इतना फर्क क्यों डाले ओ मेरे खाटू वाले

इतना फर्क क्यों डाले ओ मेरे खाटू वाले

दौलत से कोई खेले,
कहीं रोटियों के लाले,
इतना फर्क क्यों डाले,
ओ मेरे खाटू वाले।।

जिस पर निगाह तेरी,
वो मौज कर रहा है,
तेरी दया से छप्पन,
वो भोग कर रहा है,
उन पर भी नज़र कर दे,
जिन पर नहीं निवाले,
इतना फर्क क्यों डाले,
ओ मेरे खाटू वाले।।

कहीं सोना, चाँदी, हीरे,
मोती कहीं खज़ाना,
कोई तरस रहा है,
खाने को एक दाना,
उनकी भी किस्मतों के,
अब खोल दे तू ताले,
इतना फर्क क्यों डाले,
ओ मेरे खाटू वाले।।

कलियुग का देवता तू,
है हारे का सहारा,
‘विक्की’ शरण में आया,
प्रभु उसको क्यों बिसारा,
माँ से किया जो वादा,
वो वादा तू निभा ले,
इतना फर्क क्यों डाले,
ओ मेरे खाटू वाले।।

दौलत से कोई खेले,
कहीं रोटियों के लाले,
इतना फर्क क्यों डाले,
ओ मेरे खाटू वाले।।


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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