श्री कृष्ण का कैसे पड़ा नाम रणछोड़ Krishna Ko Ranchhod Kyo Kahate Hain

श्री कृष्ण का कैसे पड़ा नाम रणछोड़ Krishna Ko Ranchhod Kyo Kahate Hain

भगवान श्रीकृष्ण की चमत्कारों और लीलाओं के विषय में हम सभी जानते हैं। उनकी कई लीलाएं हैं जो सत्य को स्थापित करने और बुराई को समाप्त करने पर आधारित हैं. श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार के रूप में संसार में आये और जो असीम इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्तियों के स्वामी भी थे, और वे इस क्षमता का कई बार प्रदर्शन कर चुके थे। हालांकि, एक ऐसा समय आया था जब श्रीकृष्ण को अपने भक्तों की रक्षा के लिए रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा था, और उनका नाम 'रणछोड़' पड़ गया। कृष्ण की लीलाओं के कारण ही उनको मुरली मनोहर, कान्हा, कृष्ण मुरारी, नंद गोपाल, माखन चोर, देवकी नंदन आदि नामों से भी जाना जाता है। श्री कृष्ण को रणछोड़ कहने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जो उनकी लीला है। यह अधर्म को नष्ट करने की कहानी भी है।
 
श्री कृष्ण का कैसे पड़ा नाम रणछोड़ Krishna Ko Ranchhod Kyo Kahate Hain?

 
हम भक्तों के मन में यह प्रश्न अवश्य ही आता कि स्वंय भगवान को किसी से भागने की क्या आवश्यकता थी, वे तो समस्त कर्ता धर्ता हैं, लेकिन इसके पीछे भी भगवान् की लीला ही है।
 

भगवान श्री कृष्ण का रणछोड़ नाम कैसे पड़ा (Why Is Lord Krishna Called Ranchhod)

मगधराज जरासंध ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध के चुनौती दी. इस समय जरासंघ न केवल अपने विशाल सेना के साथ आए थे, बल्कि वे यवन देश के राजा कालयवन को भी अपने साथ लाये थे। कालयवन को शिव जी से एक आशीर्वाद प्राप्त था की कोई भी चंद्रवंशी और सूर्यवंशी उसे युद्ध में परास्त नहीं कर सकता है। यही कारण है की कालयवन स्वंय को अजेय मानता था. वह मान बैठा था कि कोई भी उसे युद्ध में हरा नहीं सकता, उसके वरदानों की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हो सकती और न ही उसकी सामर्थ्य से कोई बलवान उसे परास्त कर सकता है।

श्री कृष्ण भवगवान पता था की कालयवन को शिव का आशर्वाद प्राप्त है, जिससे सुदर्शन चक्र भी कालयवन का कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। इस परिस्थिति में श्रीकृष्ण ने कालयवन से कहा की दोनों सेनाओं के साथ युद्ध करने में कोई अपने बल का प्रदर्शन नहीं कर सकता है, उन्हें एकांत में युद्ध करना चाहिए. कालयवन ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और श्री कृष्ण के पीछे चलते हुए वे एक गुफा तक जा पंहुचे. 

श्री कृष्ण जाकर एक गुफा में छिप गए उसमे इक्ष्वाकु नरेश मांधाता के पुत्र और दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद पहले से ही सो रहे थे. मुचकुंद ने असुरों से युद्ध कर देवताओं को युद्ध में जीत दिलवाई थी और इसके उपरान्त इंद्र भगवान् ने उनको विश्राम करने को कहा था, और वे उसी गुफा में विश्राम कर रहे थे. इंद ने उनको वरदान दिया था की उनकी इच्छा के विरुद्ध यदि कोई उसको जगायेगा तो जलकर भस्म हो जाएगा, इस रहस्य का पता श्री कृष्ण जी को था इसीलिए कालयवन को उसी गुफा में लेकर के आये थे. 

