वर्धर्क इसका गुण है। यह ज्वर नाशक है।
इसके आलावा इस वटी में शुंठी, हरीतकी, आमलकी का मिश्रण होता है । संजीवनी वटी में इन सबकी मात्रा लगभग समान रखी जाती है। इसमें गो मूत्र की भावना भी दी जाती है। इसके घटक निर्माता के अनुसार बदल सकते हैं। इसके निर्माता मुख्यतया वैद्यनाथ, झंडू और पतंजलि आयुर्वेदा हैं।
संजीवनी वटी कैसे लें, संजीवनी वटी की खुराक (Doses of Sanjivani Vati in Hindi)
इसकी खुराक सामान्यतया १ वटी रोज ली जाती है लेकिन इसका निर्णय चिकित्सक की सलाह उपरांत ही लें क्योंकि चिकित्सक आपके शरीर की प्रकृति के मुताबिक आपको सही मात्रा में खुराक की सलाह देता है, इसलिए आप वैद्य की सलाह अवश्य लेवें।
संजीवनी वटी के फायदे Benefits of Sanjeevani Vati in Hindi
- संजीवनी वटी के कई लाभ होते हैं लेकिन इसका प्रयोग मुख्यतया हैजा, ज्वर, जीर्ण ज्वर, एलर्जी , फ्लू, सर्दी, जुकाम, उदर कृमि (पेट के कीड़े), पेट दर्द एवं एंटीबायोटिक्स के रूप में उपयोग की जाती है | अजीर्ण, अपच एवं संक्रमण में भी इस संजीवनी दवा का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है। प्रमुख रूप से संजीवनी वटी का उपयोग निम्न विकारों में किया जाता है।
- मूत्र विकार मूत्र का कम आना/रुक रुक कर आना विकारों में संजीवनी वटी का उपयोग होता है। यह ओषधि मूत्र वर्धक है।
- जीर्ण ज्वर के अतिरिक्त संजीवनीवटी का उपयोग मौसमी बुखार को दूर करने के लिए भी किया जाता है।
- पाचन तंत्र के विकार यथा भूख की कमी, अपच, कब्ज आदि विकारों को दूर करने में भी संजीवनी वटी लाभदाई होती है।
- संजीवनी वटी आम दोष को दूर कर उलटी आने को रोकती है।
- संजीवनी वटी का उपयोग पसीने के विकार यथा पसीना कम आने में काम में ली जाती है और इसके सेवन से पसीना आना शुरू हो जाता है।
- संजीवनी वटी विष के प्रभावों को दूर करने में उपयोगी होती है, यथा साँप बिच्छू के काटने पर इसका उपयोग होता है।
- त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करने के लिए यह एक उत्तम ओषधि है।
पतंजली संजीवनी वटी के लाभ Patanjali Sanjivati Vati Benefits Hindi
संजीवनी वटी के निम्न लाभ होते हैं।
पतंजलि संजीवनी वटी के सबंध में पतंजलि आयुर्वेदा का कथन -
पतंजलि संजीवनी वटी के घटक : घटक द्रव्य संजीवनी वटी के घटक (Composition of Sanjivani Vati in Hindi)
शारंगधर संहिता में संजीवनी वटी का वर्णन निम्न प्रकार से प्राप्त होता है।
पतंजलि संजीवनी वटी के निम्न लाभ होते हैं :-
- पेट से सबंधित विकार यथा अपच, गैस आफरा आदि में संजीवनी वटी का उपयोग किया जाता है।
- पाचन तंत्र को सुधरता है और अपच सबंधी विकारों को दूर करती है।
- ज्वर में इसका उपयोग किया जाता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए।
- त्रिदोष को नियन्त्रिक करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- पेट के कृमि को समाप्त करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- सर्प दंश के प्रभाव को समाप्त करने के लिए।
- उलटी दस्त को बंद करने के लिए।
- बुखार के उपचार में।
- मूत्र रोग के इलाज में।
- शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालने के लिए।
- उदर शूल के इलाज के लिए।
- हैजा और खांसी के इलाज के लिए।
- कफ जनित रोगों के इलाज के लिए।
- सन्निपात बुखार के इलाज के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- टायफाइड और विषूचिका रोगों के इलाज के लिए इसका उपयोग होता है।
- यह आम वात नाशक है।
- यह पित्त स्राव बढ़ाता है जिससे पाचन तंत्र सुधरता है।
Sanjeevani vati is beneficial in chronic fever, cough, cold, respiratory tract infections and other viral infections.
