अधिकमास की अमावस्या क्या होती है Adhikmas Amavashya in Hindi
अधिकमास अमावस्या की तिथि समय-समय पर बदल सकती है, लेकिन यह 3 साल में एक बार आती है, इसलिए उसका महत्व बहुत अधिक होता है। इस महत्वपूर्ण दिन पर अनेक धार्मिक क्रियाएं की जाती हैं।
इस दिन कुंडली में पितृदोष संबंधी ग्रह दोष को दूर करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। आमतौर पर, लोग इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और काला तिल चढ़ाते हैं। पितृसूक्त का पाठ करने से वैवाहिक जीवन में तनाव कम हो सकता है और इससे दुःखों का परिहार हो सकता है। इसके साथ ही, शिवलिंग पर सफेद आक के फूल और बेलपत्र चढ़ाने से लंबी आयु और मृत्यु के भय को दूर किया जा सकता है।
इस दिन कुंडली में पितृदोष संबंधी ग्रह दोष को दूर करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। आमतौर पर, लोग इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और काला तिल चढ़ाते हैं। पितृसूक्त का पाठ करने से वैवाहिक जीवन में तनाव कम हो सकता है और इससे दुःखों का परिहार हो सकता है। इसके साथ ही, शिवलिंग पर सफेद आक के फूल और बेलपत्र चढ़ाने से लंबी आयु और मृत्यु के भय को दूर किया जा सकता है।
क्या होता है पितृ दोष ?
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष का विशेष महत्व होता है और इसे शुभ नहीं माना जाता है। हिंदू धर्म में प्राणी की मृत्यु के बाद उनके आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।
अगर किसी की मृत्यु के समय उनका अंतिम संस्कार उचित तरीके से नहीं होता है, या शाश्त्र सम्मत अंतिम संस्कार नहीं होता है तो उनके परिजनों को पितृदोष लग जाता है। जिन जातकों की कुंडली में पितृदोष होता है, उन्हें अक्सर संतान के सुख से वंचित रहना पड़ता है, और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही, व्यक्ति को नौकरी, व्यवसाय, और घर-गृहस्थी में भी समस्याएं आ सकती हैं। पितृदोष से प्रभावित व्यक्ति को बुरे सपने आने की संभावना रहती है, जो उनकी मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं।
पितृदोष का ध्यान रखकर उपाय करने से व्यक्ति इसके द्रिष्टिगत असामान्य प्रभावों को कम कर सकता है। ज्योतिषशास्त्र में इसके उपायों के माध्यम से प्रायः यह प्रभाव कम किया जा सकता है और व्यक्ति की स्थिति में सुधार हो सकता है। अमावस्या के दिन विशेष आदर्श और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का आचरण करने से पितृ शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस रोज सुबह उठकर नदी में स्नान करना, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करना व्यक्ति के पितृगणों के आत्मा की शांति के लिए एक महत्वपूर्ण होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति उनके शुद्धिकरण और मुक्ति की प्राप्ति की कामना करता है।
शिवलिंग पर तिल चढ़ाने से भी पितृ दोष दूर होता है और उनको शान्ति प्राप्त होती है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने पितृगणों के प्रति आदर और भक्ति प्रकट करता है। यह पितृगणों के आत्मा को शांति और सुकून प्रदान करने में सहायक होती है।
पितरों के लिए तर्पण की सही विधि
चक्रपाणि भट्ट के विचारों के अनुसार पितरलोक में जल की कमी होने का उल्लेख होता है, और इसी कारण पितृगण जल से तर्पण करके तृप्ति प्राप्त करते हैं। तर्पण कार्य को करते समय, "ॐ पितृभ्यः नमः" या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" जैसे मंत्रों का जाप करना सुझाया जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से ही आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, इस विशेष परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार यह माना जाता है।
अधिकमास अमावस्या पर करें ये उपाय
अधिकमास की अमावस्या के दिन भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व होता है और यह पितृदोष को दूर करने में मदद करता है।
