जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ हिंदी मीनिंग Jin Khoja Tin Payiya Gahare Pani Paith Meaning
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
Jin Khoja Tin Paiya, Gahare Paanee Paith.
Main Bapura Boodan Dara, Raha Kinaare Baith.
शब्दार्थ :
⭐⭐⭐कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)
भक्ति के सन्दर्भ में भी यह सटीक है की लोग दिखावे की भक्ति करते हैं, आडम्बर करते हैं लेकिन यह असल भक्ति नहीं होती है। एक स्थान पर साहेब की वाणी है की भक्ति मार्ग कोई खाला का घर नहीं है, शीश उतारकर धरती पर रखना पड़ता है तब कहीं जाकर भक्ति प्राप्त होती हैं ऐसे ही यहाँ वाणी है की जो डर कर बैठ जाता है उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। सतत प्रयत्न करने और जटिल प्रत्न करने के उपरान्त ही भक्ति की प्राप्ति संभव हो पाती है।
English Meaning : He who has searched has found, those who remain seated on the corner for fear of drowning do not get anything. Literally it means that if the diver floats above the water, then he does not get anything. A diver who dives into the depths of the water must have achieved something valuable.
Even in the context of devotion, it is correct that people do devotion to pretense, do it in a big way, but it is not real devotion. Saheb declares that the path of devotion is not the house of a Khala, we have to take off the head and put it on the earth to get real bhakti marga. lThere is such a declaration here that the person who sits in fear does not get anything. Only after continuous effort and complicated efforts can one attain devotion. This couplet inspires us to work hard.
कबीर साहेब की अन्य मूल्यवान वाणी
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
Bolee Ek Anamol Hai, Jo Koee Bolai Jaani.
Hiye Taraajoo Tauli Ke, Tab Mukh Baahar Aani.
दोहे का भावार्थ : वाणी के विषय में साहेब बताते हैं की वाणी/बोली अत्यंत ही अनमोल है। इसे बोलने की कला को हमें सीखना चाहिए, बोलने से पहले हृदय में इसे तौल लेना चाहिए और इसके उपरान्त ही हमें इसे अपने मुख से बाहर निकालना चाहिए। भाव है की हमें सदैव सोच विचार करके ही बोलना चाहिए और ऐसी वाणी का उपयोग करना चाहिए जिससे दूसरों को कष्ट नहीं हो। कटु वचन कभी भी नहीं बोलने चाहिए, यही सफल जीवन का सार है।
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।
Dos Parae Dekhi Kari, Chala Hasant Hasant.
Apane Yaad Na Aavee, Jinaka Aadi Na Ant.
दोहे का भावार्थ : दूसरों के दोष को देखने वाला व्यक्ति अपने मन में प्रशन्न होता है लेकिन वह स्वंय के दोष को नहीं देख पाता है जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं होता है। भाव है स्वंय का विश्लेषण करना चाहिए, दूसरों के अवगुणों का नहीं क्योंकी स्वंय में है अनगिनत दोष भरे पड़े हैं तो क्यों नहीं इन्हें ही दूर कर लिया जाए जो व्यक्तिगत रूप से और सामाजिक रूप दोनों से ही उचित है। व्यक्तिगत कल्याण के लिए स्वंय को कसौटी पर कसते रहना चाहिए।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy.
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
दोहे का भावार्थ : पोथी और किताबी ज्ञान से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है, यह ज्ञान भी उचित है लेकिन यदि इसे व्यवहार में नहीं उतारा जाए तो इसका कोई लाभ नहीं होने वाला है, जब तक इसे अपने आचरण में शामिल ना किया जाए। दया, प्रेम सद्मार्ग कुछ ऐसे गुण हैं जिनके होने पर यदि किताबी ज्ञान नहीं है तो भी व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
Yah Tan Vish Kee Belaree, Guru Amrt Kee Khaan.
Sheesh Diyo Jo Guru Mile, To Bhee Sasta Jaan.
दोहे का भावार्थ : गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए साहेब का कथन है की यह तन विष की बेल है और गुरु अमृत की खान है यदि शीश देकर भी गुरु का सानिध्य प्राप्त हो तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। भाव है की गुरु की महत्ता को समझ कर गुरु को सर्वोच्च समझना चाहिए। गुरु ही इस जीवन को दोषमुक्त कर सकता है। उल्लेखनीय है की साहेब ने गुरु महिमा का वर्णन तो किया ही है इसके साथ ही गुरु की पहचान भी बताई है की गुरु कैसा हो ?
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
Sab Dharatee Kaajag Karoo, Lekhanee Sab Vanaraaj.
Saat Samudr Kee Masi Karoon, Guru Gun Likha Na Jae.
दोहे का भावार्थ : गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए साहेब की वाणी है की यदि सातों समंदर की स्याही बना ली जाए और समस्त जगलों की लकड़ी की लेखनी बनाकर धरती के समान कागज बनाकर भी गुरु की महिमा का वर्णन कर पाना असंभव है। भाव है की गुरु की महिमा सर्वोच्च है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति को गुरु के बताए गए मार्ग का अनुसरण अवश्य ही करना चाहिए।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।
Aisee Vaanee Bolie Man Ka Aap Khoye.
Auran Ko Sheetal Kare, Aapahun Sheetal Hoe.
