पतंजलि उदरामृत वटी फायदे उपयोग घटक Patanjali Udramrit Vati Benefits Hindi

पतंजलि उदरामृत वटी फायदे उपयोग घटक Patanjali Udramrit Vati Benefits Hindi

पतंजलि उदरामृत वटी क्या है Patanjali Udramrit Vati Hindi

उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक ओषधि है जो की टेबलेट फॉर्म में होती है। वटी से अभिप्राय गोली से है। उदरामृत वटी पाचन को सुधारने, क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए गुणकारी ओषधि है। उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो कई औषधीय पौधों और खनिजों से बनी है। यह पेट दर्द, अपच, कब्ज, दस्त, पीलिया, और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज में मदद करती है। यह रक्त की कमी, श्वसन संबंधी समस्याओं, और अन्य बीमारियों के लिए भी उपयोगी है।

वर्तमान जीवन शैली भी कुछ ऐसी है की हम हमारे शरीर को स्वंय ही बिगाड़ने पर तुले हैं। शरीरिक मेहनत का अभाव कब्ज का एक प्रमुख कारण है। हम ज्यादा से ज्यादा बैठकर काम करने लगे हैं, शारीरिक मेहनत और पैदल चलने के कार्य सीमित होते जा रहे हैं और प्रकृति से दूर होते चले जा रहे हैं। आवश्यक है की हम स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं और मेहनत को अपने कामों में शामिल करें। यह शरीर रूपी मशीन जितना काम करेगी, एक्टिव रहेगी उतना ही रोगों से दूर रहेगी। अपने भोजन में हरी सब्जियों को शामिल करें, योग करें, कसरत करें, ज्यादा तले भुने खाने से परहेज करें तो आप पाएंगे की काफी हद तक आप कब्ज जैसे विकार से दूर हो जाएंगे। यदि इस वटी के मुख्य लाभ की बात हो तो यह पेट दर्द, अपच, कब्ज, दस्त, पीलिया, और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज में मदद करती है। इसके साथ ही रक्त की कमी, श्वसन संबंधी समस्याओं, और अन्य बीमारियों के लिए भी उपयोगी है।
 
पतंजलि उदरामृत वटी फायदे उपयोग घटक Patanjali Udramrit Vati Benefits Hindi

पतंजलि उदरामृत वटी के घटक Ingredients of Patanjali Udramrit Vati Hindi

इसमें प्रधान रूप से पुनर्नवा,भूमि आंवला, मोकय, चित्रक, आंवला, बहेड़ा, हरीतिका, कुटकी, आमबीज, निशोथ, बिल्व, अजवायन, अतीस कड़वा, घृतकुमारी, मुक्ताशुक्ति भस्म, कसीस भस्म, लौह भस्म, मंडूर भस्म आदि होते हैं। विभिन्न कंपनियों के द्वारा इसका निर्माण किया जाता है और उनके अनुसार इसके घटक बदल भी सकते हैं। इनमे से ज्यादातर हर्ब और तत्वों का प्रधान गुण लिवर को मजबूत बनाना और पाचन तंत्र को सुचारु करना होता है। यहाँ हम उदरामृत वटी में उपयोग आने वाली कुछ घटकों के बारे में जानेंगे। इसके सभी घटक आयुर्वेदिक हर्ब हैं जिनका उपयोग बरसों से होता आया है। 

उदरामृत वटी में मौजूद घटक Divya Udramrit Vati Ingredients
 
भूमि आमला: भूमि आमला का उपयोग पेट के रोगों और पाचन संबंधित समस्याओं के इलाज में किया जा सकता है.
  • पुनर्नवा: पुनर्नवा पेट की सूजन और यूरिन इन्फेक्शन के इलाज में प्रयोग किया जाता है.
  • मकोय: मकोय उपायुर्वेदिक औषधि होती है जिसका मुख्य उपयोग गैस, एसिडिटी और पाचन संबंधित समस्याओं के इलाज में किया जाता है.
  • चित्रक: चित्रक पेट संबंधित समस्याओं के इलाज में उपयोगी होता है.
  • आमला: आमला एक शक्तिशाली और पुष्टिकारी औषधि है जो पाचन, इम्यूनिटी और विटामिन सी के स्रोत के रूप में प्रयोग होती है.
  • हरड़ छोटी, बहेड़ा: इन जड़ी-बूटियों का पाचन में मदद करने के लिए उपयोग किया जा सकता है.
  • सौंफ: सौंफ को पाचन संबंधित समस्याओं के इलाज में प्रयोग किया जाता है और यह आंत्रिक गैस को कम करने में मदद कर सकता है.
  • तुलसी: तुलसी का उपयोग शांति और आंतरिक सुख-शांति के लिए किया जाता है.
  • निशोथ: निशोथ को पेट के संबंधित विकारों के इलाज में प्रयोग किया जा सकता है.
  • कुटकी: कुटकी का उपयोग लिवर संबंधित समस्याओं के इलाज में किया जाता है.
  • आम, बेल, पुदीना, अजवायन, अतिबाला, गिलोय: इन जड़ी-बूटियों का पाचन में मदद करने के लिए उपयोग किया जा सकता है.
  • लौह भस्म, मंदूर भस्म, कपर्दक भस्म, मुक्ताशुक्ति भस्म, शंख भस्म: ये भस्म उपायुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग होते हैं और पाचन, विटामिन संपूरक, और शांति देने के लिए जाने जाते हैं.
उदरामृत वटी के घटक-
  1. भूमि अमाला – Phyllanthus urinaria
  2. पुनर्नवा – Boerhavia diffuse
  3. मकोय – Solangum nigrum
  4. चित्रक – Plumbago Zeylanica
  5. आमला – Emblica officinalis
  6. छोटी हरीतकी – Terminalia chebula
  7. बहेड़ा – Terminalia bellirica
  8. सौंफ – Foeniculum vulgare
  9. तुलसी – Ocimum sanctum
  10. निशोथ – Operculina turpethum
  11. कुटकी – Picrorhiza Kurroa
  12. अतीस – Aconitum heterophyllum
  13. आम – Magnifera indica
  14. बेल – Aegle marmelos
  15. पुदीना – Mentha spicata
  16. अजवाइन – Trachyspermum ammi
  17. घृत कुमारी – Aloe barbadensis
  18. अतिबला – Abutilon indicum
  19. गिलोय – Tinospora cordifolia
  20. सनाय – Cassia angustifolia
  21. ग्रहतकुमरी – Aloe barbadensis
इन घटकों का संयोजन आयुर्वेदिक प्रयोग में पेट के रोगों और पाचन संबंधित समस्याओं के इलाज में किया जाता है। यह जड़ी-बूटियाँ और भस्म इस आयुर्वेदिक उपयोग के लिए चुनी जाती हैं क्योंकि उनमें विभिन्न गुण होते हैं जो पेट स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकते हैं।
यह जड़ी-बूटियाँ और भस्म आपके दिव्य उदरामृत वटी में मौजूद हो सकते हैं, जो पेट की समस्याओं, पाचन संबंधित समस्याओं, और आंत्रिक शांति के लिए उपयोगी होते हैं।
 