कुंडली में पितृदोष संबंधी ग्रह दोष को दूर करने के लिए शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और काला तिल चढ़ाना उपायों में से एक है। इसके साथ ही, लंबी आयु और मृत्यु के भय को दूर करने के लिए शिवलिंग पर सफेद आक का फूल, बेलपत्र, भांग और धतूरा आदि चढ़ाना भी अद्वितीय तरीका है।
अमावस्या तिथि पर पितरों की तर्पणा करना और सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल अर्पित करना भी पितृदोष के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा, मंत्रों का जाप करना भी बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
- अधिकमास की अमावस्या के दिन, नित्यकर्म से विमुक्त होकर, पवित्र नदी में स्नान करें। अगर नदी स्नान की स्थिति में नहीं है, तो घर में ही गंगाजल से पानी में स्नान करें, और साफ कपड़े पहनें।
- पितरों के तर्पण के लिए पीतल के बर्तन, पानी, गंगाजल, काला तिल, कच्चा दूध, जौ, सफेद फूल आदि सामग्री की आवश्यकता होती है। अगर यह सभी सामग्री नहीं हो, तो केवल जल से ही तर्पण किया जा सकता है।
- तर्पण करने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठें। आपकी अँगूठी उंगली में कुश की पवित्र धारण करें। फिर पीतल के बर्तन में पानी डालें। उसमें गंगाजल, काला तिल, कच्चा दूध, जौ, सफेद फूल आदि सामग्री डालें।
- अपने पितृगण की स्मृति में, 3 बार 'तपरांतयामि' कहें और अपने अंगूठे को जल से स्पर्श करें। तर्पण के समय, जल और उपरोक्त सामग्री को अपने पितृगणों के लिए नीचे रखे बर्तन में छोड़ दें। इससे पितरों की तृप्ति होती है और उन्हें आनंद मिलता है। तर्पण के बाद, जल और सामग्री को किसी पेड़ की जड़ में अर्पित कर दें।
- यदि आपको यह विधि करने में किसी कारणवश असमर्थता होती है, तो सिर्फ जल का तर्पण करें और अपने पितृगणों को बताएं कि आप उन्हें जल और वाक्य से तृप्ति प्रदान कर रहे हैं।
अमावस्या का महत्व (Amavasya Significance)
अमावस्या के दिन स्नान, दान, और तर्पण करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि, और आनंद का आशीर्वाद प्राप्त होता है, अतः इस अवास्या का अधिक महत्त्व होता है। अमावस्या के रोज व्रत करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है, बल्कि आने वाले जीवन की समस्याओं से भी राहत प्रदान करता है।
कालसर्प दोष निवारण की पूजा भी अमावस्या के दिन करने से विशेष लाभ होता है। यह दोष किसी के जन्मकुंडली में होने पर व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। इसके निवारण के लिए अमावस्या का दिन उपयुक्त माना जाता है।
पीपल के पेड़ की उपासना भी अमावस्या के दिन करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि, और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है। पीपल के पेड़ को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है और उसकी पूजा करने से अनेक प्रकार की आशीर्वादिता प्राप्त होते हैं।
मिलेगा मां लक्ष्मी का आशीर्वाद
अधिकमास अमावस्या के दिन घर में गाय के घी का दीपक जलाना विशेष महत्त्व रखता है, जिसका मुख्य उद्देश्य मां लक्ष्मी के आगमन करवाना होता है। घर में गाय के घी का दीपक जलाने के साथ, लाल रंग के धागे का उपयोग बत्ती के रूप में करना चाहिए। इसके साथ ही, थोड़ा केसर डालने से आरती का दीपक एक आकर्षणीय और पवित्र दृश्य प्रदान करता है।
भोलेनाथ को चढ़ाएं ये फूल
अमावस्या के दिन शमी और बेल के पत्तों का भोले शंकर को अर्पण करने का काम विशेष महत्व रखता है। इस परंपरागत आचरण के माध्यम से व्यक्ति को उनके जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान शिव के प्रति यह पूजा विशेष भावना और श्रद्धा के साथ की जाती है जो उनकी कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करती है।
भगवान शिव को कनेर का फूल चढ़ाने का अद्वितीय महत्व होता है। यह फूल भगवान की पूजा में प्रयुक्त किया जाता है और इसके माध्यम से व्यक्ति को कई प्रकार के शारीरिक कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। यह पूजा स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बढ़ाती है और शारीरिक और मानसिक सुख-शांति की प्राप्ति के लिए लाभकारी है।
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