हैसियत और सोच रोचक कहानी
राजमहल में एक अनुभवी व्यक्ति नौकरी के लिए आया। जब राजा ने उसकी काबिलियत पूछी, तो उसने कहा,
"मैं किसी भी इंसान या जानवर को देखकर उसकी असलियत बता सकता हूँ।"
राजा उसकी बातों से प्रभावित हुआ और उसे अपने शाही अस्तबल का इंचार्ज बना दिया। कुछ दिनों बाद, राजा ने अपने सबसे कीमती घोड़े के बारे में उसकी राय पूछी। उसने जवाब दिया,
"घोड़ा नस्ली नहीं है!"
राजा को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। उसने घोड़ा बेचने वाले को बुलाया, जिसने बताया कि घोड़ा असल में नस्ली है, लेकिन उसकी माँ जन्म के समय ही मर गई थी, इसलिए उसे एक गाय के साथ पाला गया।
राजा ने नौकर से पूछा, "तुम्हें कैसे पता चला?"
उसने उत्तर दिया, "नस्ली घोड़ा घास खाते समय सिर ऊपर करता है, जबकि यह घास सिर झुका कर खाता है, जैसे गायें खाती हैं।"
राजा उसकी समझदारी से खुश हुआ और उसे ढेरों इनाम देकर रानी के महल में नियुक्त कर दिया।
कुछ समय बाद, राजा ने उससे रानी के बारे में पूछा। उसने कहा,
"तौर-तरीके तो रानी जैसे हैं, लेकिन वे जन्मजात रानी नहीं हैं!"
यह सुनकर राजा हैरान रह गया। जब उसने अपनी माँ से सच्चाई पूछी, तो पता चला कि असल में रानी एक साधारण परिवार की लड़की थी, जिसे महल के वंश को बनाए रखने के लिए गोद लिया गया था।
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राजा ने फिर नौकर से पूछा, "यह तुम्हें कैसे पता चला?"
उसने कहा, "एक असली रानी का व्यवहार दयालु और सौम्य होता है, लेकिन रानी साहिबा नौकरों के साथ बहुत कठोर व्यवहार करती हैं!"
राजा और अधिक प्रभावित हुआ और उसे दरबार में शामिल कर लिया।
कुछ दिनों बाद, राजा ने उससे खुद के बारे में राय मांगी।
नौकर झिझका और कहा, "अगर मेरी जान की सलामती का वचन दें, तो सच बताऊँ।"
राजा ने वादा किया।
फिर उसने कहा, "न तो आप राजवंश के हैं और न ही आपका आचरण राजाओं जैसा है!"
राजा गुस्से से भर गया, लेकिन उसने वचन दिया था, इसलिए वह अपनी माँ के पास गया और सच्चाई पूछी। माँ ने आँसू भरी आँखों से बताया कि वह असल में एक चरवाहे का बेटा था, जिसे निःसंतान राजा-रानी ने गोद लिया था।
अब राजा ने नौकर को बुलाकर पूछा, "यह तुम्हें कैसे पता चला?"
उसने उत्तर दिया, "सच्चे राजा अपने दरबारियों को हीरे-जवाहरात इनाम में देते हैं, लेकिन आप हमेशा भेड़-बकरियाँ और अनाज देते हैं। यह व्यवहार किसी राजा का नहीं, बल्कि एक चरवाहे के बेटे का है!"
धन-दौलत, पदवी और रुतबा बदल सकते हैं, लेकिन इंसान की सोच और व्यवहार उसकी असली पहचान होती है। असली बड़प्पन बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि हमारे कर्मों से तय होता है।