स्वागत है मेरे पोस्ट में, इस पोस्ट में हम महाभारत की एक अद्भुत कहानी के बारे में जानेंगे, जो हमें अर्जुन और चिड़िया की आंख से जुड़ी सीख देती है। यह कहानी ना केवल हमें ध्यान और एकाग्रता का महत्व सिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति अडिग और समर्पित रहते हैं। तो चलिए, इस प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से जानते हैं कि कैसे अर्जुन ने अपनी एकाग्रता और समर्पण से गुरु द्रोणाचार्य की परीक्षा में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया।
महाभारत की कहानी/अर्जुन और चिड़िया की आंख
यह कहानी द्वापरयुग की है, जब पांडव और कौरव पुत्र गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उन दिनों पांडवों को धनुर्विद्या का ज्ञान सिखाया जा रहा था। एक दिन गुरु द्रोणाचार्य ने सोचा कि अपने शिष्यों की परीक्षा ली जाए। इसके लिए उन्होंने सभी पांडव और कौरवों को एक पेड़ के पास बुलाया और कहा, “आज मैं देखना चाहता हूं कि तुम सभी ने धनुर्विद्या में कितनी महारत हासिल की है। इस परीक्षा से पता चलेगा कि तुम सभी मेरे द्वारा सिखाई गई विद्या को कितनी गहराई से समझ पाए हो।”
गुरु द्रोणाचार्य ने उस पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखो, उस पेड़ पर एक नकली चिड़िया लटकी हुई है। तुम्हें बारी-बारी से उसके ठीक आंख के बीचोंबीच निशाना लगाना है। याद रखना, तुम्हारा तीर सिर्फ उसकी आंख के पुतली पर ही लगना चाहिए। क्या आप सभी ने समझ लिया?” सभी ने सिर हिलाकर सहमति जताई।
सबसे पहले गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बुलाया और उसे तीर-कमान थमाते हुए पूछा, “वत्स, तुम्हें इस समय क्या क्या दिखाई दे रहा है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “गुरुदेव, मुझे आप, मेरे भाई, पेड़, चिड़िया और आसपास के पत्ते दिखाई दे रहे हैं।” यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य ने उसे कहा कि वह परीक्षा के लिए तैयार नहीं है, और तीर कमान वापस ले लिया।
इसके बाद, भीम को बुलाया गया। गुरु ने उससे भी वही प्रश्न किया कि उसे क्या-क्या दिख रहा है। भीम ने उत्तर दिया, “गुरुदेव, मुझे आप, मेरे भाई, पेड़, चिड़िया, धरती और आसमान दिखाई दे रहे हैं।” गुरु ने भीम को भी वापस भेज दिया।
इसी प्रकार, गुरु द्रोणाचार्य ने नकुल, सहदेव और अन्य कौरव पुत्रों से भी यही प्रश्न किया। सभी का उत्तर लगभग एक जैसा ही था, उन्हें गुरुदेव, भाई, पेड़, और उसके आसपास की चीजें दिखाई दे रही थीं। गुरु ने सभी को वापस भेज दिया क्योंकि उनमें से कोई भी इस परीक्षा के लिए तैयार नहीं था।
अंत में अर्जुन की बारी आई। गुरु द्रोणाचार्य ने उसे तीर कमान थमाते हुए पूछा, “वत्स अर्जुन, तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?” अर्जुन ने उत्तर दिया, “गुरुदेव, मुझे उस चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है।” गुरु ने फिर पूछा, “क्या तुम्हें उसके अलावा कुछ और दिखाई दे रहा है?” अर्जुन ने कहा, “गुरुदेव, मुझे उस चिड़िया की आंख के सिवा कुछ भी नहीं दिख रहा।” अर्जुन के इस उत्तर से गुरु द्रोणाचार्य संतुष्ट हुए और मुस्कुराते हुए बोले, “वत्स, निशाना साधो।” अर्जुन ने तुरंत तीर चलाया, और तीर सीधा चिड़िया की आंख पर जाकर लगा। इस प्रकार अर्जुन धनुर्विद्या में निपुण बने क्योंकि उन्हें सिर्फ उनका निशाना ही दिखाई दे रहा था।
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सफल होने के लिए जरूरी है कि हमारा ध्यान और एकाग्रता सिर्फ अपने लक्ष्य पर हो। अर्जुन ने केवल चिड़िया की आंख पर ध्यान केंद्रित किया, बाकी चीजों से उसने खुद को विचलित नहीं होने दिया। यह कहानी हमें बताती है कि अगर हम पूरी लगन और ध्यान के साथ किसी काम को करेंगे, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
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Author - Saroj Jangir
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