अवलेह का शाब्दिक अर्थ है "चाटना" इसमें लेह (Leh) धातु है जिसका शाब्दिक अर्थ है चाटना अर्थात ऐसी गाढ़ी औषधी जो गाढ़ी हो और जिसे चाटकर सेवन किया जाता हो।
द्राक्षावलेह के घटक निर्माताओं के अनुसार भिन्न होते हैं लेकिन सभी में द्राक्ष अनिवार्य रूप से होती है। सामान्य रूप से द्राक्षावलेह में निम्न घटक होते हैं।
द्राक्षावलेह का उपयोग शारीरिक कमजोरी को दूर करने, पाचन को दुरुस्त करने, मानसिक कमजोरी को दूर करने, शरीर को पोषण देने, लिवर विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है।
आइये अब जान लेते हैं की द्राक्षावलेह में शामिल घटक के स्वतंत्र लाभ क्या होते हैं।
द्राक्षा Vitis vinifera Linnके फायदे
द्राक्षावलेह में मुख्य रूप से दाख/द्राक्ष का उपयोग होता है जो स्वतंत्र रूप से बहुत ही लाभकारी होती है। यह दो प्रकार की होती है सफ़ेद और काली, इनमें से सफ़ेद अधिक मीठी होती है लेकिन काली दाख के उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में अधिकता से किया जाता है। काली दाख की गणना उत्तम फलों में की जाती है ।काली दाख में ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) पाया जाता है जो सेहत के अधिक लाभकारी होती है। यह काली द्राक्ष अधिक लाभकारी होती है और विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर होती है यथा केल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक आदि । काली द्राक्ष में शर्करा और कार्बोहाइडरेड प्रचुर मात्र में मिलते हैं। अंगूर का वानस्पतिक नाम Vitis vinifera Linn। (वाइटिस वाइनिफेरा) है और यह Vitaceae (वाइटेसी) कुल से सबंधित है। द्राक्ष की तासीर हलकी गर्म होती है ।
दाख के सेवन से आपका मौखिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहता है, मसूड़ों में होने वाले विकारों से सुरक्षा मिलती है। एक शोध के मुताबिक़ दाख में एंटीमाइक्रोबियल यौगिक जैसे ओलीनोलिक एसिड, ओलीनोलिक एल्डिहाइड, लिनोलिक एसिड और लिनोलेनिक एसिड पाए जाते हैं जो मसूड़ों की बीमारियों में रोकथाम करते हैं। दाख के सेवन से याददास्त बढती है। कमजोर शरीर / भोजन में पोषक तत्वों के अभाव के कारण याददास्त में कमजोरी आने लगती है।
- दांतों में होने वाली केविटी की रोकथाम मैं भी इसके सेवन से लाभ मिलता है। (1)
- काली किशमिश / दाख के सेवन से अनीमिया रोग में लाभ मिलता है। (2)
- हृदय के लिए द्राक्ष बहुत ही लाभकारी होती है, हृदय घाट के जोखिम को कम करने में सहायक होती है (3)
- एक शोध के मुताबिक दाख के सेवन से कैंसर जैसी भयंकर बिमारी की रोकथाम में मदद मिलती है। (4)
- भोजन के उपरान्त छाती में जलन जैसे विकारों में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है। (5)
- दाख के सेवन से शरीर में सामान्य दुर्बलता दूर होती है। (6)
- वजन नियंत्रण में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है (7)
- यौन दुर्बलता को दूर करने में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है (8)
- शरीर में होने वाले विभिन्न संक्रमण को दूर करने में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है।(9)
- बुखार को दूर करने में भी दाख का सेवन बहुत ही लाभदाई होता है। (10)
- द्राक्ष यह पित्तशामक और रक्तवर्धक होती है।
- द्राक्ष बलगम को पतला करके शरीर से बाहर निकालने में उपयोगी होती है।
- द्राक्ष में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो आँखों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है।
- फेफड़ों के लिए मुनक्का बहुत ही लाभदाई होता है यह फेफड़ों से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालने में उपयोगी होता है।
- मुनक्का आयरन का अच्छा स्त्रोत है यह खून की कमी को दूर करता है।
- मुनक्का में प्रयाप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंटस होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में सहयोगी होते हैं और कई गंभीर बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं।
- मुनक्का के सेवन से शरीर में वायु दोष दूर होता है।
- मुनक्का में ओलेनोलिक एसिड पाया जाता है जिससे दांतों सबंधी विकार दूर होते हैं।