पेट दर्द में पतंजलि उदरामृत वटी Benefits of Patanjali Udramrit Vati in Stomach Pain

उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो पेट दर्द, अपच, कब्ज, दस्त, और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज में मदद करती है। यह विभिन्न प्रकार के पाचन विकारों के लिए उपयोगी है, चाहे वे हल्के हों या गंभीर।

उदरामृत वटी में बहेड़ा, तुलसी, निशोथ, कुटकी, अतीस, बेल, पुदीना, घृतकुमारी आदि जड़ी-बूटियाँ होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पेट दर्द, सूजन, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करती हैं। यदि आप पेट दर्द से परेशान हैं, तो उदरामृत वटी एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प होता है। 

एनीमिया में दिव्य उदरामृत वटी Benefits of Divya Udramrit Vati in Anemia

उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो एनीमिया के इलाज में लाभकारी होती है। इसमें हरड़, बेल, आमला, शंख, मंडूर भस्म, लोहा भस्म आदि जड़ी-बूटियाँ होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाने में मदद करती हैं, जो एनीमिया का एक प्रमुख कारण है।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से एनीमिया के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे थकान, कमजोरी, चक्कर आना, और सिरदर्द। यह एनीमिया के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है।
 

पीलिया में पतंजलि उदरामृत है लाभकारी

उदरामृत वटी पीलिया के इलाज में मदद करती है। इस ओषधि में जो जड़ी बूटियां उपयोग में ली जाती हैं वे सभी पीलिया के उपचार में सहायक होती हैं. ये जड़ी-बूटियाँ जिगर को ठीक करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती हैं, जो पीलिया का कारण बनते हैं।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से पीलिया के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे कि त्वचा का पीलापन, थकान, भूख में कमी, और बुखार। यह पीलिया के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है।
 

ज्वर ने दिव्य उदरामृत वटी है गुणकारी

उदरामृत वटी ज्वर को दूर करने में सहायक होती है। इसमें एलोवेरा, गिलोय, तुलसी, अजवायन, सौंफ, और पुनर्नवा आदि जड़ी-बूटियाँ होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ शरीर के तापमान को कम करने, बुखार के कारण होने वाले दर्द को कम करने, और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में मदद करती हैं।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से ज्वर के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे कि बुखार, थकान, सिरदर्द, और बदन दर्द। यह ज्वर के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है।
 

कब्ज में पतंजलि उदरामृत वटी के सेवन से होता है लाभ Benefits of Patanjali Udramrit Vati in constipation

उदरामृत वटी के सेवन से पाचन तंत्र मजबूत बनता है, खाया पिया शरीर को लगता है। इसमें भूमि आंवला, गिलोय, हरड़, सौंफ, पुदीना, बहेड़ा, एलोवेरा आदि जड़ी-बूटियाँ होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ कब्ज के कारण होने वाली सूजन और जलन को कम करने में मदद करती हैं, और मल को नरम करने में मदद करती हैं।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से कब्ज के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे कि मल त्याग में कठिनाई, पेट फूलना, और कब्ज के कारण होने वाली अन्य परेशानियां। यह कब्ज के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है, जैसे कि पेट में अल्सर, बवासीर, और फिस्टुला।

लिवर के रोगों में लाभकारी Beneficial in liver diseases

उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो लिवर के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है। इस ओषधि में प्रयोग में लाइ गई जड़ी-बूटियाँ लिवर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने, लिवर को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं, और लिवर के कार्यों को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से लिवर रोगों के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे कि पीलिया, पेट दर्द, भूख में कमी, और थकान। यह लिवर रोगों के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है, जैसे कि कैंसर और दिल की बीमारी।
 

दस्त को रोकने में सहायक ओषधि medicine to prevent diarrhea

इसमें बहेड़ा, संघ, गिलोय, चित्रक, अतीस आदि जड़ी-बूटियाँ होती हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पेट की सूजन और जलन को कम करने, मल को जमा होने से रोकने, और पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करती हैं।

