स्वागत है मेरे इस पोस्ट में, आज की कहानी में हम जानेंगे भगवान श्रीकृष्ण के बाल जीवन की एक प्यारी और मजेदार घटना के बारे में, जिसे हम 'माखन चोर' के रूप में जानते हैं। यह कहानी श्री कृष्ण की नटखट शरारतों और मासूमियत से भरी हुई है, जो उनके बाल्यकाल की सबसे प्रसिद्ध लीलाओं में से एक है। तो चलिए इस सुंदर कथा को पढ़कर आनंद लेते हैं और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की इस यादगार झलक से प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
कृष्ण माखनचोर की कहानी Makhanchor Ki Kahani
भगवान श्रीकृष्ण का बचपन बहुत ही शरारती और चुलबुला था। गोकुल की गलियों में उनके अनगिनत किस्से मशहूर थे। कभी वो गोपियों की मटकी फोड़ते, तो कभी बछड़ों को सारा दूध पिला देते थे। गोपियां चाहकर भी इस प्यारे से कान्हा को डांट नहीं पाती थीं, क्योंकि उनकी शरारतों के साथ उनकी मासूमियत ने सभी का दिल जीत रखा था। उनकी ऐसी ही एक प्यारी शरारत थी माखन चुराना।
कन्हैया को माखन बहुत पसंद था। माता यशोदा उन्हें जितना भी माखन देती, उतने से उनका मन नहीं भरता था। इसीलिए वो गांव के बच्चों के साथ मिलकर चोरी-छिपे गोपियों के घरों में रखे माखन को चट कर जाते थे। गोपियां जब देखतीं कि माखन बार बार गायब हो रहा है, तो उन्होंने एक योजना बनाई।
माता यशोदा ने माखन से भरी मटकी को एक ऊंचाई पर रस्सी के सहारे टांग दिया, ताकि श्री कृष्ण माखन तक न पहुंच सकें। पर क्या था जो श्री कृष्ण की नजरों से बच सके, उन्होंने माता को माखन रखते हुए देख लिया और अपने दोस्तों के साथ एक नई योजना बनाई।
श्रीकृष्ण ने अपने सभी दोस्तों को इकट्ठा किया और कहा, “हम सब मिलकर एक घेरा बनाएंगे, एक-दूसरे के ऊपर चढ़ेंगे और माखन निकाल लेंगे।” सबने उनकी बात मानी और एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर श्री कृष्ण ने ऊंचाई पर लटकते माखन को निकाल लिया। फिर क्या था, सब दोस्तों ने मिलकर सारा माखन मजे से खा लिया।
माता यशोदा को जब बार-बार माखन चोरी का पता चला, तो उन्होंने सोचा कि अब वे खुद ही पता करेंगी कि आखिर यह माखन चोर है कौन। इस बार उन्होंने मटकी को ऊपर टांग दिया और खुद छुपकर देखने लगीं। कुछ ही देर में कान्हा अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंच गए और मटकी से माखन निकालने लगे। यह देखकर यशोदा को सब समझ में आ गया।
जैसे ही श्री कृष्ण माखन खाने लगे, माता यशोदा ने सामने आकर उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। उनके आते ही सारे बच्चे वहां से भाग गए, लेकिन श्री कृष्ण मटकी की रस्सी पकड़कर झूल रहे थे। माता यशोदा ने उन्हें नीचे उतारा और हल्की-सी डांटते हुए बोलीं, “तो तुम ही हो वो माखन चोर, जिसने मुझे इतना परेशान किया है।” इस पर कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले, “मैया, मैं नहीं माखन खायो।”
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यशोदा माता ने उनकी भोली सूरत देखी और उनकी प्यारी बातों से पिघल गईं। उन्होंने कृष्ण को गले लगा लिया और प्यार से बोलीं, “मेरा प्यारा माखन चोर।” तभी से पूरे गोकुल में श्री कृष्ण को माखन चोर के नाम से बुलाया जाने लगा। इस प्रकार कन्हैया को माखन बहुत प्रिय है, उसके लिए यह माखन चोर भी बन गए। कन्हैया को माखन चोर कर खाते हुए देखने में गोपियों को और यशोदा मैया को भी बहुत आनंद आता था।