कब्ज की राम बाण ओषधि : त्रिफला Herbal Remedies for Constipation Trifala Churna
त्रिफला क्या होता है ? त्रिफला तीन फलों का योग होता है। त्रिफला से तात्पर्य तीन फल हरड़( हरितकी -Terminalia chebula), भरड़ ( बिभीतक -बहेडा-Terminalia bellirica ) और आंवला (अमलकी-Emblica officinalis) से होता है। इन तीनों को निश्चित आयुर्वेदिक अनुपात (3 :2 :1 ) यानी 1 भाग हरड, 2 भाग भरड़ , 3 भाग आंवला का लेकर इनका मिश्रण (पालीहर्बल) तैयार किया जाता है। यह चूर्ण अवस्था में लिया जाता है जिसे तैयार करने के लिए इनके बीज निकालकर इन्हे सुखाने के बाद इनका चूर्ण बना लिया जाता है। आयुर्वेद में त्रिफला को "अमृत" बताया गया है जो इसके गुणों के बारे में बताने के लिए काफी है। आयुर्वेद एक सम्पूर्ण चिकित्सा है और ये भारतीय ऋषि मुनियों के द्वारा जांचे परखे और आजमाएं गए तरीकों पर आधारित है। आयुर्वेद का इतिहास लगभग ५००० वर्ष पुराना रहा है।
चरक संहिता में त्रिफला के गुणों का विस्तार से परिचय प्राप्त होता है। यह चमत्कारी चूर्ण वात, कफ और पित्त को स्थिर करता है। दुनिया में त्रिफला ही एक मात्र ऐसी औशधि है जो वात कफ और पित्त को शांत करता है।
कब्ज की राम बाण ओषधि त्रिफला Herbal Remedies for Constipation Trifala Churna
त्रिफला वात, कफ्फ, और पित्त को शांत करके उन्हें स्थिर अनुपात में रखता है। त्रिफला चूर्ण के अनेकों विधियों से सेवन क्या जाता है। जिस विधि से इसे लिया जाता है उसी के अनुसार इसके परिणाम प्राप्त होते हैं। त्रिफला के चूर्ण को रात को खाना खाने के बात आधे घंटे के बाद गुनगुने पानी के साथ (एक चम्मच-5 ग्राम) लिया जाय तो यह गैस, अपच, खट्टी डकार, कब्ज का अंत करता है। सुबह पेट सही से साफ़ हो जाता है। कब्ज स्वंय कई बिमारियों का जनक होता है। कब्ज के कारण मुंह में छाले, स्वाद कब्ज दूर करे त्रिफला का बेस्वाद होना, अल्सर आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। फाइबर के कारण मल त्यागने में आसानी होती है और मल ढीला लगता है। आँतों के अंदरूनी सतहों को साफ़ करता है और वर्षों से चिपके कचरे को शरीर से बाहर निकालता है। सामान्यतयः हम समझते हैं की हमें मल सही से लग रहा है लेकिन वर्तमान में प्रचलित खाद्य प्रदार्थों के कारण आँतों की सही से सफाई नहीं हो पाती है। आँतों की सतहों पर चिपके अपशिष्ट के कारण भोजन से पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा पहुचती है, त्रिफला चूर्ण सतह पर जमे मल को साफ़ कर देता है।
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पेट के कीड़े समाप्त करने के लिए त्रिफला का चूर्ण अत्यंत लाभदायक होता है। रिंगवॉर्म या टेपवॉर्म जैसे आँतों के कीड़े त्रिफला से समाप्त हो जाते हैं और त्रिफला का गुण है की ये लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ाता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
जाना जाता है। भरड पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। यह पित्त को स्थिर और नियमित करता है। कब्ज को दूर करने में ये गुणकारी है। यह कफ को भी शांत करता है। भरड एंटी ओक्सिडेंट से भरपूर होता। अमाशय को शक्तिशाली बनाता है और पित्त से सबंदित दोषों को दूर करता है। क्षय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। भरड में कई तरह के जैविक योगिक होते हैं जैसे की ग्लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि जो की बहुत लाभदायी होते हैं।
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त्रिफला वात, कफ्फ, और पित्त को शांत करके उन्हें स्थिर अनुपात में रखता है। त्रिफला चूर्ण के अनेकों विधियों से सेवन क्या जाता है। जिस विधि से इसे लिया जाता है उसी के अनुसार इसके परिणाम प्राप्त होते हैं। त्रिफला के चूर्ण को रात को खाना खाने के बात आधे घंटे के बाद गुनगुने पानी के साथ (एक चम्मच-5 ग्राम) लिया जाय तो यह गैस, अपच, खट्टी डकार, कब्ज का अंत करता है। सुबह पेट सही से साफ़ हो जाता है। कब्ज स्वंय कई बिमारियों का जनक होता है। कब्ज के कारण मुंह में छाले, स्वाद कब्ज दूर करे त्रिफला का बेस्वाद होना, अल्सर आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। फाइबर के कारण मल त्यागने में आसानी होती है और मल ढीला लगता है। आँतों के अंदरूनी सतहों को साफ़ करता है और वर्षों से चिपके कचरे को शरीर से बाहर निकालता है। सामान्यतयः हम समझते हैं की हमें मल सही से लग रहा है लेकिन वर्तमान में प्रचलित खाद्य प्रदार्थों के कारण आँतों की सही से सफाई नहीं हो पाती है। आँतों की सतहों पर चिपके अपशिष्ट के कारण भोजन से पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा पहुचती है, त्रिफला चूर्ण सतह पर जमे मल को साफ़ कर देता है।
