स्वागत है मेरे पोस्ट में, आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे महाभारत के उस अद्भुत और प्रेरणादायक पात्र की कहानी, जिसे हम सब 'दानवीर कर्ण' के नाम से जानते हैं। कर्ण का जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने आदर्शों का पालन किया और अंत तक अपने कर्तव्यों पर अडिग रहे। इस कहानी में हम उनके जन्म से जुड़ी घटनाओं का वर्णन करेंगे, जिसमें उनका जन्म, माता कुंती द्वारा त्याग, और एक महान योद्धा के रूप में उनकी पहचान की शुरुआत शामिल है। तो आइए, इस प्रेरणादायक कहानी में डूबते हैं और कर्ण के जीवन की अनकही बातें जानते हैं।
महाभारत की कहानी/कर्ण के जन्म की कहानी
यह कहानी उस महान योद्धा की है, जिसे संसार 'दानवीर कर्ण' के नाम से जानता है। कर्ण वास्तव में पांडवों में सबसे बड़े थे, परंतु इसका रहस्य सिर्फ उनकी माता कुंती को ही पता था। कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले ही हुआ था, और समाज की मर्यादा के कारण कुंती ने उसे त्याग दिया था। लेकिन सवाल यह उठता है कि कुंती का विवाह से पूर्व पुत्र कैसे हुआ? इस प्रश्न के पीछे भी एक अनोखी कहानी है।
कहानी उस समय की है जब कुंती का विवाह नहीं हुआ था, और वे एक राजकुमारी के रूप में अपने पिता के महल में रहती थीं। एक बार प्रसिद्ध ऋषि दुर्वासा पूरे एक वर्ष के लिए उनके महल में ठहरे। कुंती ने पूरे दिल से ऋषि दुर्वासा की सेवा की, जिससे ऋषि बेहद प्रसन्न हुए। अपनी संतुष्टि और प्रसन्नता के प्रतीकस्वरूप उन्होंने कुंती को एक विशेष वरदान दिया। उन्होंने कुंती से कहा कि वह किसी भी देवता का आह्वान कर सकती हैं, और उनके आशीर्वाद से संतान प्राप्ति कर सकती हैं। कुंती के लिए यह एक अत्यंत रहस्यमय और असाधारण वरदान था।
एक दिन कुंती के मन में इस वरदान को परखने की इच्छा जागी। उन्होंने सोच लिया कि वह सूर्य देव का आह्वान करके यह देखना चाहती हैं कि यह वरदान सच में कार्य करता है या नहीं। जब कुंती ने सूर्य देव की प्रार्थना की, तो वे उनकी प्रार्थना सुनकर प्रकट हुए। सूर्य देव के आशीर्वाद से कुंती गर्भवती हो गईं और समय आने पर उन्होंने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम कर्ण रखा गया। इस बालक के शरीर पर जन्म से ही कवच और कुंडल थे, जो उसकी शक्ति और सूर्य देव से संबंध का प्रमाण थे।
कुंती विवाह से पहले पुत्र को जन्म देने के कारण समाज के भय और लोकलाज से चिंतित हो उठीं। अपने पुत्र को समाज के तानों से बचाने और अपनी मर्यादा बनाए रखने के लिए उन्होंने कर्ण को एक डिब्बे में रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया। वह डिब्बा एक सारथी और उसकी पत्नी के हाथों में जा पहुंचा, जिनके स्वयं के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने कर्ण को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया और उसे बहुत प्रेम और देखभाल से पाला। यह पुत्र, जो सूर्य देव का अंश था, बड़ा होकर 'दानवीर कर्ण' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। एक त्यागा हुआ पुत्र होते हुए भी उसने महान योद्धा बनने का सपना देखा और उसे पूरा किया। उन्होंने अपने जीवन में कई बार अपने दानवीर स्वभाव और बहादुरी का परिचय दिया। कर्ण का अंत कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में हुआ, जहां वे पांडवों के विरुद्ध कौरवों के पक्ष में योद्धा के रूप में लड़े। परन्तु अंत तक उन्होंने अपने कर्तव्य, मित्रता और मर्यादा का पालन किया। कर्ण का जीवन हमें सिखाता है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अपने सिद्धांतों और मूल्यों का त्याग नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही दानवीर कर्ण ने यह संदेश भी दिया कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो हमें अपनी मित्रता और सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
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जानिए कैसे हुआ कर्ण का जन्म ? | Suryeputar Karan Birth Mystery in Mahabharat | Gyan Villa
Author - Saroj Jangir
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