स्वागत है मेरे इस पोस्ट में। इस लेख में हम एक अद्भुत पंचतंत्र की कहानी "ब्राह्मणी और तिल के बीज" के माध्यम से सीखने वाले हैं कि लोभ से दूर रहना ही सच्चे सुख का रास्ता है। इस कहानी में एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी के बीच हुई बातचीत से हम समझ पाएंगे कि किस प्रकार लालच और अत्यधिक इच्छाएं हमारे जीवन में दुःख का कारण बन सकती हैं। यह प्रेरणादायक कहानी सरल भाषा में है, ताकि आप इसे आसानी से समझ सकें और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए इसे अपनाएं।
ब्राह्मणी और तिल के बीज पंचतंत्र की कहानी
बहुत समय पहले, एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसके घर कुछ अतिथि आए। ब्राह्मण की स्थिति इतनी दयनीय थी कि उन मेहमानों को खिलाने के लिए उसके घर में कुछ भी नहीं था। इस पर ब्राह्मण और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा होने लगा।ब्राह्मणी बोली, “तुम कमाने की इतनी भी सामर्थ्य नहीं रखते कि घर का पेट भर सके। यही कारण है कि आज मेहमान आए हैं और हमें उनकी सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं है।” ब्राह्मण ने कहा कि अभी जो कुछ भी हमारे पास उपलब्ध है उसी से तुम मेहमानों की सेवा करो।
मेहमानों के जाने के बाद ब्राह्मण ने शांतिपूर्वक कहा, “कल कर्क संक्रांति है। मैं भिक्षा लेने दूसरे गांव जाऊंगा, जहां एक ब्राह्मण ने मुझे दान के लिए बुलाया है। तब तक जो भी घर में है, उसी से तुम शांतिपूर्वक निर्वाह करो ।”
पत्नी ने दुखी होकर कहा, “मैंने कभी आराम और अच्छे भोजन का स्वाद नहीं चखा है, ना ही अच्छे वस्त्र पहने हैं। अब तुम कह रहे हो कि जो भी घर में पड़ा है, उसी से काम चलाओ। हमारे पास तो बस एक मुट्ठी तिल हैं। क्या इन तिलों से ही मैं अपना निर्वाह करूं?”
ब्राह्मण ने समझाते हुए कहा, “तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। किसी के पास जितना धन है, उतने में ही संतुष्ट रहना चाहिए। जरूरत से ज्यादा धन की चाहत दुख का कारण बनती है। ज्यादा धन की चाह में इंसान की स्थिति ऐसी हो जाती है जैसे उसके माथे पर शिखा निकल आए।”
पत्नी इस बात को समझ नहीं सकी और पूछा, “यह ‘शिखा’ का क्या मतलब है?” ब्राह्मण ने समझाने के लिए उसे एक शिकारी और गीदड़ की कहानी सुनाई। एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार की तलाश में था। वहां उसने एक विशाल सूअर देखा और धनुष से उसे घायल कर दिया। सूअर ने शिकारी पर हमला कर दिया, जिससे दोनों की मृत्यु हो गई। पास से गुजर रहे एक भूखे गीदड़ ने दोनों के मृत शरीर देखे और बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि आज उसे बिना मेहनत के बहुत सारा भोजन मिल गया है।
गीदड़ ने पहले छोटी चीजें खाने का सोचा, और फिर धनुष को चबाने लगा। धनुष की डोर टूट गई, और इसका एक सिरा गीदड़ के माथे में घुस गया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई। ब्राह्मण ने कहा, “इसलिए मैं कहता हूँ कि जरूरत से ज्यादा चाहत और लालच नुकसानदायक है।”
पत्नी को अब समझ आ गया था। उसने कहा, “ठीक है, जो तिल हैं, उन्हीं से मेहमानों का स्वागत कर दूंगी।”
अगले दिन जब ब्राह्मण भिक्षा के लिए गया, तो ब्राह्मणी ने तिलों को धूप में सुखाने रखा। इतने में एक कुत्ता आया और उन तिलों पर पेशाब कर गया, जिससे वे खराब हो गए। परेशान होकर ब्राह्मणी ने सोचा कि किसी तरह इन गंदे तिलों को किसी से साफ तिलों के बदले बदल लूं।
वह गांव में एक महिला के पास गई, जिसने तिलों को लेने का सोचा। लेकिन उसकी संतान ने उसे सतर्क किया, “इन तिलों में कुछ तो गड़बड़ है, तभी ये गंदे तिलों को बदलना चाह रही हैं।” यह सुनकर महिला ने ब्राह्मणी के तिलों को लेने से मना कर दिया।
कहानी से मिली सीख
हमारे पास जो कुछ भी है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। आवश्यकता से अधिक चाहत दुख का कारण बनती है। दूसरों के पास अधिक देख कर ईर्ष्या करने से कोई लाभ नहीं होता है। असली सुख सादगी और संतोष में है। हमारे पास जो भी उपलब्ध हो हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। इस कहानी से हम सीख सकते हैं कि आवश्यकता से अधिक की चाह से जीवन में असंतोष ही आता है। असंतोष की कारण हम हमारे पास उपलब्ध वस्तुओं का भी सुनियोजित तरीके से उपयोग नहीं कर पाते हैं।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |