स्वागत है मेरे ब्लॉग में, इस पोस्ट में हम एक प्रेरणादायक कहानी पर चर्चा करेंगे, जिसका नाम है "बंदर और हाथी की दोस्ती।" यह कहानी हमें सिखाती है कि किस प्रकार हमें एक-दूसरे के गुणों और ताकतों का सम्मान करते हुए मिलकर रहना चाहिए। तो चलिए, इस कहानी को पढ़ते हैं और इसके माध्यम से जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख लेते हैं।
बंदर और हाथी की दोस्ती
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में एक फुर्तीला बंदर और एक शक्तिशाली हाथी रहते थे। हाथी अपनी ताकत के लिए जाना जाता था, वो एक ही झटके में बड़े-बड़े पेड़ों को गिरा सकता था। वहीं, बंदर अपनी फुर्ती और तेज़ी के लिए मशहूर था, जो पेड़ों पर उछलकूद करता दिनभर मस्ती में रहता।
इन दोनों को अपने-अपने गुणों पर बड़ा गर्व था। जहां हाथी अपनी ताकत पर इतराता था, वहीं बंदर अपनी तेज़ी का दिखावा करता था। दोनों के बीच हमेशा बहस होती रहती थी कि कौन बेहतर है। दोनों ही हमेशा अपने आप को बेहतर साबित करने के लिए बहस करते रहते थे।
जंगल में एक बुद्धिमान उल्लू भी रहता था, जो इनकी नोक झोंक देखता रहता था। उसने एक दिन दोनों से कहा, “तुम लोग बहस कर के कुछ साबित नहीं कर सकते। अगर असली ताकतवर के बारे में जानना चाहते हो, तो एक प्रतियोगिता करो।”
बंदर और हाथी को उल्लू की बात जंच गई और उन्होंने पूछा, “प्रतियोगिता में करना क्या होगा?”
उल्लू ने कहा, “इस जंगल से आगे एक और जंगल है। वहाँ एक पुराना पेड़ है जिस पर एक सोने का फल लटका हुआ है। जो पहले उस फल को लेकर लौटेगा, वही असली विजेता कहलाएगा।”
बिना देर किए बंदर और हाथी उस सोने के फल को पाने के लिए निकल पड़े। बंदर अपनी फुर्ती दिखाते हुए पेड़ दर पेड़ छलांग लगाने लगा, और हाथी अपनी गति से आगे बढ़ते हुए रास्ते में आने वाले पेड़ों को हटाने लगा।
कुछ दूर चलते ही उनके सामने एक बड़ी नदी आ गई। नदी को पार करना अनिवार्य था ताकि वे अगले जंगल तक पहुँच सकें। बंदर ने सोचा कि वो फुर्ती से नदी पार कर लेगा, लेकिन जैसे ही उसने छलांग लगाई, तेज़ धारा उसे बहाने लगी। तभी हाथी ने अपनी लंबी सूंड से बंदर को पकड़ा और पानी से बाहर निकाल दिया।
हाथी के इस मदद को देखकर बंदर हैरान हुआ। उसने हाथी को धन्यवाद दिया और मान लिया कि उसकी मदद के बिना वो आगे नहीं बढ़ सकता था। हाथी ने भी उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, “चलो, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं नदी पार कर लूंगा।” इस तरह हाथी की मदद से बंदर ने नदी पार की और दोनों दूसरे जंगल में पहुँच गए।
दूसरे जंगल में पहुँचकर दोनों ने मिलकर सोने के फल वाला पेड़ ढूंढ लिया। हाथी ने अपनी सूंड से पेड़ को गिराने की कोशिश की, पर पेड़ बहुत मजबूत था। हार मानते हुए हाथी ने बंदर से कहा, “अब मैं इस फल को नहीं तोड़ सकता।”
बंदर ने हाथी की निराशा को दूर करते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मैं कोशिश करता हूँ।” फुर्तीले बंदर ने पेड़ पर चढ़कर सोने का फल तोड़ लिया।
फल लेकर दोनों उल्लू के पास लौटे और उसे वह फल सौंप दिया। उल्लू जैसे ही विजेता का ऐलान करने लगा, तभी बंदर और हाथी ने उसे रोक दिया। दोनों ने एक साथ कहा, “उल्लू दादा, हमें अब किसी विजेता की घोषणा की ज़रूरत नहीं है। इस यात्रा में हमने एक-दूसरे की सहायता की है और यही हमारी असली जीत है।”
उल्लू ने उनकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “यही मैं तुम दोनों को समझाना चाहता था। हर किसी के अपने गुण होते हैं, और मिलकर काम करने में ही सच्ची शक्ति और समझदारी होती है।” इस तरह उस दिन से बंदर और हाथी सच्चे मित्र बन गए और जंगल में खुशी-खुशी साथ रहने लगे।
कहानी से सीख
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इन दोनों को अपने-अपने गुणों पर बड़ा गर्व था। जहां हाथी अपनी ताकत पर इतराता था, वहीं बंदर अपनी तेज़ी का दिखावा करता था। दोनों के बीच हमेशा बहस होती रहती थी कि कौन बेहतर है। दोनों ही हमेशा अपने आप को बेहतर साबित करने के लिए बहस करते रहते थे।
जंगल में एक बुद्धिमान उल्लू भी रहता था, जो इनकी नोक झोंक देखता रहता था। उसने एक दिन दोनों से कहा, “तुम लोग बहस कर के कुछ साबित नहीं कर सकते। अगर असली ताकतवर के बारे में जानना चाहते हो, तो एक प्रतियोगिता करो।”
बंदर और हाथी को उल्लू की बात जंच गई और उन्होंने पूछा, “प्रतियोगिता में करना क्या होगा?”
