पित्त क्या है पित्त को संतुलित कैसे करें What is Pitt Dosh in Ayurveda, Symptoms Hindi

पित्त क्या है पित्त को संतुलित कैसे करें What is Pitt Dosh in Ayurveda, Symptoms of Diseases causes form Bad Pitt (पित्त)

पित्त क्या होता है What is Pitt : 

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में त्रिदोष होते हैं, वात, कफ और पित्त। पित्त वास्तव में लिवर से सबंधित है जो जठराग्नि के लिए जिम्मेदार होता है। लिवर के द्वारा पित्त का निर्माण होता है जो पित्ताशय में संगृहीत होता रहता है। वस्तुतः पित्त दो तत्वों से मिलकर बना होता है ‘अग्नि’ और ‘जल’ और पित्त ही हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर का तापमान और जठराग्नि पित्त के द्वारा ही नियंत्रित होती है। हमारे शरीर में पेट और छोटी आँतों में पित्त की प्रधानता होती है। वात, कफ और पित्त का यदि संतुलन बिगड़ता है तो हम बिमारियों की चपेट में आ जाते हैं। 
 
पित्त क्या है पित्त को संतुलित कैसे करें What is Pitt Dosh in Ayurveda, Symptoms Hindi

पित्त के अनियंत्रित हो जाने पर भी कई बीमारियां दस्तक देने लगती हैं। यदि एक पक्ति में पित्त को समझना हो तो 'शरीर में अग्नि का हावी होना' ही पित्त को परिभाषित करता है। मुख्यतया भोजन के पचने से लेकर इसके रस का बनना, मानसिक तेजस, धातु निर्माण आदि सभी पित्त पर ही आश्रित होता है। पित्त का कार्य मेटाबोलिस्म का होता है।

पित्त दोष के लक्षण :Symptoms f Pitt Dosha

यदि पित्त अनियंत्रित हो जाता है इसे पित्त दोष कहा जाता है। पित्त के प्रभावित होने पर यह वात और कफ पर भी विपरीत प्रभाव डालता है। वस्तुतः वात कफ और पित्त तीनों एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। यह एक बारीक सामंजस्य जैसा होता है। पित्त के बिगड़ने से सब से पहले पाचन तंत्र प्रभावित होता है और यदि पाचन ही बिगड़ गया तो समझे की शरीर में सब कुछ अस्त व्यस्त हो जाता है। पित्त प्रधान व्यक्ति की सामान्य रूप से पहचान करें तो सामान्य कद काठी, शरीर का गर्म रहना, हड्डियों की कोमलता, तिल और मस्से का होना आदि।