उदरामृत वटी का उपयोग करने से दस्त के लक्षणों में सुधार हो सकता है, जैसे कि पतले मल, बार-बार मल त्याग, और पेट में दर्द। यह दस्त के कारण होने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी रोकने में मदद कर सकता है, जैसे कि निर्जलीकरण और कमजोरी।
 

अपच को दूर कर पाचन को सुधारने में सहायक Helpful in improving digestion by removing indigestion

आयुर्वेद में कहा गया है कि भोजन का पचना भोजन से भी अधिक महत्वपूर्ण है। यदि खाया हुआ थोड़ा भोजन भी ठीक से पच जाए तो वह अधिक खाए गए भोजन से अधिक लाभदायक होता है। भोजन का ठीक से पचना शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है। भोजन का सही तरीके से पचने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव होता है। पतंजलि उदरामृत वटी अपच की समस्या को दूर करने में बहुत लाभकारी है। इसमें भूमि आंवला, चित्रक, आंवला, हरड़, बहेड़ा और शंख भस्म जैसी जड़ी-बूटियां होती हैं जो पाचन शक्ति को बढ़ाती हैं।

पाचन विकारों में पतंजलि उदरामृत वटी के फायदे Benefits of Patanjali Udramrit Vati in digestive disorders

उदरामृत वटी को बनाने में उपयोग की जाने वाली कुछ प्रमुख जड़ी-बूटियों में हरड़, बेल, आमला, शंख, मंडूर भस्म, लोहा भस्म आदि शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, पेट की सूजन और जलन को कम करने, और पेट में गैस को दूर करने में मदद करती हैं। उदरामृत वटी का उपयोग करने से पाचन विकारों के लक्षणों में सुधार आमतौर पर कुछ दिनों में देखा जाता है।
 

पतंजलि उदरामृत वटी का उपयोग Usages of Patanjali Udramrit Vati Hindi

उदरामृत वटी का सेवन मुख्यतः पेट और लिवर से सबंधित विकारों के लिए किया जाता है। अपच, गैस, लिवर से सबंधित विकार, मुंह के छाले जो अपच के कारण होते हैं, पेट के कारण होने वाले मुँह के विकार के लिए इसका उपयोग होता है। ज्यादातर रोगों का कारण बिगड़ा हुआ पेट होता है। हम अपने पाचन को सुधारकर उससे जनितरोगों का इलाज कर सकते हैं। 

पतंजलि उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो पाचन विकारों, पेट दर्द, ज्वर, और अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में मदद करती है। उदरामृत वटी को बनाने में कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें हरड़, बेल, आमला, शंख भस्म, और लोहा भस्म शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, पेट की सूजन और जलन को कम करने, और पेट में गैस को दूर करने में मदद करती हैं।
  • उदरामृत वटी का उपयोग रक्ताल्पता (एनीमिया) में किया जा सकता है क्योंकि यह लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है।
  • भूख कम लगने की समस्या में उदरामृत वटी का उपयोग करने से भूख बढ़ सकती है और पाचन क्रिया बेहतर हो सकती है।
  • गैस की समस्या में उदरामृत वटी का उपयोग करने से पेट की सूजन और जलन कम हो सकती है और गैस से राहत मिल सकती है।
  • भोजन ठीक से न पचने की समस्या में उदरामृत वटी का उपयोग करने से पाचन क्रिया बेहतर हो सकती है और अपच से राहत मिल सकती है।
  • उदर रोगों में उदरामृत वटी का उपयोग करने से पेट दर्द, कब्ज, और अन्य लक्षणों से राहत मिल सकती है।
  • पेट दर्द की समस्या में उदरामृत वटी का उपयोग करने से पेट दर्द से राहत मिल सकती है।
  • ज्वर में उदरामृत वटी का उपयोग करने से बुखार कम हो सकता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो सकती है।
  • पूरे पाचन तंत्र को सही करने के लिए उदरामृत वटी का उपयोग किया जा सकता है।

पतंजलि उदरामृत वटी को कैसे लें Doses of Pantanjali Udramrit Vati Hindi

उदरामृत वटी का सेवन डॉक्टर के सलाह के उपरांत लें और इसके लिए आप पतंजलि चिकित्सालय में बैठने वाले आयुर्वेदाचार्य से सबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जो निशुल्क है। उल्लेखनीय है की रोग की जटिलता, रोग के प्रकार, शरीर की तासीर, आयु, देश काल, पथ्य अपथ्य आदि को ध्यान में रखते हुए वैद्य आपको किसी दवा की सलाह देता है जिसकी मात्रा और अन्य दवाओं के साथ उसका योग होता है। इसलिए जब भी आप कोई दवा लें वैद्य की सलाह के उपरान्त ही लेवें। उदरामृत वटी की खुराक एक दिन में दो बार, एक गोली, नाश्ते और रात के खाने से पहले गुनगुने पानी या दूध के साथ लेनी चाहिए। उदरामृत वटी को लेने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेना हमेशा सबसे अच्छा होता है। उदरामृत वटी का उपयोग करते समय किसी भी तरह की एलर्जी या अन्य प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के लिए सतर्क रहें। उदरामृत वटी का उपयोग करते समय किसी भी अन्य दवा या आहार पूरक के बारे में अपने चिकित्सक को सूचित करें।