दिव्य संजीवनी वटी कहाँ से खरीदें : यदि आप संजीवनी वटी खरीदना चाहते हैं या फिर इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो पतंजलि की अधिकृत वेब साइट / ऑफिसियल वेब साइट पर विजिट करें, जिसका लिंक निचे दिया गया है। पतंजली संजीवनीवटी के फायदे Patanjali Sanjivani Vati Ke Fayde Hindi Benefits of Patanjali Sanjivani Vati
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पतंजलि संजीवनी वटी के घटक : घटक द्रव्य संजीवनी वटी के घटक (Composition of Sanjivani Vati in Hindi)
- विडंग (Embelia ribes Burm.) संजीवनी वटी में विडंग के फल का उपयोग किया जाता है।
- नागर (शुण्ठी) (Zingiber officinale Rosc.) संजीवनी वटी में नागर की जड़ का उपयोग किया जाता है।कृष्णा पिप्पली (Pipper longum Linn.) संजीवनी वटी में पिप्पली के फल का उपयोग किया जाता है।
- हरीतकी (Terminalia chebula Retz.) संजीवनी वटी में हरीतकी के फल का उपयोग किया जाता है।
- आमला (Emblica officinalis Gaertn.) संजीवनी वटी में आमला के फल का उपयोग किया जाता है।
- बिभीतक (Terminalia bellirica Roxb.) संजीवनी वटी में विभीतक के फल का उपयोग किया जाता है।
- वच (Acorus caloamus Linn.) संजीवनी वटी में वच की जड़ का उपयोग किया जाता है।
- गुडुची (Tinospora cordifolia (willd) संजीवनी वटी में गडूची के तने का उपयोग किया जाता है।
- भल्लातक शुद्ध (Semecarpus anacardium Linn.) संजीवनी वटी में भल्लातक के फल का उपयोग किया जाता है।
- विष/वत्सनाभ)(Aconitum ferrox wallex Seringe.) संजीवनी वटी में विष की जड़ का उपयोग किया जाता है।
- गोमूत्र-संजीवनी वटी में गोमूत्र का उपयोग मर्दनार्थ किया जाता है।
शारंगधर संहिता में संजीवनी वटी का वर्णन निम्न प्रकार से प्राप्त होता है।
विडङ्गं नागरं कृष्णा पथ्यामलबिभीतकम्।।
वचा गुडूची भल्लातं सविषं चात्र योजयेत्।
एतानि समभागानि गोमूत्रेणैव पेषयेद्।।
गुञ्जाभा गुटिका कार्या दद्यादार्द्रकजै रसै।
एकामजीर्णगुल्मेषु द्वे विषूच्यां प्रदापयेत्।।
तिस्रश्च सर्पदष्टे तु चतस्र सान्निपातिके।
वटी सञ्जीवनी नाम्ना सञ्जीवयति मानवम्।।
Patanjali Sanjivani Vati is an Ayurvedic formulation made by Patanjali Ayurved Limited, founded by Baba Ramdev. It is a natural supplement that is believed to boost the immune system and improve overall health.
The ingredients of Patanjali Sanjivani Vati include a variety of natural herbs and minerals, including:
The ingredients of Patanjali Sanjivani Vati include a variety of natural herbs and minerals, including:
- Guduchi (Tinospora cordifolia) - known for its immune-boosting properties
- Shankhapushpi (Convolvulus pluricaulis) - known for its memory-enhancing and brain-boosting properties
- Amla (Emblica officinalis) - a rich source of vitamin C and antioxidants that support overall health
- Giloy (Tinospora cordifolia) - known for its immune-boosting and anti-inflammatory properties
- Shuddha guggulu (Commiphora mukul) - known for its cholesterol-lowering and anti-inflammatory properties
- Shilajit (Asphaltum) - a mineral-rich substance that is believed to have anti-aging and rejuvenating properties Together, these ingredients are believed to have a wide range of health benefits, including boosting the immune system, improving digestion, enhancing cognitive function, promoting healthy aging, and reducing inflammation.
- Boosts the immune system
- Improves digestion
- Enhances cognitive function and memory
- Promotes healthy aging
- Reduces inflammation
- Helps in the treatment of fever and infections
- Improves overall health and well-being
- Helps to reduce stress and anxiety
- May help in the management of diabetes and high cholesterol levels
- May improve the health of skin, hair, and nails
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Ayurvedic Remedies for Asthma | Divya Swasari
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Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from
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presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple
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