मन रो कहणो ना कीजै भजन
राजस्थानी भाषा के इस भजन में मन के अनुसार नहीं चलने का सन्देश दिया है क्योंकि मन स्थिर नहीं रहता है। मन की स्थिति उसी भाँती से होती है जैसे अग्नी में लकड़ी देने से वह स्थिर होने की बजाए अधिक भड़कती है। ऐसे ही मन के अनुसार कार्य करने पर मन अधिक चंचल बन जाता है। मन के अंदर ही अनीति है जिसके कारण बड़े बड़े भूपति, राजा ठगी का शिकार होकर रह गए हैं। ऐसे लोग भी मन की कैद में पड़े हुए जलते हैं (सीजे-उबलकर पकना ). इसी मन का एक अन्य भाग भी होता है जिसकी संगत में साधु महात्मा लोग रहते हैं और 'साहिब' के संग में रहते हैं।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,
मन ले जावे बैकुंठ में, मन करावे फ़जीत,
मैं जानिया मन मर गया, बल जळ हुआ भभूत,
मन तो आगे खड़ा, ज्यों जंगल में भूत,
ए संतो मनरो कहणो ना कीजै,
ओ सन्तां मनरो कहणो ना कीजै,
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
मन ही माय अनीति कहीजै,
बड़ा बड़ा भूप ठगी जे,
जोधा जबर हार गया इण सूं,
पड्या कैद में सीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
इण मन में एक निज मन कहिजे ,
जिणरो संग करीजे,
ऋषि मुनि उन अन्तर मन से,
साहब रे संग रहीजे,
साधु भाई, मन रो कहणो ना कीजै।
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
मन को मोड़ करे कोई सुगरो,
जद थारो मनवो भीजे,
इड़ा पींगळा बोले जुगत से,
सुकमण रो घर लीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
जीव पीवरी दूरी मेटो,
जद थारो मनवा भीजे,
साधू भाई, जद थारो मनवा भीजे,
मदन कहवे इण मन की मस्ती,
भले भाग है कीजै,
साधु भाई, मन रो कहणो ना कीजै,
दव में काठ कितो ही घालो ,
अगनि नाहीं पसीजे,
साधु भाई, मनरो कहणो ना कीजै।
देशी मारवाडी भजन साधु भाई मन रो केणो मत कीजै Sadhu Bhai Man Ro Keno Mat Kije Shyam Vaishnav
Man Ke Haare Haar Hai, Man Ke Jeete Jeet,
Man Le Jaave Baikunth Mein, Man Karaave Fajeet,
Main Jaaniya Man Mar Gaya, Bal Jal Hua Bhabhoot,
Man To Aage Khada, Jyon Jangal Mein Bhoot,