कबीर तुरी पलांड़ियाँ चाबक लीया हाथि मीनिंग Kabir Turi Paladiya Meaning Kabir Dohe, Kabir Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Bhavarth)
कबीर तुरी पलांड़ियाँ, चाबक लीया हाथि।दिवस थकाँ साँई मिलौं, पीछे पड़िहै राति।
Kabir Turi Palaadiya, Chaabak Liya Haathi,
Divas Thaka Saai Milo, Picche Padih Raati
तुरी : घोडा.
पलांड़ियाँ : जीन कसना (नियंत्रण में लेना)
चाबक : चाबुक, घोड़े को आगे बढाने के लिए चमड़े की रस्सी जिससे उसे पीटा जाता है.
लीया हाथि : हाथ में थाम ली है, हाथ में ले ली है.
दिवस थकाँ : दिन के रहते हुए,
थकां : रहते,
साँई मिलौं : इश्वर से मिलाप हो जाए, मिलन हो जाए.
पीछे पड़िहै राति : आगे तो रात्री है, विकट परिस्थितियाँ आने वाली हैं.
पलांड़ियाँ : जीन कसना (नियंत्रण में लेना)
चाबक : चाबुक, घोड़े को आगे बढाने के लिए चमड़े की रस्सी जिससे उसे पीटा जाता है.
लीया हाथि : हाथ में थाम ली है, हाथ में ले ली है.
दिवस थकाँ : दिन के रहते हुए,
थकां : रहते,
साँई मिलौं : इश्वर से मिलाप हो जाए, मिलन हो जाए.
पीछे पड़िहै राति : आगे तो रात्री है, विकट परिस्थितियाँ आने वाली हैं.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब अपने मन को नियंत्रित करने की बात कहते हुए सन्देश देते हैं की मैंने अपने मन रूपी घोड़े को अपने वश में कर लिया है. कबीर साहेब ने मन को नियंत्रित करने के लिए मन रूपी घोड़े के लिए साधना रूपी कौड़ा अपने हाथों में थाम लिया है. दिवस के रहते हुए, जीवन की स्वर्णिम समय रहते हुए साधक को अपनी यात्रा (भक्ति) कर लेनी चाहिए नहीं तो आने वाला समय अत्यंत ही विकट आने वाला है जब शरीर भी साथ नहीं देगा. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.