जिस पे तू रंग अपना चढ़ा दे कृष्णा भजन

जिस पे तू रंग अपना चढ़ा दे कृष्णा भजन


उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता,
जिस पे तू रंग अपना चढ़ा दे।
जिसको सर पे तूने चढ़ाया,
किसकी औकात उसे गिरा दे?
उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता,
जिस पे तू रंग अपना चढ़ा दे...

कर ले तूफ़ान कितनी भी कोशिश,
रास्ता रोक सकता नहीं है।
धोखा देकर दुश्मन खंजर,
पीठ में भोंक सकता नहीं है।
मौत की भी नहीं इतनी हिम्मत,
वक़्त से पहले उसे मिटा दे।

उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता...

रंग ख़ुशियों के सारे वहाँ पर,
साँवरा है हमारा जहाँ पर।
प्रेम की बगिया महके हरपल,
मेरा प्रीतम है बैठा जहाँ पर।
इसके आँचल में जो तू रौशन,
न ज़रूरत हवा से बुझा दे।

उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता...

छल–कपट से जो रखे दूरी,
प्रेम की भाषा जो जानता है।
प्रेम करता जो जिन प्रेमियों से,
उन सभी को वो पहचानता है।
उसको कर दे दीवाना साँवरिया,
एक झलक सांवरी जो दिखा दे।

उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता...

प्यारे! मैं जानता हूँ ये बेहतर,
जब छलकती तेरी प्रेम पायल।
प्रीत में तेरी होकर घायल,
झूमता, नाचता है ये पागल।
डर निकल जाता है दिल से सारा,
बेधड़क श्याम जिन्हें तू बना दे।

उस पर रंग फिर दूसरा ना चढ़ता,
जिस पे तू रंग अपना चढ़ा दे...


जिसपे तू रंग अपना चढ़ा दे | Shyam Baba Bhajan | Vimal Dixit "Pagal" Saawariya

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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