जो ऊग्या सो आंथवै फूल्या सो कुमिलाइ हिंदी मीनिंग Jo Ugya So Athave Fulya So Kumlaayi Hindi Meaning

जो ऊग्या सो आंथवै फूल्या सो कुमिलाइ हिंदी मीनिंग Jo Ugya So Athave Fulya So Kumlaayi Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Me


सब रग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त।
और न कोई सुणि सकै, कै साईं के चित्त ॥
sab rag tant rabaab tan, birah bajaavai nitt.
aur na koee suni sakai, kai saeen ke chitt . 
 
जो ऊग्या सो आंथवै फूल्या सो कुमिलाइ हिंदी मीनिंग Jo Ugya So Athave Fulya So Kumlaayi Hindi Meaning

दोहे का हिंदी मीनिंग: यह तन रबाब बन गया है और इसे बिरह (अलगाव) बजाता रहता है इस बिरह को कोई अन्य महसूस नहीं कर सकता है, केवल साईं ही इसे महसूस कर पाता है। जब सच्ची लगन लग जाती है तो रोम रोम में हरी का वाश होता है और यह शरीर किसी तम्बूरे की तरह से खुद ही संगीत पैदा करने लग जाता है, यह संगीत हरी के नाम का है जो साँसों के तारों में नित्य ही बजता रहता है। इसे सद्गुरु ही महसूस कर पाते हैं। जो माया के प्रभाव में पड़े हैं उन्हें यह ब्रह्म नाद सुनाई नहीं देता है और इसका हरी के नाम में ध्यान लगा है वह इस संगीत में नाचता रहता है।
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ ।
राम बियोग ना जिबै जिवै तो बौरा होइ॥
Birah Bhuvangam Tan Basai, Mantr Na Laagai Koi .
Raam Biyog Na Jibai Jivai To Baura Hoi.
दोहे का हिंदी मीनिंग: : बिरह का साँप मेरे तन में बस रहा है और इसकी कोई ओषधि नहीं है, कोई मन्त्र भी इसके नहीं लगता है, राम वियोगी जीवित नहीं रह सकता है और यदि वह जीवित रहता है तो वह पागल के समान हो जाता है। इसे भी हरी नाम सुमिरण का पता चल जाता है वह हरी रस के बगैर तड़पता है, उसे संसार की कोई वस्तु, रस, साधन वह आनंद नहीं दे सकते हैं जो उसे हरी नाम के रस में आता है। यदि उसे सत्संगत और गुरु का सानिध्य नहीं मिले तो उसका जीवन दूभर हो जाता है। उसका जीना संभव नहीं रह जाता है। यदि वह जीवित भी रहता है तो वह हरी के रस में खोया रहता है जो इस जग के लोगों के लिए किसी पागल जैसा ही होता है।

यहु तन जालों मसि करों, लिखों राम का नाउं।
लेखणिं करूं करंक की, लिखि-लिखि राम पठाउं॥
Yahu Tan Jaalon Masi Karon, Likhon Raam Ka Naun.
Lekhanin Karoon Karank Kee, Likhi-likhi Raam Pathaun.
दोहे का हिंदी मीनिंग:  इस देह जो जला कर उसकी स्याही बना लूँगा, और मेरे कंकाल से लेखनी बना कर राम नाम के संदेसे लिख कर राम को भेजती रहूँ। भाव है की ईश्वर के सुमिरण का इस हद तक यदि समर्पण हो, जीव का प्रभु से मिलन हेतु इस हद तक समर्पण हो तो कहीं जाकर ईश्वर के दर्शन प्राप्त हो पाते हैं। ईश्वर की भक्ति भी कोई सुलभ नहीं है, इसके लिए भी त्याग करना पड़ता है। सांसारिक रिश्ते नातों को छोड़कर, माया के मन लुभावने विषयों को छोड़कर सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करनी पड़ती है जैसे की इस तन की स्याही और हड्डियों को कलम बनाने की जरुरत होती है, तब कहीं जाकर ईश्वर तक यह सन्देश पहुंच पाता है। 

अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसौ कहिया।
कै हरि आयां भाजिसी, कै हरि ही पास गया॥
Andesada Na Bhaajisee, Sandesau Kahiya.
Kai Hari Aayaan Bhaajisee, Kai Hari Hee Paas Gaya.
दोहे का हिंदी मीनिंग: जब तक हरी से साक्षात्कार नहीं हो जाता है, जीव को चैन नहीं है। यह अंदेशा और दुविधा तभी दूर होगी जब हरी से साक्षात्कार हो जाएगा, अन्यथा किसी और विधि से इसका समाधान नहीं हो पायेगा। जीव की अंतिम परिणिति भी ईश्वर की प्राप्ति ही है। यह अंदेशा तभी दूर हो सकता है या तो हरी स्वंय आ जाएँ या फिर जीव ही हरी के पास पहुँच जाए, अन्यथा एक अधूरापन ही रहता है।
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पाइ पदारथ पेलि करि, कंकर लीया हाथि ।
जोड़ी बिछटी हंस की, पड्या बगां के साथि ॥
Pai Padaarath Peli Kari, Kankar Leeya Haathi .
Jodee Bichhatee Hans Kee, Padya Bagaan Ke Saathi .
Kabir Ke Dohe Hindi Me कबीर के दोहे हिंदी में भावार्थ : संगत का बहुत ही गहरा असर होता है, जो अनमोल प्रदार्थ था (मानव जीवन) उसे छोड़ कर व्यक्ति कंकड़ (माया) को हाथ लिए फिर रहा है। भाव है की बहुत यत्न के उपरान्त मानव जीवन मिला है और जीव उसके महत्त्व को भूल कर तुच्छ हरकतों में व्याप्त रहता है और यह माया जनित प्रभाव के कारण से होता है। हंस की जोड़ी अन्य हंसों से बिछड़ है और वह बगुलों के साथ हो गया है। हंस अपनी प्रकृति स्वरुप हीरे मोती चुनता है और बगुला कीड़े मकोड़े आदि खाता है। यह दोनों का स्वभाव है जहाँ हंस उत्तम वस्तु का चयन करता है और बगुला अपने स्वभाव के स्वरुप तुच्छ और मूल्यहीन प्रदार्थों का चयन करता है। भाव है की सतजन के साथ रहने से संगी का स्वभाव भी उत्तम बनता है।

हरि हीरा, जन जौहरी, ले ले माँडी हाटि ।
जब र मिलैगा पारिषी, तब हरि हीरां की साटि ॥
Hari Heera, Jan Jauharee, Le Le Maandee Haati .
Jab Ra Milaiga Paarishee, Tab Hari Heeraan Kee Saati . 
Kabir Ke Dohe Hindi Me Meaning कबीर के दोहे हिंदी में व्याख्या : हरी (ईश्वर)  हीरा है, अनमोल है, इसे हरी भक्त ले कर बाजार में बैठे हैं लेकिन इनका मोल कौन करें ? जब सतगुरु कोई उस बाज़ार में आता है तो वह इसका उचित मोल कर सकता है। भाव है की हरी ही पारखी होता है और वह समझता है की ईश्वर ही अनमोल है, जो माया के चक्कर में फँसे रहते हैं उनके लिए ईश्वर रूपी अनमोल प्रदार्थ का मोल समझ पाना सम्भव नहीं है।
बारी बारी आपणीं, चले पियारे म्यंत ।
तेरी बारी रे जिया , नेड़ी आवै निंत ॥
हिंदी में भावार्थ : अपने प्यारे, मित्र संगी, सभी चले जा रहे हैं, अरे जीव, अब तेरी बारी भी धीरे धीरे नजदीक आती जा रही है। जो उत्पन्न हुआ है उसका अंत निश्चित है, जिसका उदय हुआ है वह अस्त भी होगा, यही प्रकृति का नियम है। जो अपने थे, जिनसे मोह था वे सभी अपनी बारी आने पर जा रहे हैं, एक रोज तेरी भी बारी आने वाली है, तुझे भी जाना ही होगा, यही इस जीवन का नियम है। भाव है की जाना सभी को होगा, इसलिए हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार होना चाहिए, माया के जाल में फंसकर व्यर्थ में जीवन को समाप्त करना कोई समझदारी का कार्य नहीं है। जो अपने थे, जो अपने हैं यह मिथ्या भाव है, सभी को अकेले ही जाना है, इसलिए व्यर्थ में इस रिश्तेदारों, कबीलों में जी को अटकाना भी मूर्खता ही है।

जो ऊग्या सो आंथवै, फूल्या सो कुमिलाइ ।
जो चिणियां सो ढहि पड़ै, जो आया सो जाइ ॥
Jo Oogya So Aanthavai, Phoolya So Kumilai .
Jo Chiniyaan So Dhahi Padai, Jo Aaya So Jai .
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हिंदी में भावार्थ : इस दोहे का भाव भी कुछ इसी तरह का है की जो ऊगा है, उदय हुआ है, उसका अंत होगा, जो आज फूला है वह आज नहीं तो कल मुरझा जाना है। जो चिणा (निर्माण ) गया है वह एक रोज ढहना ही है। जो आया है वह जायेगा, यही संसार का नियम है। रहस्य यही है की जीवन के रहते हरी नाम का सुमिरण ही जीवन के उद्देश्य को सार्थक करता है। व्यर्थ में जीवन के अनमोल समय को गवाना, मूर्खता है और इसका ज्ञान तभी हो सकता है जब व्यक्ति सद्गुरु की शरण में जाए,  सद्गुरु ही जीव की आँखें खोलता है और उसे सच्ची राह की और अग्रसर करता है। -सत श्री साहेब।
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