झूठी माया काया पर क्यों इतना करे गुमान
झूठी माया काया पर क्यों इतना करे गुमान
झूठी माया काया पर क्यों इतना करे गुमान,
माटी तेरा मूल है बंदे, कर्म तेरी पहचान।
ऊँची पगड़ी बाँध के मूर्ख दिखलाए क्यों शान,
जिसको चाहे बाबा साईं, उसको मिले सम्मान।।
राजा हो या रंक हो, कोई निर्धन या धनवान,
साईं के दरबार में सारे बंदे एक समान।।
दिल को न तोड़ो, पाप लगेगा, दिल में वसे भगवान,
युग-युग से यही पाठ पढ़ाए, गीता और कुरान।।
झूठी माया काया पर क्यों इतना करे गुमान,
माटी तेरा मूल है बंदे, कर्म तेरी पहचान।
माटी तेरा मूल है बंदे, कर्म तेरी पहचान।
ऊँची पगड़ी बाँध के मूर्ख दिखलाए क्यों शान,
जिसको चाहे बाबा साईं, उसको मिले सम्मान।।
राजा हो या रंक हो, कोई निर्धन या धनवान,
साईं के दरबार में सारे बंदे एक समान।।
दिल को न तोड़ो, पाप लगेगा, दिल में वसे भगवान,
युग-युग से यही पाठ पढ़ाए, गीता और कुरान।।
झूठी माया काया पर क्यों इतना करे गुमान,
माटी तेरा मूल है बंदे, कर्म तेरी पहचान।
Jhuthi Maya Kaya Par [Full Song] I Sai Charan Ki Daasi
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Sai Bhajan: Jhuthi Maya Kaya Par
Album Name: Sai Charan Ki Daasi
Singer: Kanchan Gulati
Music Director: Pt. Kiran Mishra, Shahid Hamdani
Lyricist: Jitendra Raghuvanshi
Music Label: T-Series
Album Name: Sai Charan Ki Daasi
Singer: Kanchan Gulati
Music Director: Pt. Kiran Mishra, Shahid Hamdani
Lyricist: Jitendra Raghuvanshi
Music Label: T-Series
मानव जीवन की सबसे बड़ी भूल यही है कि वह अपने शरीर, धन, पद और बाहरी आडंबर को ही सब कुछ मान लेता है। यह संसार और इसमें मिलने वाली सारी वस्तुएँ क्षणिक हैं—आज हैं, कल नहीं रहेंगी। शरीर भी मिट्टी से बना है और अंत में उसी में विलीन हो जाता है। इसलिए सच्चा विवेक यही है कि मनुष्य अपने कर्मों को ही अपनी पहचान बनाए। बाहरी दिखावे, झूठे अभिमान और माया के जाल में फँसकर आत्मा अपनी वास्तविकता को भूल जाती है। जीवन का सार यही है कि मनुष्य सच्चाई, विनम्रता और सेवा के मार्ग पर चले, क्योंकि अंततः वही कर्म उसके साथ जाते हैं और वही उसकी असली पहचान बनते हैं।
संसार में ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात जैसी भेदभाव की दीवारें केवल मानव की संकीर्ण सोच का परिणाम हैं। परमात्मा के दरबार में सब समान हैं—चाहे राजा हो या रंक, निर्धन हो या धनवान। सच्चा सम्मान और आदर उसी को मिलता है, जिसकी आत्मा निर्मल और हृदय दयालु है। धर्मग्रंथों ने भी यही सिखाया है कि किसी का दिल न दुखाओ, क्योंकि हर जीव में ईश्वर का वास है। जब तक मनुष्य इस सत्य को नहीं समझता, तब तक उसका जीवन अधूरा है। सच्चा धर्म और सच्ची भक्ति वही है, जिसमें हर प्राणी के प्रति प्रेम, करुणा और समानता का भाव हो। यही वह मार्ग है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।
संसार में ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात जैसी भेदभाव की दीवारें केवल मानव की संकीर्ण सोच का परिणाम हैं। परमात्मा के दरबार में सब समान हैं—चाहे राजा हो या रंक, निर्धन हो या धनवान। सच्चा सम्मान और आदर उसी को मिलता है, जिसकी आत्मा निर्मल और हृदय दयालु है। धर्मग्रंथों ने भी यही सिखाया है कि किसी का दिल न दुखाओ, क्योंकि हर जीव में ईश्वर का वास है। जब तक मनुष्य इस सत्य को नहीं समझता, तब तक उसका जीवन अधूरा है। सच्चा धर्म और सच्ची भक्ति वही है, जिसमें हर प्राणी के प्रति प्रेम, करुणा और समानता का भाव हो। यही वह मार्ग है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।
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Author - Saroj Jangir
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