युद्ध नहीं जिनके जीवन में रामधारी सिंह दिनकर

युद्ध नहीं जिनके जीवन में रामधारी सिंह दिनकर

 


युद्ध नहीं जिनके जीवन में
वे भी बहुत अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा
या फिर रण से भागे होंगे
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है
जब तक तम से नहीं लड़ेगा
दिनकर नहीं प्रभा बाँटेगा
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा

कभी दहकती ज्वाला के बिन
कुंदन भला बना है सोना
बिना घिसे मेहंदी ने बोलो
कब पाया है रंग सलौना
जीवन के पथ के राही को
क्षण भर भी विश्राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।

अपना अपना युद्ध सभी को
हर युग में लड़ना पड़ता है
और समय के शिलालेख पर
खुद को खुद गढ़ना पड़ता है
सच की खातिर हरिश्चंद्र को
सकुटुम्ब बिक जाना पड़ता
और स्वयं काशी में जाकर
अपना मोल लगाना पड़ता

दासी बनकरके भरती है
पानी पटरानी पनघट में
और खड़ा सम्राट वचन के
कारण काशी के मरघट में
ये अनवरत लड़ा जाता है
होता युद्ध विराम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।

हर रिश्ते की कुछ कीमत है
जिसका मोल चुकाना पड़ता
और प्राण पण से जीवन का
हर अनुबंध निभाना पड़ता
सच ने मार्ग त्याग का देखा
झूठ रहा सुख का अभिलाषी
दशरथ मिटे वचन की खातिर
राम जिये होकर वनवासी

पावक पथ से गुजरीं सीता
रही समय की ऐसी इच्छा
देनी पड़ी नियति के कारण
सीता को भी अग्नि परीक्षा
वन को गईं पुनः वैदेही
निरपराध ही सुनो अकारण
जीतीं रहीं उम्रभर बनकर
त्याग और संघर्ष उदाहरण

लिए गर्भ में निज पुत्रों को
वन का कष्ट स्वयं ही झेला
खुद के बल पर लड़ा सिया ने
जीवन का संग्राम अकेला
धनुष तोड़ कर जो लाए थे
अब वो संग में राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।



रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता जीवन के संघर्ष, त्याग और कठिनाइयों की गहरी व्याख्या करती है। कवि का संदेश स्पष्ट है कि जीवन में युद्ध, संघर्ष और बलिदान अनिवार्य हैं, और बिना संघर्ष के कोई भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। पहले शेर में दिनकर ने यह जताया है कि जो लोग जीवन में युद्ध से बचते हैं, वे शायद खुद को सही रास्ते पर नहीं पा सकते। दीपक का अस्तित्व तभी है जब वह अंधकार से संघर्ष करता है, ठीक उसी तरह जीवन में भी कठिनाईयों का सामना किए बिना हम अपनी असली शक्ति और उद्देश्य नहीं पा सकते।

कविता के माध्यम से दिनकर जीवन के संघर्ष की अनिवार्यता को रेखांकित करते हैं। वे यह बताते हैं कि जैसे सोना बिना घिसे नहीं चमकता, वैसे ही मनुष्य भी बिना संघर्ष के अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान नहीं सकता। "जीवन एक संग्राम नहीं है" यह पंक्ति कविता के केंद्रीय संदेश को व्यक्त करती है कि जीवन में कठिनाईयाँ, तपस्या और संघर्ष की आवश्यकता है। हर युग में मनुष्य को अपने संघर्ष का सामना करना पड़ता है, चाहे वह सत्य के लिए हरिश्चंद्र का त्याग हो या राम का वनवास।

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दिनकर ने सामाजिक और व्यक्तिगत संघर्ष की ओर संकेत किया है, जहां उन्होंने उदाहरण के रूप में दासी, सम्राट, सीता, और राम का उल्लेख किया। यहां यह सिद्ध होता है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ न कुछ बलिदान देना पड़ता है, और यह संघर्ष ही उसे महान बनाता है। कविता में राम और सीता के त्याग और संघर्ष को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो यह दर्शाता है कि जीवन में नैतिक मूल्यों के लिए संघर्ष और त्याग आवश्यक होते हैं।

जीवन केवल सुख का नहीं, बल्कि कष्ट, संघर्ष, और बलिदान का भी एक अनिवार्य हिस्सा है। यही जीवन की सच्ची शिक्षा है, और यह हमें यह समझने की प्रेरणा देती है कि केवल संघर्ष के द्वारा ही हम जीवन के असली उद्देश्य तक पहुँच सकते हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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