पंचतंत्र की कहानी मस्तिष्क पर चक्र Mastishk Ka Chaktra Panchtantra Ki Kahani

नमस्कार दोस्तों, आज के इस पोस्ट में हम एक प्रेरणादायक कहानी के बारे में जानेंगे। जो हमें लालच और संतोष को समझाती है। यह कहानी 'पंचतंत्र' से ली गई है। जिसमें चार ब्राह्मणों की यात्रा और उनके अनुभवों के माध्यम से हमें यह सीखने को मिलता है कि लालच हमें किस तरह से कठिनाइयों में डाल सकता है। आइए बिना देर किए इस अद्भुत कहानी को पढ़ते हैं।

मस्तिष्क पर चक्र पंचतंत्र की कहानी

मस्तिष्क पर चक्र पंचतंत्र की कहानी

बहुत समय पहले सुरई शहर में चार ब्राह्मण रहते थे। वे सभी अच्छे दोस्त थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। गरीबी के कारण वे अपने परिवार और समाज में अपमान सहते रहते थे। एक दिन उन्होंने तय किया कि वे इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए दूसरे राज्य जाएंगे, और अगर वहां भी बात नहीं बनी तो विदेश जाने का भी विचार किया।

यात्रा करते हुए उन्हें प्यास लगी तो वे क्षिप्रा नदी में जाकर पानी पीने लगे। पानी पीकर सभी ने स्नान किया और फिर आगे बढ़ने लगे। चलते चलते उन्हें एक जटाधारी योगी मिले। योगी ने उन्हें अपने आश्रम में आमंत्रित किया और उनके यात्रा के कारणों के बारे में पूछा। ब्राह्मणों ने अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया और कहा कि वे धन कमाना चाहते हैं।

योगी भैरवनाथ उनकी बात सुनकर खुश हुए और उन्होंने उन्हें धन कमाने का एक रास्ता बताया। योगी ने एक दिव्य दीपक उत्पन्न किया और कहा, “इस दीपक को लेकर हिमालय की ओर जाओ। जहां यह दीपक गिरेगा वहां तुम खुदाई करना। तुम्हें वहां बहुत धन मिलेगा।”

ब्राह्मण योगी की बात मानकर हिमालय की ओर चल पड़े। काफी आगे बढ़ने पर दीपक एक जगह गिर गया। वहां उन्होंने खुदाई शुरू की और उन्हें तांबे की खान मिली। एक ब्राह्मण ने कहा, “यह तांबा हमारे लिए काफी नहीं है। आगे और खजाना हो सकता है।” उसके कहने पर दो ब्राह्मण आगे बढ़ गए जबकि एक ब्राह्मण तांबा लेकर घर लौट गया।

इसके बाद फिर से दीपक गिरा, और उन्हें चांदी की खान मिली। ब्राह्मणों ने चांदी निकालना शुरू कर दिया। लेकिन एक ब्राह्मण ने कहा, “आगे और भी खजाने हो सकते हैं।” यह सुनकर दो ब्राह्मण फिर आगे बढ़ गए और एक ब्राह्मण चांदी लेकर वापस चला गया।

आगे चलने पर दीपक फिर गिरा और उन्हें सोने की खान मिली। एक ब्राह्मण ने कहा, “आगे और खजाना हो सकता है,” लेकिन एक ने सोने की खान से संतुष्ट होकर वहीं रुकने का फैसला किया और सोना लेकर घर चला गया। लोभी ब्राह्मण ने आगे बढ़ने का निश्चय किया।

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जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा रास्ता कांटों भरा और बर्फीला होता चला गया। उसने अपने शरीर पर चोटें खाई, लेकिन वह रुका नहीं। बहुत दूर जाने के बाद, उसे एक युवक मिला, जिसके सिर पर चक्र घूम रहा था। लोभी ब्राह्मण ने उससे पूछा, “यह चक्र क्या है और मुझे पानी कहां मिलेगा?”

इतना कहते ही वह चक्र ब्राह्मण के सिर पर लग गया। ब्राह्मण ने फिर उस युवक से पूछा कि यह चक्र क्या है और यह मेरे सिर से कैसे चिपक गया। तब युवक ने कहा, “कुछ साल पहले मैं भी इसी लालच में यहां आया था। तुम्हारे जैसे ही मैंने सवाल किए थे, तो यह चक्र मेरे सिर पर लग गया।” लोभी ब्राह्मण ने पूछा, “मैं कब इस चक्र से मुक्त होऊंगा?” युवक ने कहा, “जब कोई और धन के लालच में यहां आएगा और तुमसे सवाल करेगा, तब यह चक्र तुम्हारे सिर से हटकर उसके सिर पर लग जाएगा।”

उस लोभी ब्राह्मण को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। युवक ने बताया कि वह कई युगों से इस स्थिति में है और उसे पता नहीं कि अब कौन सा युग चल रहा है। यह सुनकर ब्राह्मण के आंसू निकल आए, और वह अपने लालच पर पछताने लगा।

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कहानी से सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच हमें हमेशा मुश्किलों में डालता है। हमें अपने पास जो है, उसी में संतोष करना चाहिए और हर स्थिति में खुश रहना चाहिए। जीवन में संतोष ही असली सुख है। संतोष और धैर्य रखने से जीवन में खुशहाली आती है वहीं लालच हमें मुश्किल में डाल देता है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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