द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र एक संस्कृत स्तोत्र है जो बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा और महत्ता का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के भक्तों द्वारा प्रतिदिन प्रातः और शाम को पाठ किया जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के रचयिता का ठीक-ठीक पता नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि यह स्तोत्र एक प्राचीन काल से प्रचलित है। स्तोत्र में, भगवान शिव को ज्योतिर्लिंगों के रूप में नमस्कार किया गया है। ज्योतिर्लिंगों को शिव का ही एक रूप माना जाता है, जो अपने स्वयं के प्रकाश से प्रज्वलित होते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के छंदों का अर्थ निम्नलिखित है:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम् ॥१॥
अर्थ: गुजरात के सोमनाथ में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, और मध्य प्रदेश के मांधाता द्वीप पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग।
अर्थ: मध्य प्रदेश के परलय पर्वत पर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से 30 किलोमीटर दूर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के रामेश्वरम में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, और तमिलनाडु के दारुकावने में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
अर्थ: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड के गौमुख में गौतम ऋषि के आश्रम के पास त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, और उत्तराखंड के हिमालय पर्वत पर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, और गुजरात के शैव मंदिरों के शहर सोमनाथ में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।
अर्थ: जो कोई भी इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम सायं और प्रातः पाठ करता है, उसकी सात जन्मों की पाप समाप्त हो जाती है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह स्तोत्र भक्तों में भक्ति और श्रद्धा की भावना को जागृत करता है।
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