- मुनक्का सेल्सियम का एक अच्छा स्त्रोत है इसलिए कमजोर हड्डियों या हड्डियों से जुड़े विकार यथा गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस के लिए मुनक्का एक अच्छा केल्सियम का स्त्रोत है। गठिया जैसे विकारों के लिए मुनक्का बहुत ही लाभकारी होता है।
- जिन लोगों को एसिडिटी रहती हो उनके लिए मुनक्का बहुत ही लाभकारी होता है, रात भर मुनक्का को भिगो कर सुबह इसके पानी को पीने से एसिडिटी में लाभ मिलता है।
नाग केशर (Nagkeshar) Mesua ferrea Linn. (मेसुआ फेरिआ)
नागकेशर का अंग्रेजी में नाम Mesua ferrea Linn. (मेसुआ फेरिआ) है और यह Clusiaceae (क्लूसिऐसी) से सबंधीत पादप होता है। नागकेशर को कई नामों से जाना जाता है यथा नागकेसर, नागेसर, पीला नागकेशर, नागचम्पा, नागपुष्प, पुष्परेचन, पिंजर, कांचन, फणिकेसर, स्वरघातन आदि। नागकेशर प्रधान रूप सेदक्षिणी भारत, पूर्व बंगाल, और पूर्वी हिमालय में अधिकता से पाया जाता है। इस पौधे के जो फूल लगते हैं वे पीले रंग के होते हैं जिनका उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है। इसके पुष्प की सुगंध अत्यंत ही तेज होती है। नागकेशर स्वाद में कसैला, तीखा, तासीर में गर्म, लघु, रूक्ष, कफ-पित्तशामक, आमपाचक, व्रणरोपक तथा सन्धानकारक होता है। वात जनित विकारों के उपचार के लिए नागकेशर का उपयोग लाभदाई होता है यथा विभिन्न दर्द निवारक दवाओं (हड्डियों और जोड़ों ) के लिए नागकेशर का तेल लाभकारी होता है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए यदि कोई ठंडी प्रकृति का व्यक्ति है उसके लिए यह अत्यंत ही लाभकारी होती है।
नागकेशर के प्रमुख लाभ Benefits of Nagkeshar
- नागकेशर के तेल से जोड़ों का दर्द दूर होता है, गठिया रोग में इसके तेल की मालिश करने पर लाभ मिलता है।
- शीतपित्त विकारों के उपचार के लिए नागकेशर उत्तम औशधि है।
- सरदर्द और गले के विकारों में नागेशर लाभकारी होती है।
- खांसी जुकाम और सर्दी आदि विकारों में इसके सेवन से लाभ मिलता है।
- गर्भधारण करने के लिए प्राचीन समय से ही नागकेसर का उपयोग होता है।
तेजपत्र (तेजपत्ता) क्या है और इसके लाभ Benefits of Bay Leaf Tejpatra in Hindi
तेजपत्र तडके में उपयोग करने के लिए रसोई में रखा जाता है जिसका पत्ता सफेदे के वृक्ष के पत्ते के समान होता है, शायद ही ऐसी कोई रसोई हो जिसमे तेजपत्र को नहीं रखा जाता है क्योंकि यह सभी खड़े मसालों में से बहुधा उपयोग में लाया जाता है। तेजपत्ते का वैज्ञानिक नाम लॉरस नोबिलिस Cinnamomum tamala Nees (Buch.-Ham) & Eberm. (laurus nobilis) है और यह Lauraceae कुल से सम्बंधित है। इसे अंग्रेजी में Bay leaf (Laurus nobilis) के नाम से जाना जाता है। यह पूरे यूरोपीय, एशियाई उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और एशियाई देशों में पाया जाता है और इसकी व्यावसायिक खेती भी की जाती है। तेजपत्र में tannins, flavones, flavonoids, alkaloids, eugenol, linalool, methyl chavicol, and anthocyanins पाए जाते हैं जिनके कारण यह एंटीऑक्सिडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, इम्युनोस्टिमिमुलेंट, एंटीकोलिनर्जिक, ऐंटिफंगल, कीटरोधी, रोगरोधी, एंटीमुटाजेनिक, एनाल्जेसिक, एंटीफ्लेमेट्री होता है। तेजपत्र स्वभाव में हल्का, तीखा, कड़वा, मधुर, होता है। इसकी तासीर गर्म होती है और यह पाचन तंत्र को दुरुस्त करने वाला होता है। तेजपत्र से मस्तिस्क की गदिविधियाँ तेज होती हैं। भारत में तेजपत्र सिक्किम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में अधिकता से पाया जाता है। इसका पेड़ सदा ही हरा रहता है। तेजपत्र की तासीर गर्म होती है। तेजपत्र में पानी, 5.44 ग्राम, ऊर्जा-313 कैलोरी, प्रोटीन-7.61 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट-74.97 ग्राम, फैट-8.36 ग्राम, फाइबर- 26.3 ग्राम, कैल्शियम 834 मिलीग्राम, आयरन-43.00 मिलीग्राम, विटामिन-सी-46.5 मिलीग्राम होता है (
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तेजपत्र के लाभ/फ़ायदे Benefits of Tejpatra in Hindi
- तेज पत्र एंटी-इंफ्लैमटोरी, एंटीफंगल, एंटीबैक्टिरीयल गुणों से भरपूर होता है।
- तेजपत्र बेलीफ के सेवन से डायबिटीज (टाइप २) के रोगियों में लाभ मिल सकता है।
