श्याम मने चाकर राखो जी मीरा भजन

श्याम मने चाकर राखो जी मीरा भजन

 श्याम मने चाकर राखो जी मीरा भजन लिरिक्स Shyam Mane Chakar Rakho Ji Lyrics
 
स्याम मने चाकर राखो जी। गिरधारीलाल चाकर राखो जी।।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
बिंद्राबन की कुंज गलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊं तीनूं बातां सरसी।।
मोर मुगट पीतांबर सोहे गल बैजंती माला।
बिंद्राबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।
हरे हरे नित बाग लगाऊंबिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरियाके दरसण पाऊंपहर कुसुम्मी सारी।।
जोगि आया जोग करणकूं तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया बिंद्राबनके बासी।।
मीराके प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें प्रेम नदी के तीरा।
 
मीराबाई का प्रसिद्ध भजन "स्याम मने चाकर राखो जी" में प्रत्येक पंक्ति का अर्थ इस प्रकार है:

स्याम मने चाकर राखो जी, गिरधारीलाल चाकर राखो जी।
हे श्याम (कृष्ण), मुझे अपना सेवक बनाकर रखें, हे गिरधारीलाल, मुझे अपना सेवक बनाकर रखें।

चाकर रहसूं बाग लगासूं, नित उठ दरसण पासूं।
सेवक बनकर मैं आपके बगीचे की देखभाल करूं, प्रतिदिन सुबह उठकर आपके दर्शन करूं।

बिंद्राबन की कुंज गलिन में, तेरी लीला गासूं।
वृंदावन की सुंदर गलियों में, मैं आपकी लीलाओं का गायन करूं।

चाकरी में दरसण पाऊं, सुमिरण पाऊं खरची।
सेवा करते हुए आपके दर्शन का सुख पाऊं, और आपका स्मरण करना मेरा धन हो।

भाव भगति जागीरी पाऊं, तीनूं बातां सरसी।
भावपूर्ण भक्ति की जागीर (संपत्ति) पाऊं, ये तीनों बातें (दर्शन, स्मरण, भक्ति) आनंदमयी हैं।

मोर मुकुट पीतांबर सोहे, गल बैजंती माला।
मोर पंखों का मुकुट और पीले वस्त्र आप पर शोभा पाते हैं, गले में बैजयंती माला सुशोभित है।

बिंद्राबन में धेनु चरावे, मोहन मुरलीवाला।
वृंदावन में गायों को चराते हैं, वह मोहन (कृष्ण) मुरली बजाने वाले हैं।

हरे हरे नित बाग लगाऊं, बिच बिच राखूं क्यारी।
मैं प्रतिदिन हरे-भरे बाग लगाऊं, बीच-बीच में क्यारियां (फूलों की कतारें) सजाऊं।

सांवरिया के दरसण पाऊं, पहर कुसुम्मी सारी।
सांवरे (कृष्ण) के दर्शन पाऊं, और सुंदर फूलों की साड़ी पहनूं।

जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
योगी योग करने आए हैं, और संन्यासी तपस्या करने।

हरी भजनकूं साधू आया, बिंद्राबन के बासी।
साधुजन हरि (कृष्ण) का भजन करने आए हैं, जो वृंदावन के निवासी हैं।

मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा, सदा रहो जी धीरा।
मीरा के प्रभु (कृष्ण) गहरे और गंभीर हैं, सदा धैर्यवान रहते हैं।

आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेम नदी के तीरा।
आधी रात को प्रभु ने दर्शन दिए, प्रेम की नदी के किनारे।

मीराबाई का संक्षिप्त परिचय
मीराबाई (1498-1547) सोलहवीं शताब्दी की एक प्रमुख कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उनका जन्म राजस्थान के पाली जिले के कुड़की गांव में राव रतन सिंह के घर हुआ था। बचपन से ही मीराबाई भगवान कृष्ण की आराधना में लीन रहती थीं और उन्हें अपना पति मानती थीं। उनकी रचनाएं भक्ति, प्रेम और समर्पण की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति हैं, जो आज भी भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।
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Shyam Mane Chakar Rakho Ji - Hema Malini - Meera - Vani Jairam - Hindi Devotional Songs

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