संत न बांधै गाँठड़ी पेट समाता लेइ हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

संत न बांधै गाँठड़ी पेट समाता लेइ हिंदी मीनिंग Sant Na Bandhe Ganthadi Pet Samaata Leyi Kabir Dohe

संत न बांधै गाँठड़ी, पेट समाता लेइ।
सांई सूँ सनमुख रहै, जहाँ मागै तहाँ देइ॥
sant na baandhai gaanthadee, pet samaata lei.
saanee soon sanamukh rahai, jahaan maangai tahaan dei.
 
संत न बांधै गाँठड़ी, पेट समाता लेइ। सांई सूँ सनमुख रहै, जहाँ मागै तहाँ देइ॥

संतजन / साधू कभी भी माया का संग्रह नहीं करते हैं। वे उतना ही लेते हैं जिससे उनका पेट भर जाए। संत जो हरी से जुडा हुआ रहता है और उसे जब भी किसी वस्तु की आवश्यकता होती है हरी उसे देते हैं। भाव है की ईश्वर का सुमिरण करने वाले सच्चे साधु और संत वस्तु का भंडारण नहीं करते हैं वे संतोषी परवर्ती के होते हैं।

राँम राम सू दिल मिलि, जन हम पड़ी बिराइ।
मोहि भरोसा इष्ट का, बंदा नरकि न जाइ॥
Raanm Raanm Soon Dil Mili, Jan Ham Padee Birai.
Mohi Bharosa Isht Ka, Banda Naraki Na Jai. 
 
जीव का मन जब हरी में लग जाता है तो उसका संसार से मन विरक्त हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को पूर्ण भरोषा कर लेना चाहिए की वह नरक में नहीं जाने वाला है। भाव है की हरी से अनुरक्त होने पर मोह माया समझ में आने लगती है और व्यक्ति इनसे स्वतः ही दूर होने लगता है। वह व्यर्थ सांसारिक और भौतिक कार्यों में लिप्त नहीं होता है और ऐसे व्यक्ति का आधार ईश्वर होता है जो उसे इस भव से पार अवश्य ही करता है।
 
रचनहार कूँ चीन्हि लै, खैचे कूँ कहा रोइ।
दिल मंदिर मैं पैसि करि, तांणि पछेवड़ा सोइ॥
Rachanahaar Koon Cheenhi Lai, Khaiche Koon Kaha Roi.
Dil Mandir Main Paisi Kari, Taanni Pachhevada Soi. 
 
जिस रचियता ने तुम्हे रचा है/पैदा किया है उसे चिन्हित करो, उसे पहचानने की कोशिस करो। तुम अभावों के पीछे क्यों रोते हो ? अभावों के कारण तुम इतने उदास क्यों हो रहे हो ? तुम्हारा दिल / घट में ईश्वर का मंदिर है वहां पर बिछावना करके सोवो तुम्हे किसी बात का दुःख क्यों। भाव है की हरी ही तुम्हे इस भव सागर से पार लगाएगा, वही मुक्ति का मालिक है। सांसारिक दुखों से विचलित नहीं होकर हरी के समक्ष इसकी विनती करो सभी दुःख अवश्य ही दूर होंगे।

राम नाम करि बोहड़ा, बांही बीज अधाइ।
अंति कालि सूका पड़ै, तौ निरफल कदे न जाइ॥
Raam Naam Kari Bohada, Baanhee Beej Adhai.
Anti Kaali Sooka Padai, Tau Niraphal Kade Na Jai.


राम नाम की जो फसल है (बोहिडा-खंदक/नाली जिससे खेतों में पानी लगाया जाता है ) राम नाम के बोहीडा से हरी भक्ति का बीज खेत में डालो यदि अंत समय में सूखा भी पड़ जाए तो भी इसका बीज निष्फल नहीं जाएगा और परिणाम अवश्य ही प्राप्त होंगे। भाव है की हरी नाम की खेती में फल अवश्य ही प्राप्त होता है।


च्यंतामणि मन में बसै, सोई चित्त मैं आंणि।
बिन च्यंता च्यंता करै, इहै प्रभू की बांणि॥
Chyantaamani Man Mein Basai, Soee Chitt Main Aanni.
Bin Chyanta Chyanta Karai, Ihai Prabhoo Kee Baanni. 
 
सबकी चिंता करने वाला तो तुम्हारे घट में वास करता है, तुम क्यों व्यर्थ में चिंता करते हो? वह सभी का ध्यान रखता है तुम उसी के शरण में जाओ। भाव है की इस सांसारिक जगत की समस्त चिंताओं को हरी के चरणों में अर्पित कर दो तभी तुम बेफिक्र होकर रह सकते हो, वस्तुतः यही जीवन जीने की कला है।

कबीर का तूँ चितवै, का तेरा च्यंत्या होइ।
अणच्यंत्या हरिजी करै, जो तोहि च्यंत न होइ॥
Kabeer Ka Toon Chitavai, Ka Tera Chyantya Hoi.
Anachyantya Harijee Karai, Jo Tohi Chyant Na Hoi. 
 
