कहानी महर्षि गौतम और प्रेतों का संवाद Maharshi Goutam Aur Preto Se Sanvad Story

इस पोस्ट में हम एक प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानी के बारे में जानेंगे, जो महर्षि गौतम और प्रेतों के बीच हुए संवाद पर आधारित है। इस कहानी से हमें जीवन में शुद्धता, संस्कार और धार्मिक आचरण के महत्व का पता चलता है। कहानी न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इसे जीवन में उतारने से हमें कई बुराइयों से बचने की प्रेरणा भी मिलती है। आइए, इस कहानी को विस्तार से समझते हैं।

Maharshi Goutam Aur Preto Se Sanvad Story

महर्षि गौतम और प्रेतों का संवाद

महर्षि गौतम ने एक बार प्रेतों से पूछा, "इस संसार में हर जीव भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकता। तुम प्रेत लोग किस प्रकार का आहार करते हो?" इस पर प्रेतों ने उत्तर दिया:

"जहाँ भोजन के समय कलह होता है, वहाँ उस भोजन का रस हम प्रेतों को प्राप्त होता है।
जहाँ लोग बिना शुद्धता और स्वच्छता के भोजन करते हैं, या जहाँ भोजन धरती पर रखा होता है, वहाँ भी हम आहार करते हैं।
जो लोग पैर धोए बिना भोजन करते हैं, दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके खाते हैं, या सिर पर वस्त्र लपेटकर भोजन करते हैं, उनका भोजन हमारे लिए होता है।

यदि किसी घर में अशुद्धता फैली रहती है, जैसे रसोई में जूठन पड़ी हो, कलह होता हो, और धार्मिक कर्म जैसे बलिवैश्वदेव का पालन न किया जाता हो, वहाँ भी हमारा अधिकार होता है।

जहाँ अशुद्ध लोग, जैसे रजस्वला स्त्रियाँ, चांडाल, या अशुद्ध जीव जैसे सूअर, श्राद्ध के अन्न को देखते हैं, वह भोजन हमारे लिए होता है।

महर्षि गौतम ने फिर पूछा, "ऐसे कौन से घर होते हैं, जहाँ तुम्हारा प्रवेश नहीं हो पाता?"

"जहाँ बलिवैश्वदेव कर्म किया जाता है और वहाँ से धुएँ की बत्ती निकलती है, वहाँ हम प्रवेश नहीं कर पाते।
जिस घर में सुबह-सवेरे रसोई में शुद्धता रहती है और वेद-मंत्रों की ध्वनि सुनाई देती है, वहाँ हमारी कोई शक्ति नहीं चलती।"

महर्षि गौतम ने यह भी पूछा कि किन कर्मों के कारण मनुष्य को प्रेत योनि प्राप्त होती है।

"जो लोग दूसरों की संपत्ति हड़प लेते हैं, जूठे मुँह यात्रा करते हैं, गाय और ब्राह्मण की हत्या करते हैं, वे प्रेत बन जाते हैं।
झूठी गवाही देने वाले, चुगली करने वाले, और न्याय के विपरीत कार्य करने वाले भी प्रेत योनि में जाते हैं।
जो सूर्य की ओर मुँह करके मल-मूत्र का त्याग करते हैं, वे भी प्रेत योनि में दीर्घकाल तक रहते हैं।
अमावस्या के दिन हल चलाने वाले, विश्वासघाती, ब्रह्म हत्या करने वाले, और पितृद्रोही भी प्रेत बनते हैं।
जो लोग मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार और श्राद्ध से वंचित रहते हैं, वे भी प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं।"

इस कहानी से सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि स्वच्छता, शुद्धता, और धार्मिक आचरण का पालन हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है। अगर हम जीवन में अनुशासन, सत्य, और पवित्रता को अपनाएँ, तो न केवल हमारे घर में सुख-शांति बनी रहती है, बल्कि हम अपने पितरों को भी प्रसन्न कर सकते हैं।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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