पतंजलि उदरामृत वटी के फायदे Benefits of Patanjali Udramrit Vati 

उदरामृत वटी के कई लाभ होते हैं। इसके सेवन से भूख बढ़ जाती है और पाचन तंत्र मजबूत बनता है। एसिडिटी और गैस की समस्या से छुटकारा मिलता है। इस वटी के सेवन से सेवन से पेट दर्द, मन्दाग्नि,अतिसार, विबंध, अजीर्णता, कब्ज आदि उदर विकारों में लाभ मिलता है। यकृत विकारों और पीलिया में लाभ मिलता है। रक्त विकार और ज्वर में लाभदायक है। पुरानी भुखार हेतु भी इसका उपयोग होता है। कब्ज और दस्त में भी इसका समान लाभ प्राप्त होता है और पेट फूलना, आफरा रहना में भी इसका उपयोग होता है। । इसके अन्य लाभ हैं दमा, जलोदर, मुत्रधिक्य, विषाणुजनित संक्रमण, श्वसनीशोध, कृमिरोग, व्रण, बवासीर आदि में लाभदायक है।

पतंजलि दिव्य उदरामृत वटी को कहाँ से खरीदें Patanjali Divy Udramrit Vati Buy Online

पतंजलि आयुर्वेदा की दिव्य उदरामृत वटी खरीदने और इससे सबंधित अन्य विस्तृत जानकारी के लिए पतंजलि आयुर्वेदा की ऑफिसियल वेब साइट पर विजिट करे जिसका लिंक निचे दिया गया है।

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पतंजलि उदरामृत वटी के नुकसान (Patanjali Udramrit Vati Side Effects)

जैसा कि आपने ऊपर बताया है, उदरामृत वटी में भूमि आंवला, पुनर्नवा, बहेड़ा, तुलसी, आम, बेल आदि आयुर्वेदिक औषधि या फलों का उपयोग किया गया है। ये सभी जड़ी-बूटियां प्राकृतिक हैं और आमतौर पर सुरक्षित होती हैं। हालांकि, किसी भी जड़ी-बूटी की तरह, उदरामृत वटी के भी कुछ संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

उद्रामृत वटी के संभावित दुष्प्रभावों में शामिल हैं:
  • पेट में जलन
  • दस्त
  • कब्ज
  • एलर्जी
इन दुष्प्रभावों की संभावना आमतौर पर कम होती है, लेकिन यदि आप उन्हें अनुभव करते हैं, तो आपको उदरामृत वटी का सेवन बंद कर देना चाहिए और अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। उद्रामृत वटी का सेवन करने से पहले, आपको अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, खासकर यदि आप किसी अन्य दवा का सेवन कर रहे हैं या किसी स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हैं।

यहां कुछ अतिरिक्त सुझाव दिए गए हैं जो आपको उदरामृत वटी के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं:
  • उदरामृत वटी को भोजन के बाद लें।
  • उदरामृत वटी को गुनगुने पानी या दूध के साथ लें।
  • उदरामृत वटी का सेवन करते समय किसी भी अन्य दवा या सप्लिमेंट का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें।

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पतंजलि आयुर्वेदा का दिव्य उदरामृत वटी के सबंध में कथन 

The drug relieves from all kinds of abdominal diseases - abdominal pain, dyspepsia, indigestion, liver diseases such as jaundice, anaemia, chronic fever, diarrhoea and constipation. The health of the whole body depends upon the digestive system. Secretion of digestive fluids in their required manner, as well as absorption of food essence, is an absolute necessity for the purpose of complete nourishment to the body. Udaramrit Vati makes whole digestive system healthy.

पतंजलि उदरामृत वटी के घटक का परिचय Ingredients of Patanjali Udramrit Vati Hindi

इसमें प्रधान रूप से पुनर्नवा, भूमि आंवला, मोकय, चित्रक, आंवला, बहेड़ा, हरीतिका, कुटकी, आमबीज, निशोथ, बिल्व, अजवायन, अतीस कड़वा, घृतकुमारी, मुक्ताशुक्ति भस्म, कसीस भस्म, लौह भस्म, मंडूर भस्म आदि होते हैं। आइये जानते हैं उदरामृत वटी के कुछ घटक की विशेषताएं।

पुनर्नवा : (Boerhavia diffusa)

बोरहैविया डिफ्यूजा, 'शरीर पुनर्नवं करोति इति पुनर्नवा' पुनर्नवा उसे कहा गया है जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव/नया स्वरूप प्रदान करे। इसके औषधीय गुणों के के अतिरिक्त इसमें कई विटामिन और खनिज भी होते हैं यथा इसमें विटामिन सी, आयरन, प्रोटीन, कैल्शियम और सोडियम जैसे तत्व पाए जाते हैं| पुनर्नवा की तीन प्रजाति होती है सफेद फूल वाली को विषखपरा, लाल फूल वाली को साठी और नीली फूल वाली को पुनर्नवा कहते है, अन्य के अलावा नीले फूलों वाली पुनर्नवा के औषधीय गुण अधिक होते हैं।

पुनर्नवा का गुण धर्म कब्ज नाश कर पोषक मार्ग को खोलना है। इसके सेवन से शरीर में संचित मल शरीर से बाहर निकलता है और जो भी आहार हम ग्रहण करते हैं उसके सारे गुण शरीर ग्रहण कर पाता है। शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालती है जिससे शरीर सुद्ध होता है। पाचन तंत्र सुधरने से इससे जनित कई रोगों से निजाद मिलती है। हृदय विकार को भी पुनर्नवा दूर करती है। इसके अन्य लाभ हैं, फेफड़े की सूजन कम करता है, दमा रोग में राहत मिलती है, पेशाब को जारी कर शरीर सुद्ध करती है, पित्त का नाश करती है, लिवर की देखभाल करती है, गुर्दों की सफाई करती है, अनिंद्रा, गठिया के रोग, आँखों के रोगों में इसका लाभ मिलता है।

भूमि आंवला

भूमि आंवला (Neotea Keelanelli) को भुई आंवला और भू धात्री भी कहा जाता है। यह एक छोटा सा पौधा होता है जो यहां वहां स्वतः ही उग जाता है। इसके जो फल लगते हैं वे छोटे आंवले के समान लगते हैं इसलिए इन्हे भूमि आंवला कहा जाता है क्योकि ये भूमि के समीप होते हैं। इसका स्वाद चरपरा और कसैला होता है। शरीर से विषाक्त और विजातीय प्रदार्थों को यह शरीर से बाहर निकाल देता है। खांसी और कफ का नाश करता है साथ ही लिवर को भी मजबूत करता है। मुंह से सबंधित विकारों को भूमि आंवले से दूर किया जाता है यथा मुँह का इन्फेक्शन और छाले। यह शरीर की हीलिंग पावर को बढ़ता है और एंटी बैक्ट्रियल होता है। यह आँतों की सफाई करता है जिससे पेट से जनित मुंह के विकारों में आराम मिलता है।

पतंजलि उदरामृत वटी-बिल्व (wood apple, Aegle marmelos)

बिल्व फल, बेल पत्थर, बील का अपना धार्मिक महत्त्व भी है। यह शिव जी को अत्यंत प्रिय है इसलिए शिवलिंग पर बील पत्र चढ़ाये जाते हैं। आचार्य चरक और सुश्रुत दोनों ने इसके गुणों के बारे में विस्तार से बताया है। इसका फल वात का शमन करता है और पाचन संस्थान के विकारों को दूर करता है। आयुर्वेद के अनेक औषधीय गुणों एवं योगों में बेल का महत्त्व बताया गया है, परन्तु एकाकी बिल्व, चूर्ण, मूलत्वक्, पत्र स्वरस भी अत्यधिक लाभदायक है।

इसका एक पेड़ होता है और उसके फलों को बिल्व कहा जाता है। इसके अन्य गुणों के अलावा इसे उदर के लिए अमृत बताया गया है। इसके अंदर पाए जाए वाली गिरी और इसका रस अनेकों गुणों से भरपूर होती है। इसके रस से पुराना कब्ज भी दूर हो जाता है। आँतों के सफाई करता है। इसके अलावा बिल्व पत्र से कई लाभ मिलते हैं जैसे अतिसार रोकने में सहायक, शरीर में खून की कमी को दूर करता है, दमा को दूर करता है, इसमें पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट्स शरीर में स्थित फ्री रेडिकल्स को समाप्त करते हैं जो बढ़ती उम्र को दर्शाते हैं, इनकी अधिकता से कैंसर होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।

पतंजलि उदरामृत वटी-भरड़ (बहेड़ा)

बहेड़ा एक ऊँचा पेड़ होता है और इसके फल को भरड कहा जाता है। बहेड़े के पेड़ की छाल को भी औषधीय रूप में उपयोग लिया जाता है। यह पहाड़ों में अत्यधिक रूप से पाए जाते हैं। इस पेड़ के पत्ते बरगद के पेड़ के जैसे होते हैं। इसे हिन्दी में बहेड़ा, संस्कृत में विभीतक के नाम से जाना जाता है। भरड पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। यह पित्त को स्थिर और नियमित करता है। कब्ज को दूर करने में ये गुणकारी है। यह कफ को भी शांत करता है। भरड एंटी ओक्सिडेंट से भरपूर होता। अमाशय को शक्तिशाली बनाता है और पित्त से सबंदित दोषों को दूर करता है। क्षय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। भरड में कई तरह के जैविक योगिक होते हैं जैसे की ग्‍लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि जो की बहुत लाभदायी होते हैं।

पतंजलि उदरामृत वटी-आँवला

सामान्य रूप से आंवले के गुणों को पहचानकर हमारे घरों में ऋतू में इसकी सब्जी बनायीं जाती है और आंवले का मुरब्बा भी सेहत के लिए काम में लिया जाता है। आंवला भोजन भी है और आयुर्वेदिक दवा भी। इसका वनस्पति नाम एम्बलोका ऑफिजिनालिस या फ़िलेंथस इम्ब्लिका है। आंवला एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट हैं। आंवले का उपयोग विटामिन c के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। आंवले का उपयोग मुख्यतया एंटी-एजिंग को रोकने, संक्रमण की रोकथाम के लिए, आँखों की रौशनी बढ़ाने के लिए, बालों को सेहतमंद करने के लिए, और पाचन तंत्र को सुधारने के लिए किया जाता है।आंवले से लिवर भी मजबूत होता है।