पित्त का बढ़ना / पित्त का बिगड़ना, कारण :  Reasons of Pitta Dosha

 पित्त के बिगड़ने और बढ़ने के कुछ कारण है जिनके कारण किसी व्यक्ति का पित्त बढ़ जाता है। 
  • अधिक मसालेदार, तेल तप्पड़, और चटपटे, नमकीन आहार का सेवन करना। 
  • शराब और सिगरेट का अधिक प्रयोग। 
  • हरी सब्जियों का कम सेवन करना। 
  • शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना। 
  • भूख प्यास निकलना, उपवास करना और अनियमित समय पर भोजन ग्रहण करना। 
  • पानी का सेवन कम करना और ड्राई फ्रूट को ज्यादा मात्रा में सेवन करना। 
  • मांस और मछली का अधिकता से सेवन करना। 
  • आवश्यकता से अधिक कड़वे और खट्टे पदार्थों का सेवन करना। 
  • आयोडीन युक्त नमक का आवश्यकता से अधिक प्रयोग करना। 
  • मानसिक और शारीरिक रूप से अधिक मेहनत करना और तनाव में रहना। 
  • अजीर्ण और भोजन का अधपचा ही रहना। 
  • शारीरिक मेहनत का अभाव और व्यायाम की कमी। 
  • अमाशय के अंदर आवश्यकता से अधिक पित्त का जमा होना। 
  • पेट साफ ना होने के कारण पिंडलियों में दर्द होना। 
  • शरीर में फंगल इन्फेक्शन का होना। 
  • पेट में अक्सर जलन का होना। 
  • एसिडिटी का होना, छाती में जलन रहना।
पित्त दोष के लक्षण : पित्त दोष को पहचाने के लिए शरीर के कुछ ख़ास हरकतों पर गौर करें। यह स्वंय ही बता देंगे की पित्त गड़बड़ है।
  • पित्त के गड़बड़ाने से व्यक्ति को जोर से भूख लगती है जो उसकी सहन क्षमता पर भारी पड़ती है। इसी कारण वह अनियमित और अधिक भोजन का सेवन करता है जो अजीर्ण को पैदा करती है। 
  • हथेली और पॉंवों के तलवों में अक्सर जलन महसूस होना और ठन्डे पानी के डालने पर डाह का शांत होना। 
  • पित्त के गड़बड़ा जाने पर नींद की कमी हो जाती है और व्यक्ति हमेशा तनाव में रहता है। 
  • शरीर का तापमान बढ़ जाने के कारण ठंडा खाने का जी करता है। थोड़ी सी गर्मी में ही जी बेहाल हो जाता है और कूलर और ऐसी में भी आराम मिलता है। 
  • पित्त गड़बड़ाए व्यक्ति को बदबूदार पसीना आता है। 
  • पेशाब भी अनियंत्रित हो जाता है और पेशाब में जलन का होना, पेशाब का पीला होना, और बदबूदार होना। 
  • जवानी में ही बालों का सफ़ेद हो जाना बढे हुए पित्त की ही निशानी होती है। 
  • पित्त बढ़ जाने से मुखपाक का होना सामान्य है। अक्सर मुंह में छाले हो जाते हैं जिनमे जलन होती रहती है। 
  • पित्त बढ़ जाने से त्वचा के रोग होने लग जाते हैं। खुजली, फोड़े फुंसी होना आम बात हैं। 
  • हमेशा अकारण थकान का बने रहना और किसी कार्य में मन का नहीं लगना। 
  • शरीर का रंग अचानक से पहले की तुलना में सांवला हो जाना और त्वचा के विकार पैदा हो जाना। 
  • ज्यादा गुस्सा आना, बेहोशी और मितली का आना। 
  • मुंह का स्वाद अचानक बिगड़ जाना और कड़वा महसूस होना।
पित्त दोष के बढ़ जाने पर क्या करें : यदि आपको ऊपर बताये गए लक्षण स्वंय में दिखाई देते हैं तो वैद्य से संपर्क करें और पित्त को शांत करने की आयुर्वेदिक ओषधि लेवे।  
पित्त को शांत करने के लिए आप क्या कर सकते हैं : पित्त को पूर्ण रूप से स्थिर करने के लिए वैद्य के परामर्श के बाद आप भी अपनी आदतों में कुछ बदलाव करके पित्त को स्थिर कर सकते हैं। आइये जानते हैं की हम क्या करें जिससे पित्त शांत हो या फिर और अधिक बढे नहीं। 
  • गर्म तासीर के सभी आहार से परहेज करें और ठंडी तासीर के आहार का ज्यादा सेवन करें। 
  • एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर ताज़ी हरी सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करें। 
  • भोजन का वैद्य के परामर्श के अनुसार एक मेनू बनाएं और समय पर भोजन करें, संयमित मात्रा में भोजन का सेवन करे। 
  • उपवास न करें और समय पर भोजन करें। 
  • गाय के घी का सेवन अधिक मात्रा में करें, गाय का घी पित्त नाशक होता है। 
  • भोजन में सलाद का उपयोग अधिक मात्रा में करें। 
  • अंकुरित अनाज का सेवन अधिक मात्रा में करें और सभी प्रकार की दालों का सेवन करें। 
  • मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटरों के सेवन से परहेज करें।
  • तिल के तेल और सरसों के तेल को वैद्य के परामर्श के उपरांत ही सेवन करें। 
  • ठन्डे तेलों से शरीर की मसाज करें और तैराकी करें। 
  • धुप में ना निकले और ठन्डे पानी से स्नान करें।
  • दिन में ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करें।
  • ज्यादा गर्म कोई भी आहार को ग्रहण नहीं करें चपाती को तवे से उतरते ही नहीं खाएं। 
  • ऋतू के अनुसार फलों के रस का सेवन करें। 
  • त्वचा पर तिल के तेल का शरीर पर मालिश करके स्नान करें।
  • चव्यनप्राश का इस्तेमाल करें, इससे शरीर को पोषण भी प्राप्त होगा और पाचन तंत्र में भी सुधार होता है। 
  • दिन में दो से तीन बार थोड़ा बहुत कुछ भी खाएं ताकि शरीर में अम्ल एकदम से न बढे। 
  • फलों की बात की जाय तो फलों में सेब, एवोकेडो, ताज़े अंजीर, अंगूर (काले या लाल), पका आम, खरबूज़ या तरबूज़, मीठा संतरा, पपीता, नारियल, खजूर, नाशपाती, अनानास, आलू बुखारा, अनार, किशमिश आदि का सेवन करें। 
  • हरी सब्जियों का खूब सेवन करें यथा गाजर, पत्‍तागोभी, शिमला मिर्च, ब्रोकोली, फूलगोभी, ककड़ी, हरी बीन्स, हरी मिर्च, हरी पत्तेदार सब्जियां, मशरूम, भिंडी, आलू, कद्दू, मटर, पालक आदि। इनसे आपको भरपूर एंटीऑक्सीडेंट्स मिलेंगे और पाचन भी सुधरेगा। 
  • वीट ग्रास का ज्यूस के सेवन से भी आपको पित्त में सुधार मिलता है। 
  • नमक से रहे दूर। नमक का सेवन बहुत कम कर दें। 
  • खट्टी वस्तुओं का सेवन सेवन नहीं करें।
पित्त को संतुलित करने वाले आहार : आप अपने आहार में ऐसे तत्वों का सेवन करें जो की पित्त को शांत करते हों।
  • नारियल : नारियल की तासीर ठंडी होती है और यह पित्त को शांत करता है। आप सुबह खाली पेट यदि नारियल पानी का सेवन करें तो यह अधिक गुणकारी होता है। नारियल पाचन को भी सुदृढ़ करता है और शरीर में पानी की कमी को दूर करता है। इसके सेवन से इलेक्ट्रोलाइट्स की पूर्ति होती है। वैसे यदि पित्त की अधिकता के कारण यदि आपके मुंह में छाले हो गए हों तो उसमे भी नारियल का सेवन लाभदायक होता है।
  • तरबूज : तरबूज का सेवन वैसे भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है और इसमें पानी की अधिकता होती है। शरीर को इसके सेवन से ठंडक मिलती है और इलेक्ट्रोलाइट्स की पूर्ति भी होती है। तरबूज एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट्स भी होता है। लिवर और किडनी के लिए तरबूज का सेवन अच्छा माना गया है।
  • खीरा : अपने आहार में खीरा को शामिल करें। इससे शरीर को ठंडक मिलती है और पोषण भी। खीरा के सेवन से पित्त दोष संतुलित होता है। 
