तू ही ईश्वर तू अल्लाह तू रब शिरडी वाले

तू ही ईश्वर तू अल्लाह तू रब शिरडी वाले

तेरी मस्जिदें हैं, तेरे हैं शिवाले,
तू ही ईश्वर, तू अल्लाह, तू रब शिरडी वाले।
तू मालिक है सबका, तू ही सबको पाले,
तू ही ईश्वर, तू अल्लाह, तू रब शिरडी वाले।।

सभी के लिए है तेरी धूप-छाँव,
ये काशी, वो काबा — हैं सब तेरे गाँव।
तू धर्मों के बंधन से बिलकुल परे है,
कर्म हिन्दू-मुस्लिम सभी पे करे है।
सभी को ग़मों के भंवर से निकालें,
तू ही ईश्वर, तू अल्लाह, तू रब शिरडी वाले।।

ख़ुदा कोई बोले, कहे कोई दाता,
है तेरा तो सारे ज़माने से नाता।
तुझे "ग़ैर" भी न लगे ग़ैर बाबा,
तू माँगे है सबके लिए खैर बाबा।
तू देता ही देता है, कुछ हमसे ना ले,
तू ही ईश्वर, तू अल्लाह, तू रब शिरडी वाले।।

तू मोहन की मूरत में भी दे दिखाई,
अज़ानों से भी तेरी आवाज़ आई।
है गीता में उपदेश तेरा ओ साईं,
तू गुरुवाणी के कलमो में देता सुनाई।
तुझे चाहे जो, वो रूप पल में बना ले,
तू ही ईश्वर, तू अल्लाह, तू रब शिरडी वाले।।



Tu Rab Shirdi Wale Sai Bhajan By Mohan Sharma [Full HD Song] I Sai Ka Sawali

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About Bhajan -

Sai Bhajan: Tu Rab Shirdi Wale
Album Name: Sai Ka Sawali
Singer: Mohan Sharma
Music Director: Lovely Sharma
Lyricist: Ravi Chopra
Picuturised On: Mohan Sharma
Music Label: T-Series
 
सर्वशक्तिमान परमात्मा का स्वरूप असीम और सर्वव्यापी है, जो किसी एक धर्म, जाति या संकीर्ण मान्यताओं में सीमित नहीं। वह सभी के लिए समान रूप से उपस्थित है, चाहे वह किसी भी नाम या रूप में पूजित हो—शिव, अल्लाह, रब या ईश्वर। यह दिव्यता सभी धर्मों और संस्कृतियों को जोड़ने वाली एक सार्वभौमिक शक्ति है, जो प्रेम, करुणा और न्याय के साथ सबका पालन-पोषण करती है। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो हमारे मन से भेदभाव, द्वेष और संकीर्णता दूर हो जाती है, और हम एकता, सहिष्णुता और भाईचारे की ओर अग्रसर होते हैं। यही वह आध्यात्मिक चेतना है जो मानवता को एक सूत्र में पिरोती है और सभी के लिए समानता और सम्मान का संदेश देती है।

धर्मों की विविधता के बावजूद, परमात्मा का संदेश एक ही है—सच्चाई, प्रेम और सेवा। वह सभी के दुखों को दूर करने वाला, सभी के कल्याण का कारण है। जब हम इस व्यापक दृष्टिकोण से जीवन को देखते हैं, तब हमें समझ आता है कि हर पूजा, हर उपासना, हर धर्मग्रंथ में एक ही परम सत्य की अनुभूति छिपी है। यह अनुभूति हमें अपने भीतर की सीमाओं को तोड़कर सभी के प्रति सहानुभूति और सम्मान विकसित करने की प्रेरणा देती है। जब हम इस दिव्य एकता को स्वीकार करते हैं, तो हमारा जीवन न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है, बल्कि समाज में भी शांति और सौहार्द्र का वातावरण बनता है। यही सच्ची आध्यात्मिकता का सार है, जो हमें अपने भीतर और बाहर दोनों में दिव्यता की अनुभूति कराती है।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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