कुटज (कूड़ा ) का परिचय Introduction of Kutaj (KUDA) Hindi

कूड़ा या कुटज की छाल आयुर्वेद की अत्यंत ही प्राचीन और प्रचलित ओषधि है। अधिकतर आयुर्वेद के ग्रंथों में कुटज की छाल का परिचय प्राप्त होता है। पेट से सबंधित विकार यथा दस्त आने, पेट में मरोड़ आदि विकारों के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है। कूड़ा की छाल KURCHI, कुटज छाल - Holarrhena Antidysenterica-हौलोरेना ऐन्टिडिसेन्ट्रिका-वानस्पतिक नाम। (करची, कुरची, कुटकी, कोनेस्स ट्री, कुटजा, दूधी, इंद्र ) English – कुरची (Kurchi) कोनेस्स ट्री (Coness tree) टेलीचैरी ट्री कुटज एशिया और अफ्रीका के के ट्रॉपिकल औऱ सबट्रॉपिकल इलाकों में प्रधानता से पाया जाता है। भारत में यह विशेष रूप से हिमालयी इलाक़ों / पर्णपाती वनों में प्रधानता से पाया जाता है। इस पेड़ की छाल को ही कूड़े/कुटज की छाल के नाम से पहचाना जाता है जो डायरिया, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) विकार के उपचार के लिए आयुर्वेदा में इस्तेमाल की जाती है। कुटज कटु और कषाय रस युक्त, तीक्ष्ण, अग्निदीपक और शीतवीर्य है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में कुटज की छाल को कुटज की छाल कड़वी, चरपरी, उष्णवीर्य, पाचक, ग्राही और कफविकार, कृमि, ज्वर, दाह और पित्ताशं का नाश करने वाली बताया गया है। कुटज की छाल के अतिरिक्त इसके पत्ते पुष्प और बीजों का उपयोग आयुर्वेदा में प्रधानता से होता है। इसमें एंटीडिसेंट्री, एंटीडायरियल और एंटी-एमोबिक प्रॉपर्टीज होती हैं जो इसे विशेष बनाती हैं। कुटज का उपयोग त्वचा रोगों, बुखार, हर्पीस, एब्डोमिनल कोलिक पेन, पाइल्स और थकान आदि विकारों के उपचार में भी किया जाता है। कुटज का उपयोग आयुर्वेद में जहाँ अतिसार के लिए किया जाता है वहीँ यह घुटनों के दर्द में भी प्रभावी ओषधि है।
कुटज का उपयोग निम्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
  • पाचन तंत्र विकारों को दूर करने के लिए कुटज एक अहम् ओषधि है। यह दस्त रोकने, मरोड़ की रोकथाम करने के अतिरिक्त पाचन को भी दुरुस्त करने का कार्य करती है। पित्तातिसार भी इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  • रक्तज प्रवाहिका विकार में भी कुटज की छाल के चूर्ण को छाछ के साथ लेने से लाभ मिलता है।
  • कुटज चूर्ण को शहद के साथ लेने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
  • डायबिटीज रोगियों के लिए भी कुटज का चूर्ण लाभकारी होता है। कुटज को रात भर भिगो कर सुबह इसके पानी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • कुष्ठ रोग के निदान के लिए भी कुटज चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है।
  • जोड़ो के दर्द त्वचा के संक्रमण में भी कुटज लाभकारी होता है।
  • शरीर में आई सूजन को दूर करने के लिए भी कुटज लाभकारी होता है।
  • कुटज पित्त शामक एवं शीत गुण प्रधानता लिए होता है।
  • आयुर्वेद में कुटज को पौरुषत्व को बढ़ाने वाला माना जाता है। इसके सेवन से क्षीणता दूर होती है और पौरुषत्व बढ़ता है।
  • कुटज में कई पौष्टिक तत्व होते हैं, कुपोषित लोगों के लिए यह लाभदाई होती है।
  • कुटज के सेवन से आर्थराइटिस सुजन व दर्द में आराम मिलता है।
  • कुटज में कई प्रकार के हीलिंग रसायन होते हैं जिसके कारण इसका उपयोग त्वचा संक्रमण रोकने और घाव को भरने के लिए किया जाता है। इसके महीन चूर्ण को सफ़ेद दाग पर लगाने से सफ़ेद दाग को दूर करने में सहायता मिलती है।
  • पित्तज प्रमेह, आंवरक्त (पेचिश), उपदंशरक्त, प्रदररक्तातिसार विकार में इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  • ज्वर को रोकने में भी कुटज लाभदाई होती है।
  • कुटज की छाल का काढ़ा बनाकर लेने से दांत दर्द में राहत मिलती है। इसके महीन चूर्ण को दांतों पर मंजन करने से पायरिया दूर होता है।
  • कुटज की छाल के सेवन से उदर कृमि शरीर से बाहर मल के साथ निकल जाते हैं।
  • कुटज की छाल को दही के साथ लेने पर पथरी विकार दूर होता है।
 
 

अतीस Indian Aconite (इंडियन एकोनाइट)

अतीस एक आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर ओषधीय पादप है जिसे अतिविषा, विश्वा, शृङ्गी, शिशुभैषज्या, प्रतिविषा,भङ्गुरा, अतीस, अतिविख के नाम से जाना जाता है। अतीश एक पादप है जो भारत में पश्चिमोत्तर हिमालय में कुमाऊं, सिक्किम तथा चम्बा के क्षेत्र में प्रमुखता से पाया जाता है। स्वाद में यह अत्यंत ही कड़वी होती है। अतीस चूर्ण अतीस हर्ब से तैयार किया जाता है जिसका प्रधान गुण पाचन को दुरुस्त करने और दस्त को रोकने के लिए किया जाता है, यही कारण है की कुटज घनवटी में अतीश चूर्ण का उपयोग किया जाता है। गुण कर्म में अतीस उष्णवीर्य, कटु तथा तिक्त रसयुक्त, पाचक, अग्निदीपक है तथा कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, खांसी, वमन और कृमि, विकार दूर करने वाली होती है साथ ही यह त्रिदोषनाशक होती है। संग्रहणी विकार में अतीश चूर्ण का लाभ प्रभावी होता है। अतिसार, संग्रहणी विकार के अतिरिक्त यह उलटी, दस्त और खाँसी में लाभकारी होती है। यह कृमि रोधी है जिससे पेट के कीड़े दूर होते हैं।