- स्वसन विकारों में भी तेजपत्र के सेवन से लाभ मिलता है, इसमें सुजन को कम करने में लाभ मिलता है और फेफड़ों की सुजन भी दूर होती है।
- एक शोध के मुताबिक़ तेजपत्ते के सेवन से कैंसर जैसे विकार में भी रोकथाम की जा सकती है।
- तेजपत्र में सुजन रोधी गुण होते हैं जिसके कारण इसके सेवन से जलन और सुजन को कम किया जा सकता है।
- तेजपत्र में एंटी फंगल प्रोपर्टीज होती हैं, जिससे त्वचा के संक्रमण का खतरा कम होता है।
- किडनी के विकारों में भी तेजपत्र के सेवन से लाभ मिलता है।
- तेजपत्र के सेवन से कमर दर्द में लाभ मिलता है क्योंकि यह वातजनित दर्दों को दूर करता है।
- तेजपत्र के चूर्ण के सेवन से पेट के कृमि दूर होते हैं।
- मानसिक उन्माद को दूर करने के लिए भी तेजपत्र का चूर्ण लाभदाई होता है।
लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum) :लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
- लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
- लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
- लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
- कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
- छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।
Doses of Drakshavleha द्राक्षावलेह का सेवन कैसे करें
एक छोटी चम्मच लगभग १० ग्राम द्राक्षावलेह का सेवन किया जाता है। यद्यपि द्राक्षावलेह एक आयुर्वेदिक दवा है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्ण वैद्य की सलाह अवश्य प्राप्त कर लें और निश्चित मात्रा के अतिरिक्त अधिक या कम में इसका सेवन नहीं करें।
How To Make Drakshavleha द्राक्षावलेह कैसे बनाएं / द्राक्षावलेह बनाने की विधि
द्राक्षावलेह को आप बड़ी ही आसानी से घर पर बना सकते हैं। इसे बनाने के लिए आप विशेष रूप से ध्यान केन की स्वछता का पूर्ण ध्यान रखें और इसे बनाने के लिए जो भी सामग्री आप बाजार से लेकर आते हैं वह गुणवत्ता की हो और उसमें कोई मिलावट नहीं हो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें। किसी विश्वास पात्र पंसारी से ही आप इन्हे खरीदें। यदि आपको इनकी परख नहीं है तो किसी वैद्य या जानकार व्यक्ति से राय अवश्य प्राप्त कर लेंवे। सामग्रियों के सबंध में उल्लेखनीय है की यहाँ आपको शास्त्र के मुताबिक ही सामग्री बताई गयी है।
द्राक्षावलेह बनाने के लिए सबसे पहले आप निम्न सामग्री लें। - मुन्नका दाख 1 किलो ग्राम
- गाय का घी 200 ग्राम
- मिश्री या शक्कर 2 किलोग्राम
- जायफल 15 ग्राम
- जावित्री 15 ग्राम
- इलाइची 15 ग्राम
- वंशलोचन 15 ग्राम
- लौंग 15 ग्राम
- दालचीनी। 15 ग्राम
- तेजपत्ता 15 ग्राम
- नागकेशर 15 ग्राम
- कमलगट्टे की मिंगी 15 ग्राम
केशर 3 ग्राम उचित मात्रा में सामग्री लेकर निम्न चरणों का पालन करें। - द्राक्षा को अच्छे से साफ़ कर लें (धोकर साफ़ कर लें ) बाहर की समस्त अशुद्धियों को दूर कर लें।
- द्राक्षा को पानी में तीन से चार घंटों घंटे तक भिगोएं। पानी इतना ही डालें जिसमे दाख मुनक्का डूब जाएँ। ज्यादा पानी नहीं डालें।
- तीन से चार घंटे के उपरान्त मुनक्का के फूल जाने पर छलनी से पानी को अलग कर लें। अब इस पानी को अलग बर्तन में रख लें क्योंकि आगे चीनी की चासनी बनाने के लिए हम इसी पानी का उपयोग करेंगे।
- इसके उपरान्त हाथों से इसके बीजों को अलग कर लें।
- बीजों को अलग करने के उपरान्त अब इसको मिक्सी में अच्छे से पीस कर एक पेस्ट तैयार कर लें।
- एक बड़ी कड़ाही में २०० ग्राम शुद्ध देसी गाय का घी गर्म करें और धीमी आंच पर मुनक्का के पेस्ट को सेक लें, पका लें। पेस्ट को निचे चिपकने नहीं दे। पेस्ट के गाढ़े होने के उपरान्त जब यह घी छोड़ने लगे तो समझें की मुनक्का अच्छे से घी में पक गई है। अब इसे आंच से उतार कर ठंडा कर लें।
- दूसरी कड़ाही में चीनी के साथ मुनक्का को भिगोने में कार्य में लिए गए पानी चासनी बना लें। चासनी के तैयार हो जाने पर इसमें द्राक्ष के पके हुए पेस्ट को मिला दें। थोड़ा गाढ़ा हो जाने के उपरान्त इसे आंच से उतार लें और ठंडा होने के उपरान्त सभी घटक चूर्ण को मिला दें।
- अच्छे से मिलने के उपरांत कांच के डिब्बे में भंडारण करें।