उल्लू ने कहा, “इस जंगल से आगे एक और जंगल है। वहाँ एक पुराना पेड़ है जिस पर एक सोने का फल लटका हुआ है। जो पहले उस फल को लेकर लौटेगा, वही असली विजेता कहलाएगा।”
बिना देर किए बंदर और हाथी उस सोने के फल को पाने के लिए निकल पड़े। बंदर अपनी फुर्ती दिखाते हुए पेड़ दर पेड़ छलांग लगाने लगा, और हाथी अपनी गति से आगे बढ़ते हुए रास्ते में आने वाले पेड़ों को हटाने लगा।
कुछ दूर चलते ही उनके सामने एक बड़ी नदी आ गई। नदी को पार करना अनिवार्य था ताकि वे अगले जंगल तक पहुँच सकें। बंदर ने सोचा कि वो फुर्ती से नदी पार कर लेगा, लेकिन जैसे ही उसने छलांग लगाई, तेज़ धारा उसे बहाने लगी। तभी हाथी ने अपनी लंबी सूंड से बंदर को पकड़ा और पानी से बाहर निकाल दिया।
हाथी के इस मदद को देखकर बंदर हैरान हुआ। उसने हाथी को धन्यवाद दिया और मान लिया कि उसकी मदद के बिना वो आगे नहीं बढ़ सकता था। हाथी ने भी उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, “चलो, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं नदी पार कर लूंगा।” इस तरह हाथी की मदद से बंदर ने नदी पार की और दोनों दूसरे जंगल में पहुँच गए।
दूसरे जंगल में पहुँचकर दोनों ने मिलकर सोने के फल वाला पेड़ ढूंढ लिया। हाथी ने अपनी सूंड से पेड़ को गिराने की कोशिश की, पर पेड़ बहुत मजबूत था। हार मानते हुए हाथी ने बंदर से कहा, “अब मैं इस फल को नहीं तोड़ सकता।”
बंदर ने हाथी की निराशा को दूर करते हुए कहा, “कोई बात नहीं, मैं कोशिश करता हूँ।” फुर्तीले बंदर ने पेड़ पर चढ़कर सोने का फल तोड़ लिया।
फल लेकर दोनों उल्लू के पास लौटे और उसे वह फल सौंप दिया। उल्लू जैसे ही विजेता का ऐलान करने लगा, तभी बंदर और हाथी ने उसे रोक दिया। दोनों ने एक साथ कहा, “उल्लू दादा, हमें अब किसी विजेता की घोषणा की ज़रूरत नहीं है। इस यात्रा में हमने एक-दूसरे की सहायता की है और यही हमारी असली जीत है।”
उल्लू ने उनकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “यही मैं तुम दोनों को समझाना चाहता था। हर किसी के अपने गुण होते हैं, और मिलकर काम करने में ही सच्ची शक्ति और समझदारी होती है।” इस तरह उस दिन से बंदर और हाथी सच्चे मित्र बन गए और जंगल में खुशी-खुशी साथ रहने लगे।
कहानी से सीख
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हर किसी के अपने-अपने गुण होते हैं, जो हमें विशेष बनाते हैं। हमें दूसरों के गुणों और ताकतों का सम्मान करना चाहिए और मिल-जुलकर काम करना चाहिए। इसी में असली खुशी और सफलता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |