पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के फायदे Patanjali Vishtindukadi Vati Benefist Usases
विषतिन्दुकादि वटी लाभ और उपयोग इस लेख में आप पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के विषय के जानकारी प्राप्त करेंगे। आप से निवेदन है की यह लेख इस दवा के बारे में जानकारी के लिए है और यह किसी रोग का उपचार नहीं है। वैद्य की सलाह के बगैर किसी भी दवा का सेवन नहीं करें।पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी क्या है Patanjali Vishtundikadi Vati Kya Hai What is Vishtundikadi Vati Hindi
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी एक आयुर्वेदिक दवा है को वटी (टेबलेट) फॉर्म में हैं। वटी से अभिप्राय टेबलेट ले है। पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी का मुख्य घटक विषतिन्दुक (कुचला) है। यह दवा सामान्य रूप से वात रोग, कमर दर्द, सुन्नत, सन्धिवात, जोड़ों के दर्द, साइटिका, सर्वाइकिल, रिंगण आदि विकारों में उपयोगी होती है।(अधिक जाने : पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के विषय में विस्तृत जानकारी )
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के घटक Patanjali Vishtundikadi Vati Ingredients Hindi
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी का घटक विषतिन्दुक (कुचला) है। इसके अलावा इसमें सुपारी, काली मिर्च, इमली के बीज का उपयोग किया जाता है।
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के लाभ /फायदे : Benefits of Patanjali Vishtundikadi Vati Hindi
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के निम्न लाभ होते हैं -- विषतिन्दुकादि वटी का उपयोग तंत्रिका तंत्र विकारों को दूर करने के लिए बहुदा होता है।
- विषतिन्दुकादि वटी का उपयोग कटिशूल (स्लिप डिस्क, कमर दर्द ) सर्वाइकिल (गर्दन दर्द ) के लिए लाभदायी होता है क्योंकि यह पिंच नर्व को रिलैक्स करने में मदद करती है। लकवा, गठिया का दर्द, लंगड़ी का दर्द, जोड़ों के दर्द के लिए अत्यंत ही लाभदायी ओषधि है।
- विषतिन्दुकादि वटी का उपयोग जोड़ों के दर्द में भी लाभदायी होता है।
- विषतिन्दुकादि वटी के उपयोग से नसों की गति को सुधारा जाता है और इनकी संकुचन शक्ति का इजाफा होता है। नसों की कार्यप्रणाली के विकास हो जाने के कारण हृदय की कार्यप्रणाली में भी सुधार होता है।
- विषतिन्दुकादि वटी के उपयोग से रक्तवाहिनियों की गति में सुधार आता है।
- इसके उपयोग से स्वासोच्छ्वास के केन्द्र स्थान को भी उत्तेजना मिलती है परिणामस्वरूप फेफड़ों की शक्ति में सुधार होता है।
- पुरुष की यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए भी यह एक उत्तम दवा होती है। जननेन्द्रिय की नसों में उत्तेजना को बढ़ाती है। हस्त मैथुन जनित शारीरिक दुर्बलता में भी इसका अच्छा परिणाम प्राप्त होता है और शरीर में शक्ति का संचार होता है। कुचला के कारण यह दवा बाजीकरण प्रभाव भी रखती है।
- आँतों के संकुचन को नियमित करता है और पाचन तंत्र को सुधारने में मददगार होती है। अमाशय पर भी इसका अच्छा प्रभाव होता है। आँतों की शिथिलता को समाप्त कर मल त्याग क्रिया को दुरुस्त करता है।
- हृदय और नाड़ी की शिथिलता को इसके माध्यम से दूर किया जा सकता है।
- नसों की कमजोरी के साथ ही हाथ पैरों के ठन्डे पड जाना और अन्य दुर्बलता को दूर किया जा सकता है।
- श्वास नली की सूजन, फेफड़े की सूजन, दमा, अस्थमा, फफड़ों में जमे कफ को दूर करने, स्वांस लेने में हो रही कठिनाई को दूर करने में भी कुचला का उपयोग लाभदायी होता है।
- कुचला श्वसन तंत्र, न्यूरोमस्क्यूलर प्रणाली को उत्तेजित करने और जनरेटिव अंगों की कमजोरी दो दूर करने में प्रभावी दवा होती है।
- बढ़ती उम्र या किसी चोट के कारण उत्पन्न तंतुओं की विकृति को इसके माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
- विषतिन्दुकादि वटी के सेवन से नए बुखार, पुराने बुखार, विषम ज्वर में लाभ मिलता है।
- शरीर में बढ़ चुके वात और कफ को विषतिन्दुकादि वटी के सेवन से नियंत्रित किया जा सकता है।
पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी के विषय पर पतंजलि का कथन :
Divya VISHTINDUKADI VATI is a wonderful herbal remedy for normal functioning of the nervous system. It is a wonderful natural remedy for abdominal pain. This is a natural remedy and produces no side effects. It helps in boosting up the nervous system and gives quick relief from acute nerve pain.पतंजलि विषतिन्दुकादि वटी कहाँ से खरीदें : इसके लिए आप पतंजलिचिकित्सालय पर संपर्क करें या फिर आप इसे पतंजलि आयुर्वेदा की अधिकृत वेबसाइट पर विजिट करे जहाँ पर उक्त दवा को ऑनलाइन खरीद सकते हैं।
https://www.patanjaliayurved.net/product/ayurvedic-medicine/vati/vishtindukadi-vati/213
विषतिन्दुक (कुचला) क्या है
विषतिन्दुक (कुचला) या कुचिला (वानस्पतिक नाम :Strychnos nux vomica) वृक्ष है जो गरम और पहाड़ी इलाकों में बहुतयात से पाया जाता है। इसे 'कुचला', जहर, कजरा, विषतिन्दुक, विष तुन्द कुपील, काकपीलू, मटतिन्दुका, विषतिन्दू, विष द्रुम, रम्यफल, कालकूटक आदि नामों से भी पहचाना जाता हैं। हमारे यहाँ इसका वृक्ष बंगाल, तमिलनाडु और आन्ध्रप्रदेश आदि इलाकों में पाया जाता है। इसके पत्तों से निकली गंध भी बहुत तीखी होती है। यह एक पर्णपाती वृक्ष है तथा भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया का देशज है। इसकी पत्तियाँ ५ से १० सेमी आकार की बड़ी होतीं हैं। इसे अक्सर Poison Nut के नाम से भी जाना जाता है।इसका पौधा एक मीटर तक लम्बा हो सकता है ,जिसकी पत्तियाँँ जामुन जैसी फूल नीले सफेद ,फल छोटा अमरूद जितना, जो पकने पर पीला हो जाता है। इस फल के अंदर 4 से 5 बीज होते हैं जो अत्यंत विषैले होते हैं। अनुभवी वैद्य बड़ी ही सावधानी से इसके फल से प्राप्त बीज से दवाओं का निर्माण करते हैं जो बहुत ही सावधानी से शोधन के उपरान्त की जाती है। आयुर्वेद के अलावा होम्योपैथिक चिकित्सा में भी कुचला से नक्सवोमिक दवाओं का निर्माण करने में कुचला के बीजों का उपयोग किया जाता है। गौरतलब है की इसके शोधन में बहुत ही सावधानी रखी जाती है क्योंकि इसके बीज अत्यंत ही विषकारी होते हैं। कुचला में प्रधान रूप से स्ट्रिकनाइन (Strychinine) और ब्रूसिन (Brucine) नामक तत्व पाए जाते हैं। हमारे शरीर पर होने वाले अधिकतर प्रभाव स्ट्रिकनाइन (Strychinine) के कारण से ही होते हैं।
विषतिन्दुक (कुचला) का गुण धर्म
कुचला की तासीर गरम होती है और इसका वीर्य उष्ण होता है। रस में तिक्त (तीखा ), गुणों में रुक्ष, तीक्षण और लघु एवं विपाक में कटु (कड़वा-कैसला) होता है। यह सुधावर्धक, पौष्टिक, कामोद्दीपक, होता है। कुचला वात नाशक, कफनाशक तथा रक्तरोग, कुष्ट, खुजली, कटिशूल, सर्वाइकिल, जोड़ों का दर्द, बवासीर, रक्ताल्पता, पीलीया और मूत्र विकारों में लाभदायक होता हैविषतिन्दुक (कुचला) का गुण कर्म :
कुचला का उपयोग श्वास जनित रोग (कफ और खांसी ), आमरस, कटीशूल, आध्मान (आफरा), अजीर्ण एवं नाड़ीदौर्बल्य में किया जा सकता है। जानवरों के जहर यथा कुते के जहर, बिच्छु के जहर आदि के जहर को इसके उपयोग से पारम्परिक रूप से समाप्त करने के लिए किया जाता है। अर्धान्ग्वात एवं प्रतिश्याय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है।
आशा है की आपको इस दवा की बेसिक जानकारी प्राप्त करके लाभ प्राप्त हुआ होगा। आप वैद्य की सलाह के उपरांत ही इस दवा का उपयोग करें क्योंकि स्वंय की मर्जी के अनुसार इसका सेवन लाभ के स्थान पर हानिप्रद होता है। अधिक पढ़ें : International Ayurvedic Medical Journal
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin),
is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a
diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me,
shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak
Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from
an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has
presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple
and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life
and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
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