शेर का पुन जीवित होना पंचतंत्र की प्रेरणादायक कहानी
Saroj Jangir
स्वागत है मेरे पोस्ट में, इस पोस्ट में, हम एक प्रेरणादायक कहानी "पंचतंत्र की कहानी: जब शेर जी उठा" के बारे में जानेंगे। इस कहानी में चार दोस्तों की यात्रा और उनकी अलग अलग सोच को दिखाया गया है। यह कहानी हमें सिखाती है कि केवल विद्या ही नहीं, बुद्धिमानी भी जीवन में महत्वपूर्ण है। पढ़ते हैं पूरी कहानी और जानते हैं कि कैसे सही समय पर समझदारी से काम लेकर जीवन के मुश्किल क्षणों से उबरा जाता है।
शेर का पुन जीवित होना पंचतंत्र की कहानी
बहुत समय पहले की बात है। एक शहर था चंद्र नगरी, जहा चार दोस्त रहते थे। उनमें से तीन दोस्त अत्यंत विद्वान ब्राह्मण थे और तरह-तरह की विद्याओं में माहिर थे। लेकिन चौथा दोस्त, जो कि उतना पढ़ा-लिखा नहीं था, बुद्धिमानी और समझदारी में सबसे आगे था। जहां तीनों विद्वान अपनी शिक्षा पर भरोसा करते थे, वहीं चौथा अपनी चतुराई से कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने में सक्षम था।
एक दिन उन चारों ने विचार किया कि उन्हें विदेश जाकर अपनी शिक्षा का सही लाभ उठाना चाहिए और वहां से धन कमाने के अवसरों का फायदा लेना चाहिए। यह सोचकर वे सब अपनी यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में एक ब्राह्मण ने विचार किया कि चूंकि चौथे दोस्त के पास विद्या नहीं है, इसलिए उसे उन सभी द्वारा अर्जित धन में हिस्सा नहीं मिलना चाहिए। उसने कहा कि यह उचित होगा कि वह यहीं से वापस लौट जाए।
इस पर कुछ बहस हुई। दूसरे दोस्त ने पहले का समर्थन किया, लेकिन तीसरे ने विरोध जताया। उसने कहा, "हम बचपन से दोस्त हैं, इसलिए हमें अपनी कमाई को चार हिस्सों में बांटना चाहिए।" सभी इस पर सहमत हो गए और फिर उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी।
यात्रा के दौरान, वे एक घने जंगल से गुजरे। वहीं, उन्हें एक मृत शेर पड़ा दिखाई दिया। तीनों विद्वान ब्राह्मण उत्साहित हो उठे और बोले, "चलो, हम अपनी विद्याओं का चमत्कार दिखाते हैं और इस शेर को फिर से जीवित करते हैं। इससे हमें यश और प्रसिद्धि मिलेगी।"
यह सुनकर चौथे दोस्त ने उन्हें सावधान किया। उसने कहा, "यदि तुम इस शेर को जिंदा कर दोगे, तो यह हम सबके लिए खतरा बन जाएगा। वह हमें खा भी सकता है।" लेकिन तीनों ने उसकी बात नहीं मानी और अपनी विद्या का प्रयोग करने का निर्णय लिया।
पहला ब्राह्मण शेर की हड्डियां जोड़ने लगा, दूसरा उसकी त्वचा और अंगों को आकार देने में जुट गया, और तीसरा उसे प्राण डालने की तैयारी करने लगा। चौथे दोस्त ने खतरे को भांपते हुए उनसे कहा, "ठीक है, तुम अपनी विद्या का प्रदर्शन करो, लेकिन मुझे पहले पेड़ पर चढ़ने दो।" इतना कहकर वह पास के एक पेड़ पर चढ़ गया।
जैसे ही तीसरे ब्राह्मण ने अपनी विद्या से शेर को जीवित किया, वह शेर गरजता हुआ उठ खड़ा हुआ और उसने आसपास खड़े तीनों ब्राह्मणों पर हमला कर दिया। शेर ने उन तीनों को मार डाला। वहीं, पेड़ पर बैठे चौथे दोस्त ने अपनी समझदारी के कारण अपनी जान बचाई।
कहानी की शिक्षा
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि केवल शिक्षा या विद्या के अभिमान में डूबकर कोई काम नहीं करना चाहिए। हर कार्य को सोच-समझकर और उसके परिणामों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। किसी भी काम में विद्या के साथ-साथ बुद्धि का होना भी अति आवश्यक है, क्योंकि बिना बुद्धिमानी के विद्या भी हानिकारक होती है।
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