सांसारिक दुखों में पड़े जीव को साहेब की वाणी है की तुम क्यों व्यर्थ की चिंता में पड़े हो ? तुम्हारे चिंता करने से क्या होने वाला है ? हरी तो उसकी भी खबर रखता है जिसकी कोई चिंता नहीं होती है जो प्रत्याशित है। भाव है की व्यर्थ में दुखी होने से क्या लाभ होने वाला है जब समस्त बातों की खबर रखने वाला ब्रह्न है।

करम करीमां लिखि रह्या, अब कछू लिख्या न जाइ।
मासा घट न तिल बथै, जौ कोटिक करै उपाइ॥
Karam Kareemaan Likhi Rahya, Ab Kachhoo Likhya Na Jai.
Maasa Ghat Na Til Bathai, Jau Kotik Karai Upai. 
 
ईश्वर हमारे कर्मों का हिसाब रखता है और इसमें ना तो मासा बढ़ता है और नाहिं तिल घटता है, चाहे करोड़ों उपाय क्यों नहीं कर लिए जाएं। भाव है की हमारे कर्मों का हिसाब ईश्वर के द्वारा रखा जाता है इसलिए सदैव ही अच्छे कर्म करने चाहिए और नेक राह का अनुसरण करना चाहिए।

जाकौ चेता निरमया, ताकौ तेता होइ।
रती घटै न तिल बधै, जौ सिर कूटै कोइ॥
Jaakau Cheta Niramaya, Taakau Teta Hoi.
Ratee Ghatai Na Til Badhai, Jau Sir Kootai Koi. 
 
ईश्वर जिसको जितना योग्य बनाता है उसे उतना ही देता भी है। जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी ईश्वर के द्वारा दिया जाता है और इसमें ना तो रत्ती भर घटती है और नाहिं तिल बढ़ता है भले ही कोई मनुष्य सर पटक कर मर जाए। भाव है की हमें ईश्वर पर यकीन रख कर अपने कर्म करते रहना चाहिए योग्य परिणाम अवश्य ही प्राप्त हो ही जाता है।

च्यंता न करि अच्यंत रहु, सांई है संभ्रथ।
पसु पंषरू जीव जंत, तिनको गांडि किसा ग्रंथ॥
Cyantā Na Kari Acyanta Rahu, Sāṁī Hai Sambhratha.
Pasu Panṣarū Jīva Janta, Tinakō Gāṇḍi Kisā Grantha. 
 
चिंतित प्राणी को साहेब की वाणी है की हे जीव तू निश्चिंत होकर अपने कर्मों को पूर्ण कर आगे बढ़ता जा क्योंकि साईं बड़ा ही समर्थ है, उसके होते तुझे किसी बात की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पशु पक्षी जीव जंतु की चिंता कौन करता है ? उनकी गणना (गांडी) कौन करता है ? भाव है की जैसे इस संसार के सभी पशु पक्षियों की चिंता ईश्वर के द्वारा की जाती है ऐसे ही तुम्हारी भी चिंता उसी परम ब्रह्म के द्वारा की जायेगी।


कबीर तूँ काहे डरै, सिर परि हरि का हाथ।
हस्ती चढ़ि नहीं डोलिये, कूकर भूसैं जु लाष
Kabeer Toon Kaahe Darai, Sir Pari Hari Ka Haath.
Hastee Chadhi Nahin Doliye, Kookar Bhoosain Ju Laash


जो ईश्वर का भक्त है उसे डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके सर पर तो हरी का हाथ है, ईश्वर की कृपा है। संसार के लोगों के व्यंग्य के विषय में कथन है की लोग कुछ ना कुछ तो कहते ही है और ऐसे लोग कुत्तों के माफीक होते हैं क्या कुत्तों के भौकने के कारण तू हाथी पर चढ़ना छोड़ देना। भाव है की जगत की परवाह मत करो और गुरु के बताए भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते रहो यही मुक्ति पथ है।

मीठा खाँण मधूकरी, भाँति भाँति कौ नाज।
दावा किसही का नहीं, बित बिलाइति बड़ राज॥
Meetha Khaann Madhookaree, Bhaanti Bhaanti Kau Naaj.
Daava Kisahee Ka Nahin, Bit Bilaiti Bad Raaj. 
 
भिक्षा में मिला अन्नं विभिन्न तरह के खानों / व्यंजनों से श्रेष्ठ होता है और उस पर किसी का दावा भी नहीं होता है। यह खाना राजा के भोजन से भी श्रेष्ठ होता है। साधुओं के भिक्षा के सबंध में साहेब की वाणी है की इसमें किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं है।
 
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