मन न मार्‌या मन करि सके न पंच प्रहारि

मन न मार्‌या मन करि सके न पंच प्रहारि मीनिंग

मन न मार्‌या मन करि, सके न पंच प्रहारि।
सीला साच सरधा नहीं, इंद्री अजहुँ उद्यारि॥
Man Na Maraya Man Kari, Sake Na Pach Prahari,
Seela Saach Saradha Nahi, Indri Ajahu Ughari.
मन न मार्‌या : मन को नहीं मारा, मन को नियंत्रित नहीं किया.
मन करि : पूर्ण प्रयत्न करके, मन लगाकर.
सके न पंच प्रहारि : काम, क्रोध मद लोभ माया, पंच विकरों पर प्रहार नहीं कर पाया है.
सीला साच : शील और सत्य.
सरधा नहीं :
श्रधा नहीं, समर्पण नहीं.
इंद्री : इन्द्रियां.
अजहुँ : अभी भी.
उद्यारि : उघाड़ी ही हैं, नग्न हैं.
कबीर साहेब की वाणी है की साधक ने अपने मन को नियंत्रित करने के लिए पूर्ण निष्ठा से प्रयत्न नहीं किया. उसके प्रयत्नों के अवश्य ही कुछ कमी रह गई है. यही कारण है की पञ्च विकारों पर ठीक प्रकार से, ठोस प्रहार नहीं हो पाया है. ऐसे में शील, सत्य और श्रधा का अभाव होने के कारण अभी भी इन्द्रियाँ उघाड़ी ही पड़ी हैं. इन इन्द्रियों को शील, सत्य और श्रधा से ही ढका जा सकता है. नियंत्रिन के अभाव में अभी भी इन्द्रिया स्वतंत्र हैं और जीवात्मा को अपने मुताबिक़ चलाए जा रही हैं. प्रस्तुत साखी का मूल भाव है की साधक को चाहिए की वह अपने मन को नियंत्रित करे, विषय विकारों पर प्रहार करके उनको समाप्त कर दे जिससे शील, सत्य और श्रधा से इन्द्रियों के प्रभावों को कम कर  सके. मन को नियंत्रित करके ही भक्ति मार्ग पर आगे बढा जा सकता है.  प्रस्तुत साखी में अनुप्रास अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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