कबीर तष्टा टोकणीं लीए फिरै सुभाइ मीनिंग Kabir Tashta Tokani Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Kabir Ke Doha/Sakhi Hindi Bhavarth/ Hindi Arth, Hindi Me)
कबीर तष्टा टोकणीं, लीए फिरै सुभाइ।रामनाम चीन्हें नहीं, पीतलि ही कै चाइ॥
Kabir Tashta Tokani, Liye Phire Subhai,
Ramnam Chinhe Nahi Pitali Hi Ke Chai.
कबीर तष्टा टोकणीं : तसला और टोकनी को लेकर जीवात्मा भटकती है.
लीए फिरै सुभाइ : अपने स्वभाव के कारण, स्वभाव के वश में होकर.
रामनाम चीन्हें नहीं : राम नाम को पहचाना नहीं.
पीतलि ही कै चाइ : पीतल के प्रति ही उनका प्रेम होता है.
तष्टा : तसला (एक तरह का पात्र )
टोकणीं : टोकणी, एक तरह का जलपात्र जिसे पानी भरने के काम में लिया जाता है.
रामनाम : इश्वर.
चीन्हें नहीं : चिन्हित नहीं किया, पहचाना नहीं.
पीतलि : पीतली (एक भरनी, घड़ा).
ही कै : ही की.
चाइ : चाह, कामना.
लीए फिरै सुभाइ : अपने स्वभाव के कारण, स्वभाव के वश में होकर.
रामनाम चीन्हें नहीं : राम नाम को पहचाना नहीं.
पीतलि ही कै चाइ : पीतल के प्रति ही उनका प्रेम होता है.
तष्टा : तसला (एक तरह का पात्र )
टोकणीं : टोकणी, एक तरह का जलपात्र जिसे पानी भरने के काम में लिया जाता है.
रामनाम : इश्वर.
चीन्हें नहीं : चिन्हित नहीं किया, पहचाना नहीं.
पीतलि : पीतली (एक भरनी, घड़ा).
ही कै : ही की.
चाइ : चाह, कामना.
कबीर साहेब की वाणी है की जब व्यक्ति को मूल्य और रहस्य का बोध नहीं होता है वह मूल्यहीन और साधारण वस्तुओं के प्रति अपनी लालसा रखता है. अपने स्वभाव के कारण वह तसला और टोकणी (साधारण वस्तुएं) लेकर इधर उधर भटकता रहता है. राम नाम का उसे बोध नहीं होने के कारण, (उसे स्वर्ण का बोध नहीं होता है.) वह पीतल जैसी धातु के ही पीछे लगा रहता है. भाव है की सोने और पीतल में अंतर होता है लेकिन ज्ञान के अभाव में जीवात्मा पीतल को ही सोना समझती है. व्यक्ति अपनी नासर्गिक स्वार्थों में ही उलझ कर इस अमूल्य जीवन को समाप्त कर देता है, यथा खाना पीना, आदि सभी में उलझा रहता है.
अतः समस्त सांसारिक क्रियाएं पीतल ही हैं. राम नाम ही स्वर्ण और बहुमूल्य रत्न है जिसे बोध होने के उपरान्त ही एकत्रित किया जा सकता है.
दुसरे अर्थों में कबीर साहेब ने सांसारिक क्रियाओं में लिप्त संतजन और साधुजन पर व्यंग्य किया है की वे अपने पेट के चक्कर में पात्र लेकर यहाँ से वहां पर फिरते रहते हैं. उन्हें राम नाम रूपी रत्न का बोध नहीं होता है.
अतः समस्त सांसारिक क्रियाएं पीतल ही हैं. राम नाम ही स्वर्ण और बहुमूल्य रत्न है जिसे बोध होने के उपरान्त ही एकत्रित किया जा सकता है.
दुसरे अर्थों में कबीर साहेब ने सांसारिक क्रियाओं में लिप्त संतजन और साधुजन पर व्यंग्य किया है की वे अपने पेट के चक्कर में पात्र लेकर यहाँ से वहां पर फिरते रहते हैं. उन्हें राम नाम रूपी रत्न का बोध नहीं होता है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग