राम मिलण के काज सखी मीरा बाई पदावली

राम मिलण के काज सखी मीरा बाई पदावली

राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
 


राम मिलन के काज सखी मेरे आरत उर में जागी री 

मीरां बाई की रचना भक्ति की यह अनुभूति विरह और मिलन की गहन भावनाओं से ओत-प्रोत है। आत्मा की तड़प केवल एक सांसारिक पीड़ा नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति गहन प्रेम और आत्मसमर्पण की अनुभूति है। यह वह स्थिति है, जहाँ मन किसी अन्य विषय में रम नहीं सकता—यह केवल प्रभु के दर्शनों की आकांक्षा में डूबा रहता है।

विरह की यह वेदना आत्मा को निर्मल कर देती है। जब यह पीड़ा सहन होती है, तब मन की सारी मोह-माया विलीन हो जाती है, और केवल प्रभु की स्मृति शेष रह जाती है। यही विरह, प्रेम का सर्वोच्च रूप है—जहाँ केवल एक पुकार होती है, प्रभु के निकट होने की। यह पुकार केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हृदय की गहराइयों में प्रतिध्वनित होती है।

राम से मिलन की चाह आत्मा की उस यात्रा को दर्शाती है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परम सत्य तक पहुँचने के लिए आतुर है। यह भक्ति केवल इच्छा नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है—जहाँ वह अपने समस्त संदेहों और विकारों को समाप्त कर प्रभु की शरण में स्वयं को अर्पित करना चाहती है। यही भक्ति का चरम रूप है, जहाँ ईश्वर और भक्त के बीच की दूरी मिट जाती है, और केवल प्रेम और आनंद का प्रवाह शेष रहता है।

 
मीराबाई (1498-1547) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उन्हें "राजस्थान की राधा" भी कहा जाता है। मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान के मेड़ता शहर के पास कुड़की गांव में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह एक राठौड़ राजपूत थे और उनकी माता वीर कुमारी एक धर्मनिष्ठ महिला थीं। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन थीं।
मीराबाई का विवाह 1516 में मेवाड़ के राजा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ। लेकिन भोजराज की मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद 1521 में खानवा के युद्ध में हो गई। मीराबाई ने भोजराज की मृत्यु के बाद भी कृष्ण भक्ति में लीन रहना जारी रखा। उन्होंने पति के साथ सती होने से मना कर दिया और कृष्ण को अपना पति मान लिया।
मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के कई पद और गीत लिखे हैं। उनके पदों में कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त होता है। मीराबाई के पद आज भी भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय हैं। उन्हें भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख हस्ति माना जाता है।
मीराबाई की मृत्यु 1547 में द्वारका में हुई। उन्हें द्वारका के बीच में स्थित एक कुंड में समाधि दी गई। मीराबाई की स्मृति में द्वारका में एक भव्य मंदिर भी बना हुआ है।

मीराबाई की कृष्ण भक्ति की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने प्रेम और भक्ति के लिए सभी बाधाओं को पार किया।
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