श्री कृष्ण जी ने अपना अपना पीतांबर मुचकुंद पर डाल दिया और जाकर के छुप गए. कालयवन श्री कृष्ण जो ढूंढता हुआ गुफा में पंहुचा तो उसने देखा की श्री कृष्ण तो लेते हुए हैं, जबकि वे श्री कृष्ण नहीं अपितु मुचकुंद थे। कालयवन ने मुचकुंद को ललकारते हुए उसे युद्ध करने को कहा, इससे मुचकुंद  नींद से जाग उठे और अत्यंत ही क्रोधित हो उठे. उनकी नज़र जब कालयवन पर पड़ी तो वह वहीँ जलकर राख हो गया। 
 
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आइये श्री कृष्ण जी के अन्य पावन नाम जो समस्त पापों को नष्ट करते हैं :-

कृष्ण

अर्थ: कृष्ण नाम का अर्थ होता है "सभी को अपनी ओर आकर्षित करने वाले"। श्रीकृष्ण का यह नाम उनके चरित्र, व्यक्तित्व, और आकर्षण की महत्वपूर्ण विशेषता को दर्शाता है, जो कि उन्हें सभी के दिलों में आकर्षित करती है।

गिरीधर

अर्थ: गिरीधर का शाब्दिक अर्थ होता है "गिरी" अर्थात पर्वत, और "धर" अर्थात उठाने वाले। इस नाम से दर्शाया जाता है कि श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों में उठाया था, जो गोपियों और गोपालकों की रक्षा के लिए किया था।

मुरलीधर

अर्थ: मुरलीधर का शाब्दिक अर्थ होता है "बांसुरी को धारण करने वाले"। यह नाम श्रीकृष्ण के वीणा या बांसुरी के खेल को संकेतित करता है, जो उन्होंने गोपियों के साथ रसिक लीला में किया था।

पीताम्बरधारी

अर्थ: पीताम्बरधारी का शाब्दिक अर्थ होता है "पीले वस्त्रों को धारण करने वाले"। इस नाम से श्रीकृष्ण के वस्त्रों के रंग को दर्शाया जाता है, जिनमें पीले रंग के वस्त्र प्रमुख थे।

मधुसूदन

अर्थ: मधुसूदन का शाब्दिक अर्थ होता है "मधु नामक दैत्य का वध करने वाले"। श्रीकृष्ण ने मथुरा में मधुसूदन नामक दैत्य को मारकर मथुरा की रक्षा की थी।

यशोदा नंदन

अर्थ: यशोदा नंदन का शाब्दिक अर्थ होता है "माता यशोदा को आनंद देने वाले, यशोदा के पुत्र"। इस नाम से दर्शाया जाता है कि श्रीकृष्ण का अपने भक्तों के साथ खेलने और उन्हें प्रेम से प्यार करने वाला स्वभाव है।

गोपाल

अर्थ: गोपाल का शाब्दिक अर्थ होता है "गौओं /गाय माता अथवा धरती का पालन करने वाले प्रभु"। यह नाम श्रीकृष्ण के गोपालक और गौरक्षक स्वरूप को दर्शाता है, जो उन्होंने वृंदावन में अपनाया था।

गोविन्द

अर्थ: गोविन्द का शाब्दिक अर्थ होता है "गौमाता के रक्षक"। इस नाम से श्रीकृष्ण के गोपालक और गौरक्षक स्वरूप को दर्शाया जाता है, जो वृंदावन में गौओं/गाय की रक्षा करते थे।

आनन्द कंद

अर्थ: आनन्द कंद का शाब्दिक अर्थ होता है "सभी आनन्द राशि प्रदान करने वाले"। यह नाम श्रीकृष्ण के लीलाओं, संगीत, और विनोद के माध्यम से सभी को आनंदित करने की शक्ति को दर्शाता है।

कुंज बिहारी

अर्थ: कुंज बिहारी का शाब्दिक अर्थ होता है "कुंजों का रमण करने वाले, अर्थात घूमने वाले"। इस नाम से श्रीकृष्ण के वृंदावन में गोपियों के साथ खेलने और रसिक लीला का संकेत दिया जाता है। 

चक्रधारी

सुदर्शन चक्र को अपनी तर्जनी अंगुली में धारण करने वाले। ध्यातव्य है कि भगवान कृष्ण श्री हरि विष्णु के अवतार हैं भगवान विष्णु भी सुदर्शन चक्र धारण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के नाम "चक्रधारी" का अर्थ है "जो सुदर्शन चक्र को धारण करता है." सुदर्शन चक्र एक शक्तिशाली चक्र है जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने शत्रुओं को मारने के लिए उपयोग किया जाता है. यह चक्र भगवान विष्णु का एक प्रतीक भी है, जो भगवान श्रीकृष्ण के अवतार हैं.

