जाति बरन कुल खोय के हिंदी मीनिंग Jati Baran Kul Khoy Ke Meaning

जाति बरन कुल खोय के हिंदी मीनिंग Jati Baran Kul Khoy Ke Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

जाति बरन कुल खोय के, भक्ति करै चितलाय |
कहैं कबीर सतगुरु मिलै, आवागमन नशाय ||
 
जाति बरन कुल खोय के हिंदी मीनिंग Jati Baran Kul Khoy Ke Meaning


कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि जाति, कुल और वर्ण के अभिमान को त्याग कर शुद्ध और पूर्ण समर्पित हृदय से भक्ति करनी चाहिए। जब सच्चे गुरु का मिलन होता है, तो उनकी सेवा और सदुपदेश से आवागमन (जन्म-मरण) का दुःख मिट जाता है, वह आवागमन से मुक्त हो जाता है। जीवात्मा को सद्गुरु के सानिध्य में ही भक्ति रूपी मार्ग पर बढ़ना चाहिए.

इस दोहे में कबीर दास जी भक्ति की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि भक्ति करने के लिए जाति, कुल और वर्ण का अभिमान छोड़ देना चाहिए, ये सभी सांसारिक हैं और इनका कोई महत्त्व भी नहीं है। जाती, कुल और सामजिक भेदभाव भक्ति में बाधक हैं, इन बातों का भक्ति में कोई स्थान नहीं है। भक्ति तो मन लगाकर और श्रद्धा से की जानी चाहिए। जब सच्चे गुरु का मिलन होता है, तो उनकी सेवा और उपदेशों से भक्त को मोक्ष मिल जाता है। अतः भक्ति के लिए सद्गुरु की महत्ता को कबीर साहेब ने इस दोहे में स्पष्ट किया है.

जाति, कुल और वर्ण का अभिमान छोड़ना चाहिए क्योंकि जाति, कुल और वर्ण के भेदभाव से मनुष्य के अंदर अहंकार उत्पन्न होता है जो भक्ति में बाधक होता है। यह अहंकार भक्ति के मार्ग में बाधा बनता है। चित्त के समर्पण से भक्ति करने पर इश्वर की प्राप्ति संभव हो पाती है। बिना मन लगाए की गई भक्ति सफल नहीं होती है, जीवात्मा सांसारिक बन्धनों में ही जकड़ी रहती है। इसलिए, साधक को चाहिए कि वह मन लगाकर भक्ति करे, सद्गुरु के बताये मार्ग पर चले। सच्चे गुरु का मिलन होना चाहिए: सच्चे गुरु के मिलन से भक्त को मोक्ष मिल जाता है। इसलिए, भक्त को चाहिए कि वह सच्चे गुरु की खोज करे और उनकी सेवा करे उसकी शिक्षाओं पर चलने से आवागमन, जन्म मरण से वह मुक्त हो जाता है.

 
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