राम मिलण के काज सखी मीरा बाई पदावली Raam Milan Ke Kaj Sakhi Lyrics
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
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राम मिलन के काज सखी मेरे आरत उर में जागी री मीरां बाई की रचना
Ram Milan Ke Kaj Sakhi, Mere arati Ur Mein Jagi Ri
Ram Milan Ke Kaj Sakhi, Mere arati Ur Mein Jagi Ri.
Tadapat-tadapat Kal Na Parat Hai, Birahaban Ur Lagi Ri.
Nisadin Panth Niharun Pivako, Palak Na Pal Bhar Lagi Ri.
Piv-piv Main Ratun Rat-din, Duji Sudh-budh Bhagi Ri.
Birah Bhujang Mero Dasyo Kalejo, Lahar Halahal Jagi Ri.
Meri arati Meti Gosain, ay Milau Mohi Sagi Ri.
Mira Byakul Ati Ukalani, Piya Ki Umang Ati Lagi Ri.
Ram Milan Ke Kaj Sakhi, Mere arati Ur Mein Jagi Ri.
Tadapat-tadapat Kal Na Parat Hai, Birahaban Ur Lagi Ri.
Nisadin Panth Niharun Pivako, Palak Na Pal Bhar Lagi Ri.
Piv-piv Main Ratun Rat-din, Duji Sudh-budh Bhagi Ri.
Birah Bhujang Mero Dasyo Kalejo, Lahar Halahal Jagi Ri.
Meri arati Meti Gosain, ay Milau Mohi Sagi Ri.
Mira Byakul Ati Ukalani, Piya Ki Umang Ati Lagi Ri.
मीराबाई (1498-1547) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उन्हें "राजस्थान की राधा" भी कहा जाता है। मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान के मेड़ता शहर के पास कुड़की गांव में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह एक राठौड़ राजपूत थे और उनकी माता वीर कुमारी एक धर्मनिष्ठ महिला थीं। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन थीं।
मीराबाई का विवाह 1516 में मेवाड़ के राजा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ। लेकिन भोजराज की मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद 1521 में खानवा के युद्ध में हो गई। मीराबाई ने भोजराज की मृत्यु के बाद भी कृष्ण भक्ति में लीन रहना जारी रखा। उन्होंने पति के साथ सती होने से मना कर दिया और कृष्ण को अपना पति मान लिया।
मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के कई पद और गीत लिखे हैं। उनके पदों में कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त होता है। मीराबाई के पद आज भी भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय हैं। उन्हें भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख हस्ति माना जाता है।
मीराबाई की मृत्यु 1547 में द्वारका में हुई। उन्हें द्वारका के बीच में स्थित एक कुंड में समाधि दी गई। मीराबाई की स्मृति में द्वारका में एक भव्य मंदिर भी बना हुआ है।
मीराबाई की कृष्ण भक्ति की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने प्रेम और भक्ति के लिए सभी बाधाओं को पार किया।
मीराबाई का विवाह 1516 में मेवाड़ के राजा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ। लेकिन भोजराज की मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद 1521 में खानवा के युद्ध में हो गई। मीराबाई ने भोजराज की मृत्यु के बाद भी कृष्ण भक्ति में लीन रहना जारी रखा। उन्होंने पति के साथ सती होने से मना कर दिया और कृष्ण को अपना पति मान लिया।
मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के कई पद और गीत लिखे हैं। उनके पदों में कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त होता है। मीराबाई के पद आज भी भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय हैं। उन्हें भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख हस्ति माना जाता है।
मीराबाई की मृत्यु 1547 में द्वारका में हुई। उन्हें द्वारका के बीच में स्थित एक कुंड में समाधि दी गई। मीराबाई की स्मृति में द्वारका में एक भव्य मंदिर भी बना हुआ है।
मीराबाई की कृष्ण भक्ति की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। वह एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने प्रेम और भक्ति के लिए सभी बाधाओं को पार किया।