श्याम

श्याम अर्थात सांवले रंग के ईष्ट।  भगवान श्रीकृष्ण के नाम "श्याम" का अर्थ है "सांवला." भगवान श्रीकृष्ण का रंग सांवला है, और वे इस रंग के लिए जाने जाते हैं. उनका सांवला रंग उनकी दया और करुणा का प्रतीक है.

माधव

माया के पति।  भगवान श्रीकृष्ण के नाम "माधव" का अर्थ है "माया के पति." माया एक शक्तिशाली देवी है, और वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी है. भगवान श्रीकृष्ण और माया का मिलन एक पवित्र मिलन है, और यह प्रेम और समर्पण का प्रतीक है.

मुरारी

मुर नामक दैत्य का अंत करने वाले।  भगवान श्रीकृष्ण के नाम "मुरारी" का अर्थ है "मुर का नाश करने वाला." मुर एक शक्तिशाली दैत्य था, और भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपने सुदर्शन चक्र से मारा था. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा मुर का वध एक महान विजय थी, और यह उनकी शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है.

असुरारि

असुरों के शत्रु - भगवान श्रीकृष्ण के नाम "असुरारी" का अर्थ है "असुरों का शत्रु." भगवान श्रीकृष्ण असुरों के शत्रु हैं, और उन्होंने उन्हें कई बार हराया है. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा असुरों का वध एक महान सेवा है, और यह उनकी दया और करुणा का प्रतीक है.

बनवारी

वनों का विहार करने वाले।  भगवान श्रीकृष्ण के नाम "बनवारी" का अर्थ है "वनों का विहार करने वाला." भगवान श्रीकृष्ण अपने बचपन में वृंदावन के जंगलों में खेलते थे. वे वृंदावन के जंगलों में बहुत खुश थे, और वे वहां बहुत आनंद लेते थे. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा वृंदावन के जंगलों में खेलना उनकी शुद्धता और मासूमियत का प्रतीक है.

मुकुंद

विभिन्न निधियों के स्वामी।- भगवान श्रीकृष्ण के नाम "मुकुंद" का अर्थ है "विभिन्न निधियों के स्वामी." भगवान श्रीकृष्ण विभिन्न निधियों के स्वामी हैं, जैसे कि धन, समृद्धि, ज्ञान और मोक्ष. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा विभिन्न निधियों का स्वामी होना उनकी उदारता और दया का प्रतीक है.

योगीश्वर

योगीजनों तथा संतों द्वारा पूजे जाने वाले ईश्वर।- भगवान श्रीकृष्ण के नाम "योगीश्वर" का अर्थ है "योगीजनों तथा संतों द्वारा पूजे जाने वाले ईश्वर." भगवान श्रीकृष्ण योगीजनों तथा संतों द्वारा पूजे जाते हैं. वे योगीजनों तथा संतों के लिए एक आदर्श हैं, और वे उन्हें ज्ञान और मोक्ष प्रदान करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा योगीजनों तथा संतों द्वारा पूजे जाना उनकी महानता और शक्ति का प्रतीक है.

गोपेश

गोप तथा गोपियों के ईश्वर।- भगवान श्रीकृष्ण के नाम "गोपेश" का अर्थ है "गोप तथा गोपियों के ईश्वर." भगवान श्रीकृष्ण गोप तथा गोपियों के ईश्वर हैं. वे गोप तथा गोपियों के लिए एक मित्र और सखा हैं, और वे उन्हें हमेशा खुश रखते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गोप तथा गोपियों के ईश्वर होना उनकी दया और करुणा का प्रतीक है.

हरि

समस्त दुःखों का हरण करने वाले- भगवान श्रीकृष्ण के नाम "हरि" का अर्थ है "समस्त दुःखों का हरण करने वाले." भगवान श्री
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