मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया
मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया।
पांच तत की बनी चुनरिया
सोरह सौ बैद लाग किया।
यह चुनरी मेरे मैके ते आयी
ससुरे में मनवा खोय दिया।
मल मल धोये दाग न छूटे
ग्यान का साबुन लाये पिया।
कहत कबीर दाग तब छुटि है
जब साहब अपनाय लिया।
कबीरदास के इस पद में 'चुनरी' मानव शरीर का प्रतीक है, जो पाँच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश—से निर्मित है। 'दाग' सांसारिक मोह, अज्ञान, और पापों का सूचक है, जो जीवन के दौरान लग जाते हैं। कबीर कहते हैं कि इस 'चुनरी' को मैके (जन्मस्थान) से लाया गया, लेकिन ससुराल (संसार) में आकर मन ने इसे खो दिया। बार-बार धोने (प्रयासों) के बावजूद, ये दाग नहीं मिटते; केवल ज्ञान का साबुन (आध्यात्मिक ज्ञान) ही इन्हें हटा सकता है। अंत में, कबीर कहते हैं कि जब परमात्मा (साहब) स्वयं अपनाते हैं, तभी ये दाग पूरी तरह से मिटते हैं। इस प्रकार, आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के लिए ईश्वर की कृपा और आत्मज्ञान आवश्यक हैं।