वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ कबीर भजन
एजी सतगुरु आवत देखिया,
और जाजम दीन्ही बिछाय,
अरे फूलन की बिरखा भई,
और रही चमेली छाय,
एजी जिन घर आये संतजन,
वो घर स्वर्ग समान,
पान फूल बरसे सदा,
वहाँ निपजे भक्ति ज्ञान।
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
(वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै। )
सतगुरु आँगन आया,
गंगा गोमती लाया रे,
सतगुरु आँगण आया,
गंगा गोमती लाया रे,
म्हारी निर्मल हो गयी काया,
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
सतगुरु दर्शन दिना,
म्हारां भाग उदय ही कीन्हा,
मेरा धरम भरम सब छीना,
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
सब सखी मिल कर चालो,
केसर तिलक लगाओ रे
म्हारा घणां हेत सूं लेवो बधाई,
म्हे बड़ा प्रेम सूं लेवो बधाई,
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
सतसंग बण गयी भारी,
मंगला चार उचारी रे,
म्हारी खुली ह्रदय की ताली,
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
दास नारायण जस गायों,
चरणों में शीश नवायों,
म्हारा सतगुरु पार उतारें,
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊ रे
बलिहारी जाऊ रे
म्हारा सतगुरु आँगन आया
मैं वारी जाऊ रे,
वारी जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे,
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊ रे,
म्हारा सतगुरु आँगन आया,
मैं वारी जाऊँ रै।
बार बार सुनना चाहोगे ये भजन | वारि जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे | Vaari Jau Re by Tara Singh Dodve
नारायण दास जी का यह भजन कबीर साहेब के विचारों का ही प्रतिबिम्ब है। जिसमें जीवात्मा सत्य को प्राप्त करने सबंधी अपने विचारों को प्रकट करती है। जीवात्मा का मन ही आंगन है और सत्य, सतगुरु है। सत्य के आगमन पर जीवात्मा जिसे बोध है वह गुरु के आत्मा रूपी आंगन में आने पर उसका बलिहारी जाता है, नमन करता है। सतगुरु देव जो वस्तुतः सत्य ही है, के आने पर आत्मा गंगा और गोमती नहा लेती है। इससे उसके भ्रम दूर होते हैं, भरम सारे मायाजनित होते हैं। अज्ञान के अँधेरे में कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं देता है, अँधेरा छंट जाने पर सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लग जाता है।
तू तू करता तू भया,
मुझमें रही न हूं,
बारी तेरे नाम पर,
जित देखूँ तित तूँ।
मैं लगा उस एक से,
एक भया सब माहीं,
सब मेरा मैं सबन का,
तहाँ दूसरा नाहीं।
बुरा जो देखन मैं गया,
बुरा ना मिलिया कोय,
जो दिल खोजा अपना,
मुझसे बुरा नहीं कोय।
मैं वारी जाऊं रे,
बलिहारी जाऊं रे
मेरा सतगुरु आँगन आया
मैं वारी जाऊं रे
सतगुरु आँगन आया,
गंगा गोमती न्हाया
मेरी निर्मल हो गयी काया
मैं वारी जाऊं रे
सब सखी मिलकर हालो,
केसर तिलक लगावो
घणे हेत सूं लेवो बधाई
मैं वारी जाऊं रे
सतगुरु दर्शन दीन्हा,
भाग उदय ही कीन्हा
मेरा धरम भरम सब छीना
मैं वारी जाऊं रे
सतसंग बन गयी भारी,
मंगला गाऊं चारी
मेरी खुली ह्रदय की बारी
मैं वारी जाऊं रे
दास नारायण जस गायो,
चरणों में सीस निमायो
मेरा सतगुरु पार उतारे
मैं वारी जाऊं रे