बैसनों भया तौ क्या भया बूझा नहीं बबेक हिंदी मीनिंग Baisno Bhaya To Kya Bhaya Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
बैसनों भया तौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक ।
छापा तिलक बनाइ करि, दगध्या लोक अनेक ॥7॥
Baisano Bhaya To Kya Bhaya, Bujha Nahi Vivek,
Chhapa Tilak Banaai kari, Dagdhya Lok Anek.
कबीर इस दोहे में दिखावे पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि कुछ लोग बाहर से तो वैष्णव बनते हैं, लेकिन अंदर से वे विषयों के मोह में फंसे हुए होते हैं। वे कहते हैं कि ऐसे लोग दूसरों को भी भ्रमित करते हैं और अपने जीवन को भी अनेकों बार नष्ट कर लेते हैं. वैष्णव बन जाने से क्या होता है। कबीर कहते हैं कि बाहरी दिखावे से कुछ नहीं होता है।
दूसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि जब कि विवेक को तुमने समझा नहीं। कबीर कहते हैं कि हमें अपने मन को साफ करना चाहिए और विवेक को समझना चाहिए। तीसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि छापे और तिलक लगाकर तुम स्वयं विषय की आग में जलते रहे। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग बाहर से तो वैष्णव बनते हैं, लेकिन अंदर से वे विषयों के मोह में फंसे हुए होते हैं। चौथी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि और दूसरों को भी जलाया। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग दूसरों को भी भ्रमित करते हैं।
दूसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि जब कि विवेक को तुमने समझा नहीं। कबीर कहते हैं कि हमें अपने मन को साफ करना चाहिए और विवेक को समझना चाहिए। तीसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि छापे और तिलक लगाकर तुम स्वयं विषय की आग में जलते रहे। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग बाहर से तो वैष्णव बनते हैं, लेकिन अंदर से वे विषयों के मोह में फंसे हुए होते हैं। चौथी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि और दूसरों को भी जलाया। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग दूसरों को भी भ्रमित करते हैं।
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