चरन कमल बंदौ हरिराई हिंदी मीनिंग
चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,
अंधे को सब कछु दरसाई ॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक
चले सिर छत्र धराई ।
सूरदास स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥
हिंदी अर्थ / भावार्थ : इस पद में सूरदास जी भगवान कृष्ण की कृपा की महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, उसके लिए असंभव भी संभव हो जाता है। जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, वह पंगु भी पर्वत को लांघ सकता है। पंगु व्यक्ति को चलने-फिरने में कठिनाई होती है, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से वह भी पर्वत को लांघ सकता है। जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, वह अंधा भी सब कुछ देख सकता है। अंधे व्यक्ति को देखने में कठिनाई होती है, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से वह भी सब कुछ देख सकता है।
जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, वह बहरा भी सुन सकता है। बहरे व्यक्ति को सुनने में कठिनाई होती है, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से वह भी सुन सकता है। जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, वह गूंगा भी बोल सकता है। गूंगे व्यक्ति को बोलने में कठिनाई होती है, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से वह भी बोल सकता है।
जिस पर भगवान कृष्ण की कृपा होती है, वह कंगाल भी राजा बन सकता है। कंगाल व्यक्ति को अपने जीवन को चलाने में कठिनाई होती है, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से वह भी राजा बन सकता है। ऐसे करूणामय प्रभु की पद-वन्दना कौन अभागा न करेगा। भगवान कृष्ण इतने करुणामय हैं कि वे अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर कर देते हैं। ऐसे करूणामय प्रभु की पद-वन्दना कौन अभागा न करेगा।
इस पद में सूरदास जी ने भगवान कृष्ण की कृपा की महिमा का वर्णन करते हुए एक ओर तो भगवान कृष्ण की शक्ति और दया को दर्शाया है, तो दूसरी ओर उन्होंने अपने भक्ति भाव का भी परिचय दिया है। वे कहते हैं कि वे भगवान कृष्ण के चरणों की वन्दना करने के लिए बार-बार तत्पर रहते हैं।
शब्दार्थ
- राई = राजा
- पंगु = लंगड़ा
- लघै = लांघ जाता है, पार कर जाता है
- मूक = गूंगा
- रंक = निर्धन, गरीब, कंगाल
- छत्र धराई = राज-छत्र धारण करके
- तेहि = तिनके
- पाई = चरण
प्रभु की कृपा ऐसी अनंत शक्ति है, जो असंभव को संभव बना देती है। उनके चरणों में शरण लेने से लंगड़ा पहाड़ चढ़ जाता है, अंधे को सृष्टि का हर रंग दिखाई देता है। बहरा सुनने लगता है, गूंगा बोल उठता है, और निर्धन राजा सा सम्मान पाता है। यह करुणा इतनी गहरी है कि हर जीव को अपने आलिंगन में ले लेती है, बिना भेदभाव के सबको उबारती है। जैसे सूरदास बार-बार उनके चरणों में सिर झुकाते हैं, वैसे ही मन को यह विश्वास है कि प्रभु की दया ही जीवन की हर बाधा को पार करने का एकमात्र सहारा है। उनके प्रेम में डूबना ही सच्ची मुक्ति और आनंद का मार्ग है।
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