  • निम्बू पानी : नीबू शरीर में एंटी ऑक्सीडेंट्स की पूर्ति करने के साथ ठंडक भी पहुंचाता है। निम्बू पानी में आप पोदीना मिलाकर सेवन करें। निम्बू विटामिन C का भी अच्छा स्त्रोत है। 
  • अंकुरित मूंग दाल : अनुकूरित मुंग दाल की तासीर भी ठंडी होती है और यह सुपाच्य भी है। पोषण के अलावा पित्त को भी शांत करती है। 
  • छाछ : छाछ पाचन को सुगम करती है और शरीर में ठंडक भी बढाती है। अधिक खट्टी छाछ का सेवन नहीं करें। 
  • देसी गाय का घी : देसी गाय का घी अमृत तुल्य है। देसी गाय की पहचान उपरांत उसी के घी का सेवन पित्त के रोगियों के लिए लाभदायक माना गया है। देसी घी को ठंडा ग्रहण नहीं करें अपितु भोजन के साथ सेवन करें। देशी गाय का घी शरीर में ठंडक बढ़ाता है।
  • पोदीना : पोदीना की तासीर भी ठंडी होती है। इसे आप छाछ में डालकर या निम्बू पानी अथवा इसकी कच्ची चटनी बनाकर इसका सेवन करें। पित्त में इसका लाभ मिलता है। 
  • नीम की पत्तियां : नीम की पत्तियां भी तासीर में ठंडी होने के साथ रक्त विकार दूर करती हैं। ये एंटी बेक्टेरियल, एंटीफंगल होती है। लिवर और पेन्क्रिया में भी लाभ देती हैं। 
  • एलोवेरा का स्वरस : अलवेरा का ज्यूस भी लाभदायी होता है। 
  • लौकी का स्वरस : लौकी का स्वरस भी पित्त को शांत करता है।
  • त्रिदोष को शांत करें त्रिफला : त्रिफला बहुत ही लाभदायी चूर्ण है। इसके नियमित सेवन से पित्त दोष भी शांत होता है (अधिक पढ़ें : त्रिफला चूर्ण क्या है और इसके लाभ)
  • जीरा करता है पित्त को शांत : जीरा के सेवन से पाचन सुधरता है और जीरा का पाउडर को पानी में उबालकर इसका सेवन करने से गैस बनना, अपच, अजीर्ण, खट्टी डकारें आने में लाभ मिलता है। जीरा आधा चम्मच लें और पानी में उबाल लें। ठंडा होने पर इसका सेवन करें। काला जीरा सबसे उत्तम माना जाता है। काले जीरा का सेवन नियमित रूप से करें। पित्त की अधिकता को शांत करता है जीरा। 
  • अजवाइन : अजवाइन का उपयोग सब्जी में अधिकता से करें। अजवाइन का पानी पिए। दोपहर के भोजन में अजवाइन का उपयोग ज्यादा करें। लस्सी में अजवाइन का भगार लगाएं।
  • धनिया : धनिया भी पित्त नाशक होता है। हरे धनिया का ज्यूस पिए या सूखे धनिया को भिगो कर उसका सेवन करें।  
  • हींग : हींग का उपयोग भी आप अपने आहार में शामिल करें। हींग का भगार लगाएं या फिर हींग की फाकी लेना भी लाभदायक होता है। 
  • बेल पत्र : बिल्व पत्र का सेवन भी शरीर में ठंडक होती है। 
  • ठन्डे दूध का सेवन : ठन्डे दूध के सेवन से भी पित्त में शमन होता है। 
  • कच्चा घी : गाय का कच्चा घी का सेवन करें यह भी पित्त को शांत करती है। 
पित्त को शांत करें ठंडक से : ठन्डे स्थान पर रहें। प्राकृतिक सुगन्धित स्थल पर रहें। अपने रहने के स्थान को ठंडा रखें। चन्द्रमा की रौशनी में रहे। मन को शांत करने वाले मधुर संगीत को सुने और खुश रहने की कोशिश करें। योग और प्रायाणाम करें और साँसों पर ध्यान रखें। पेट साफ़ रखें, गाय के घी और दूध का सेवन करें आपको अवश्य ही लाभ मिलेगा।

आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Disclaimer : इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी https://lyricspandits.blogspot.com की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है। अस्वीकरण सबंधी विस्तार से सूचना के लिए यहाँ क्लिक करे।

एक टिप्पणी भेजें