बेल/बील Aegle marmelos L जानकारी और फायदे

बील या बेल पत्र/बिल्व को कई नामों से जाना जाता है यथा बेल, श्रीफल, बील, बिल्व, शाण्डिल्य, शैलूष, मालूर, श्रीफल, कण्टकी, सदाफल आदि। बेल या बील का वानास्पतिक नाम Aegle marmelos (Linn.) एगलि मारमेलोस Syn-Crateva marmelos Linn है तथा यह Rutaceae (रूटेसी) कुल से सबंध रखता है। अंग्रेजी में इसे वुड एप्पल के नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है की बील / बेल को अत्यंत ही पवित्र वृक्ष माना जाता है। इसके पत्तों को शिवजी को अर्पित करना शुभ माना जाता है। पत्तों के सबंध में विशेष है की इसके पत्ते तोड़कर रखने पर काफी समय तक ये खराब नहीं होते हैं। शायद यह कारण रहा है की जो भी गुणवान वस्तुएं होती हैं उन्हें धर्म के साथ जोड़कर जनसामान्य तक पहुंचाने की कोशिश रही है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसके गुणों के सबंध में जानकारी प्राप्त होती है। बेल में टैनिन, कैल्शियम, फास्फॉरस, फाइबर, प्रोटीन और आयरन जैसे कई तत्व होते हैं जो एक स्वस्थ शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं।

बेल के फायदे/लाभ Benefits of Bel (Wood Apple)  

  • बेल पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है। यह जहाँ कब्ज को दूर करता है वहीँ पेचिस और संग्रहणी विकार में भी लाभदाई होता है। बेल में क्रूड फाइबर पाए जाते हैं जो हमारे पाचन तंत्र के लिए उपयोगी होते हैं। बेल रुचिकारक, दीपन (उत्तेजक) होता है जो पाचन को बढ़ाता है साथ ही आँतों को भी ताकत देता है।
  • बवासीर जैसे विकारों में भी बेल के सेवन से लाभ मिलता है।
  • बेल के सेवन से रक्त अतिसार (खूनी दस्त), प्रवाहिका (पेचिश), तथा अतिसार (दस्त) आदि विकारों में लाभ मिलता है।
  • स्कर्वी रोग का मुख्य कारण विटामिन सी की कमी का होना है बेल से हमें प्रयाप्त मात्रा में विटामिन सी प्राप्त होता है। यदि विटामिन सी की कमी आ जाए तो इसका पाचन क्रिया पर भी असर पड़ता है, बेल विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है।
  • बेल/बील के फल के सेवन से कब्ज, बवासीर, डायरिया आदि विकारों में लाभ मिलता है और इससे पाचन में सुधार होता है।
  • बेल में एंटी-फंगल, एंटी-पैरासाइट गुण होते हैं जो पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करते हैं।
  • बेल में पाए जाने वाला बीटा कैरोटीन और थाइमिन और राइबोफ्लेविन लिवर के लिए लाभदाई होते हैं।
  • बेल के सेवन से शरीर से विषाक्त प्रदार्थ बाहर निकलते हैं।
  • बेल के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होता है।
  • बेल के शरबत से गर्मियों में हैजा और डीहाईडरेशन जैसे विकारों में लाभ मिलता है।
  • बेल में पाए जाने वाले विटामिन सी के कारन जिन्हे सरदर्द रहता है उन्हें आराम मिलता है।
  • बेल के सेवन से कफ और पित्त शांत होता है।
  • बेल त्रिदोष विकार (वात, पित और कफ) को शांत करने वाला होता है।
  • बेलगिरी के चूर्ण को छाछ के साथ लेने पर संग्रहणी में लाभ मिलता है।
  • बेल त्रिदोष (वात, पित और कफ) जलन (दाह), तृष्णा (प्यास), अजीर्ण (भूख का कम होना), अम्लपित्त्त भूख का कम लगना, संग्रहणी (दस्त, पेचिश) प्रवाहिका (पेचिश, संग्रहणी) आमातिसार विकारों में लाभप्रद होती है।
  • बेल के पत्ते का रस हृदय रोगों में लाभदाई होता है।
  • बेल के शर्बत से खून साफ़ होता है।

पाचन तंत्र को कैसे सुधारें

पाचन तंत्र में में सुधार के लिए आपको अवश्य ही प्रयत्न करने चाहिए, कुछ सामान्य निर्देशों का पालन करके आप पाचन को दुरुस्त कर सकते हैं -
  1. स्वस्थ और संतुलित आहार खाएं: अपने भोजन में फाइबर युक्त खाद्य प्रदार्थों का चयन करें। फाइबर से युक्त भोजन और हरे पत्तेदार सब्जियों का सेवन करके आप पाचन क्रिया को सुधारने में पहला स्टेप्स लेते हैं।
  2. हाइड्रेटेड रहें: दिन भर में ढेर सारा पानी पीने से आपके पाचन तंत्र को ठीक से काम करने में मदद मिलती है।
  3. नियमित रूप से व्यायाम करें: नियमित शारीरिक गतिविधि आपके पाचन तंत्र को उत्तेजित करने और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकती है।
  4. तनाव का प्रबंधन करें: तनाव पाचन को प्रभावित कर सकता है, इसलिए ध्यान या योग के माध्यम से तनाव को कम करना चाहिए, आपको खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।
  5. अपने भोजन को अच्छी तरह से चबाएं: अपने भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाने से आपके पेट को भोजन को आसानी से पचाने में मदद मिल सकती है।
  6. एक साथ ज्यादा खाना नहीं खाएं: एक साथ ज्यादा भोजन नहीं करना चाहिए और दिन में दो से तीन बार हल्का भोजन लेना चाहिए।
  7. धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचें: धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन पाचन को बाधित कर सकता है और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा करता है।
पतंजलि उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग पाचन जनित विकारों को दूर करने और पाचन तंत्र प्रणाली को स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह कब्ज, अपच और पेट फूलने सहित विभिन्न पाचन विकारों के लिए एक प्राकृतिक उपचार है। उदरामृत वटी की मुख्य सामग्री में त्रिफला, शुद्ध गंधक, शिलाजीत, ताम्र भस्म और लौह भस्म शामिल हैं।
त्रिफला तीन फलों का मिश्रण जो रेचक और पाचक गुणों के लिए जाने जाते हैं। शुद्ध गंधक शुद्ध सल्फर है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें विषहरण और जीवाणुरोधी गुण होते हैं। शिलाजीत एक प्राकृतिक राल है जो खनिजों से भरपूर होता है और माना जाता है कि इसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं। ताम्र भस्म तांबे से बना एक मिश्रण है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें पाचक और जलनरोधी गुण होते हैं। लौह भस्म में हीमेटिनिक गुण होते हैं।
पतंजलि उदरामृत वटी को पाचन में सुधार, भूख को उत्तेजित करने और पाचन समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। 
Ingredients of Patanjali Udramrit Vati :
  • Triphala
  • Shuddha Gandhak (purified sulfur)
  • Shilajeet
  • Tamra Bhasma (copper)
  • Lauh Bhasma (iron)
  • Giloy (Tinospora cordifolia)
  • Chitrak (Plumbago zeylanica)
  • Nagarmotha (Cyperus rotundus)
  • Kutki (Picrorhiza kurroa)
  • Guggulu (Commiphora mukul)
  • Hingu (Ferula asafoetida)
  • Ajwain (Trachyspermum ammi)
  • Vidanga (Embelia ribes)
  • Yavakshar (Hordeum vulgare)
  • Sauvarchala Lavana (Sodium sulfate)

प्रश्न – क्या उदरामृत वटी पेट दर्द में लाभकारी है?

उदरामृत वटी पेट दर्द, पीलिया, और अपच में फायदेमंद होती है। उदरामृत वटी को बनाने में कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें हरड़, बेल, आमला, शंख भस्म, और लोहा भस्म शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, पेट की सूजन और जलन को कम करने, और पेट में गैस को दूर करने में मदद करती हैं। पेट दर्द में, उदरामृत वटी पेट की सूजन और जलन को कम करने में मदद करती है, और पेट दर्द से राहत देती है। पीलिया में, उदरामृत वटी लीवर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने में मदद करती है, और पीलिया के लक्षणों में सुधार करती है। अपच में, उदरामृत वटी पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करती है, और अपच के लक्षणों में सुधार करती है।
 

प्रश्न –क्या उदरामृत वटी का सेवन पीलिया में किया जा सकता है?

उत्तर –उदरामृत वटी पीलिया रोग में फायदेमंद होती है। उदरामृत वटी को बनाने में कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें हरड़, बेल, आमला, शंख भस्म, और लोहा भस्म शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, पेट की सूजन और जलन को कम करने, और पेट में गैस को दूर करने में मदद करती हैं। पीलिया में, उदरामृत वटी लीवर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने में मदद करती है, और पीलिया के लक्षणों में सुधार करती है। उदरामृत वटी लीवर के कार्यों को बेहतर बनाने में भी मदद करती है।

प्रश्न- दिव्य उदरामृत वटी के फ़ायदे क्या हैं ?

उत्तर -उदरामृत वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है जो पाचन विकारों, पेट दर्द, ज्वर, और अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में मदद करती है। उदरामृत वटी को बनाने में कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें हरड़, बेल, आमला, शंख भस्म, और लोहा भस्म शामिल हैं। ये जड़ी-बूटियाँ पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, पेट की सूजन और जलन को कम करने, और पेट में गैस को दूर करने में मदद करती हैं।

उदरामृत वटी के लाभों में शामिल हैं:
  • समस्त उदर रोगों में लाभकारी
  • अपच, गैस और लीवर सम्बन्धी विकारों के लिए
  • यकृत रोग जैसे पीलिया, रक्ताल्पता, जीर्ण ज्वर
  • दस्त व ज्वर रोगों में लाभकारी
  • यह पूरे पाचनतंत्र को स्वस्थ बनाती हैं।

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Disclaimer : यह अनुशंसा की जाती है कि आप इस दवा या किसी अन्य आयुर्वेदिक उपाय को लेने से पहले एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें। वे आपकी व्यक्तिगत स्वास्थ्य आवश्यकताओं और चिकित्सा इतिहास के आधार पर उचित खुराक और उपचार की अवधि निर्धारित करने में आपकी सहायता कर सकते हैं। इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी https://lyricspandits.blogspot.com की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।अस्वीकरण सबंधी विस्तार से सूचना के लिए यहाँ क्लिक करे।
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
 
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7 टिप्पणियां

  1. Namaskar Aunty ji apne jo ayurvedic medicines ke baare m gyan diya hai wo ekdam sateek badhiya hai m ek yogacharya, panchkarma expert hu m aapke gyan se awagat hu parichit hu
    1. Aaapne Amuly Samay Nikalkar Jaankaari Ko Padha Iske Liye Aapka Aabhaar. Thanks Again.
  2. :)
  3. Udaramrit vati bahut gunkari vati hai, I am always use this vati
  4. Bahut achhi jankari aapke dvara di gayi h thanks
  5. नमस्कार आपके इस वेबसाइट पर डिटेल जानकारी हम सबके लिए बहुत उपयोगी है,
    धन्यवाद
    आगे भी इसी प्रकार की जानकारियां देते रहेंगे
  6. Mughe kabz rahta hai or aat me aithen rahta hai