दोहे का भावार्थ : व्यक्ति को ऐसी वाणी का चयन करना चाहिए जिससे मन का अहंकार दूर हो और जो स्वंय के अहम् को शांत कर स्वंय को शीतल करे और दूसरों को भी शीतलता महसूस होती है। यही सफल जीवन का आधार है की मृदु वाणी का उपयोग हो, कटु वाणी से स्वंय और दूसरों को दुखद ही महसूस होता है।
- जिन-जिसने
- खोजा-खोज की /ढूँढा
- तिन -उसने
- पाइया -पाया है /प्राप्त किया है
- मैं बपुरा-मैं बेचारा
- बूडन -डूबना
⭐⭐⭐कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)
भक्ति के सन्दर्भ में भी यह सटीक है की लोग दिखावे की भक्ति करते हैं, आडम्बर करते हैं लेकिन यह असल भक्ति नहीं होती है। एक स्थान पर साहेब की वाणी है की भक्ति मार्ग कोई खाला का घर नहीं है, शीश उतारकर धरती पर रखना पड़ता है तब कहीं जाकर भक्ति प्राप्त होती हैं ऐसे ही यहाँ वाणी है की जो डर कर बैठ जाता है उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। सतत प्रयत्न करने और जटिल प्रत्न करने के उपरान्त ही भक्ति की प्राप्ति संभव हो पाती है।
English Meaning : He who has searched has found, those who remain seated on the corner for fear of drowning do not get anything. Literally it means that if the diver floats above the water, then he does not get anything. A diver who dives into the depths of the water must have achieved something valuable.
Even in the context of devotion, it is correct that people do devotion to pretense, do it in a big way, but it is not real devotion. Saheb declares that the path of devotion is not the house of a Khala, we have to take off the head and put it on the earth to get real bhakti marga. lThere is such a declaration here that the person who sits in fear does not get anything. Only after continuous effort and complicated efforts can one attain devotion. This couplet inspires us to work hard.
कबीर साहेब की अन्य मूल्यवान वाणी
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
Bolee Ek Anamol Hai, Jo Koee Bolai Jaani.
Hiye Taraajoo Tauli Ke, Tab Mukh Baahar Aani.
दोहे का भावार्थ : वाणी के विषय में साहेब बताते हैं की वाणी/बोली अत्यंत ही अनमोल है। इसे बोलने की कला को हमें सीखना चाहिए, बोलने से पहले हृदय में इसे तौल लेना चाहिए और इसके उपरान्त ही हमें इसे अपने मुख से बाहर निकालना चाहिए। भाव है की हमें सदैव सोच विचार करके ही बोलना चाहिए और ऐसी वाणी का उपयोग करना चाहिए जिससे दूसरों को कष्ट नहीं हो। कटु वचन कभी भी नहीं बोलने चाहिए, यही सफल जीवन का सार है।
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।
Dos Parae Dekhi Kari, Chala Hasant Hasant.
Apane Yaad Na Aavee, Jinaka Aadi Na Ant.
दोहे का भावार्थ : दूसरों के दोष को देखने वाला व्यक्ति अपने मन में प्रशन्न होता है लेकिन वह स्वंय के दोष को नहीं देख पाता है जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं होता है। भाव है स्वंय का विश्लेषण करना चाहिए, दूसरों के अवगुणों का नहीं क्योंकी स्वंय में है अनगिनत दोष भरे पड़े हैं तो क्यों नहीं इन्हें ही दूर कर लिया जाए जो व्यक्तिगत रूप से और सामाजिक रूप दोनों से ही उचित है। व्यक्तिगत कल्याण के लिए स्वंय को कसौटी पर कसते रहना चाहिए।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy.
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
दोहे का भावार्थ : पोथी और किताबी ज्ञान से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है, यह ज्ञान भी उचित है लेकिन यदि इसे व्यवहार में नहीं उतारा जाए तो इसका कोई लाभ नहीं होने वाला है, जब तक इसे अपने आचरण में शामिल ना किया जाए। दया, प्रेम सद्मार्ग कुछ ऐसे गुण हैं जिनके होने पर यदि किताबी ज्ञान नहीं है तो भी व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
Yah Tan Vish Kee Belaree, Guru Amrt Kee Khaan.
Sheesh Diyo Jo Guru Mile, To Bhee Sasta Jaan.
दोहे का भावार्थ : गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए साहेब का कथन है की यह तन विष की बेल है और गुरु अमृत की खान है यदि शीश देकर भी गुरु का सानिध्य प्राप्त हो तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। भाव है की गुरु की महत्ता को समझ कर गुरु को सर्वोच्च समझना चाहिए। गुरु ही इस जीवन को दोषमुक्त कर सकता है। उल्लेखनीय है की साहेब ने गुरु महिमा का वर्णन तो किया ही है इसके साथ ही गुरु की पहचान भी बताई है की गुरु कैसा हो ?
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
Sab Dharatee Kaajag Karoo, Lekhanee Sab Vanaraaj.
Saat Samudr Kee Masi Karoon, Guru Gun Likha Na Jae.
दोहे का भावार्थ : गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए साहेब की वाणी है की यदि सातों समंदर की स्याही बना ली जाए और समस्त जगलों की लकड़ी की लेखनी बनाकर धरती के समान कागज बनाकर भी गुरु की महिमा का वर्णन कर पाना असंभव है। भाव है की गुरु की महिमा सर्वोच्च है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति को गुरु के बताए गए मार्ग का अनुसरण अवश्य ही करना चाहिए।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।
Aisee Vaanee Bolie Man Ka Aap Khoye.
Auran Ko Sheetal Kare, Aapahun Sheetal Hoe.
दोहे का भावार्थ : व्यक्ति को ऐसी वाणी का चयन करना चाहिए जिससे मन का अहंकार दूर हो और जो स्वंय के अहम् को शांत कर स्वंय को शीतल करे और दूसरों को भी शीतलता महसूस होती है। यही सफल जीवन का आधार है की मृदु वाणी का उपयोग हो, कटु वाणी से स्वंय और दूसरों को दुखद ही महसूस होता है।
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- पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय कबीर के दोहे
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