त्रिफला चूर्ण कैसे लें
त्रिफला चूर्ण को नियमित रूप से रात को सोने से पहले गर्म पानी से लें।
त्रिफला चूर्ण की जानकारी
क्या त्रिफला चूर्ण को नियमित रूप से लिया जा सकता है : नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण का सेवन किया जा सकता है। त्रिफला चूर्ण को लगातार तीन महीने तक लिया जा सकता है। तीन महीने के उपरांत त्रिफला का सेवन बंद कर दें और कुछ समय उपरांत इसे पुनः शुरू किया जा सकता है।
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पेट के कीड़े समाप्त करने के लिए त्रिफला का चूर्ण अत्यंत लाभदायक होता है। रिंगवॉर्म या टेपवॉर्म जैसे आँतों के कीड़े त्रिफला से समाप्त हो जाते हैं और त्रिफला का गुण है की ये लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ाता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
त्रिफला के घटक
त्रिफला चूर्ण में तीन प्रमुख विभिन्न गुणों से युक्त फल होते हैं जिनके बारे में जानना लाभदायक होगा।
हरड़
हरड को हरीतकी भी के नाम से भी जाना जाता है। हरीतिकी के पेड़ से प्राप्त सूखे फल है जिन्हें हरड़ कहा जाता है। हरीतकी (Haritaki) का वानस्पतिक या वैज्ञानिक नाम टर्मिनालिया केबुला (Terminalia chebula) है। इसके अन्य नाम हैं हरड, कदुक्कई, कराकाकाया, कदुक्का पोडी, हर्रा और आयुर्वेद में इसे कायस्था, प्राणदा, अमृता, मेध्या, विजया आदि नामों से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है। पेट से सबंधित व्याधियों जैसे की अपच, पाचन शक्ति का दुर्बल होना, बवासीर होना दस्त आदि में इसका उपयोग असरदायक होता है। हरड विटामिन C का एक अच्छा स्रोत होता है। चरक सहिता में हरड के गुणों के बारे में उल्लेख मिलता है।
भरड़ (बहेड़ा)
बहेड़ा एक ऊँचा पेड़ होता है और इसके फल को भरड कहा जाता है। बहेड़े के पेड़ की छाल को भी औषधीय रूप में उपयोग लिया जाता है। यह पहाड़ों में अत्यधिक रूप से पाए जाते हैं। इस पेड़ के पत्ते बरगद के पेड़ के जैसे होते हैं। इसे हिन्दी में बहेड़ा, संस्कृत में विभीतक के नाम से
जाना जाता है। भरड पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। यह पित्त को स्थिर और नियमित करता है। कब्ज को दूर करने में ये गुणकारी है। यह कफ को भी शांत करता है। भरड एंटी ओक्सिडेंट से भरपूर होता। अमाशय को शक्तिशाली बनाता है और पित्त से सबंदित दोषों को दूर करता है। क्षय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। भरड में कई तरह के जैविक योगिक होते हैं जैसे की ग्लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि जो की बहुत लाभदायी होते हैं।
आँवला
सामान्य रूप से आंवले के गुणों को पहचानकर हमारे घरों में ऋतू में इसकी सब्जी बनायीं जाती है और आंवले का मुरब्बा भी सेहत के लिए काम में लिया जाता है। आंवला भोजन भी है और आयुर्वेदिक दवा भी। इसका वनस्पति नाम एम्बलोका ऑफिजिनालिस या फ़िलेंथस इम्ब्लिका है। आंवला एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट हैं। आंवले का उपयोग विटामिन c के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। आंवले का उपयोग मुख्यतया एंटी-एजिंग को रोकने, संक्रमण की रोकथाम के लिए, आँखों की रौशनी बढ़ाने के लिए, बालों को सेहतमंद करने के लिए, और पाचन तंत्र को सुधारने के लिए किया जाता है। आंवले से लिवर भी मजबूत होता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं इस ब्लॉग पर रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों और टिप्स यथा आयुर्वेद, हेल्थ, स्वास्थ्य टिप्स, पतंजलि आयुर्वेद, झंडू, डाबर, बैद्यनाथ, स्किन केयर आदि ओषधियों पर लेख लिखती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |