मैं गिरते गिरते संभल गया साईं भजन
मैं गिरते गिरते संभल गया साईं भजन
मेरा दिल दर्शन को मचल गया,
मैं घर से सफर को निकल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया,
मैं गिरते गिरते संभल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
जब साईं ने थामा हाथ मेरा,
मेरा सारा जीवन बदल गया।
मैं गिरते गिरते संभल गया,
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
मैं घर से चला झोली डाले,
सुन दर्द भरे मेरे नैना।
इन नैनों में जोत भर लूँ,
साईं के मैं दर्शन कर लूँ।
चला नगर नगर मैं डगर डगर,
फिर खौफ का तर करता था सफर।
सूरज भी ढला और रात हुई,
बादल गरजा, बरसात हुई।
तन्हाई मन में बसने लगी,
रात अँधेरी डसने लगी।
वहाँ खाई थी, मैदान में था,
मुझे खाई का कुछ भी ध्यान न था।
वह दो कदम पर खाई थी,
रो-रो कर मैंने दुआ दी।
मेरा पाँव अचानक फिसल गया,
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
मैं गिरते गिरते संभल गया।
लकवा था, उसको मार गया,
वो जीवन से था हार गया।
कुछ काम नहीं कर सकता था,
पानी भी पी नहीं सकता था।
बेकार थे उसके पाँव, हाथ उसके,
थे इतने बुरे हालात उसके।
हर एक से जब मायूस हुआ,
श्री साईं ने सुनी उसी सदा।
दर्द की उसको दी दवा,
कल रोता है, आज हँसता है।
हँस-हँस कर साईं कहता है,
तुम ही साईं जीवन मेरा।
कोई और नहीं साईं मेरा,
अब जादू घटा से निकल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया,
मैं गिरते गिरते संभल गया।
मैं घर से सफर को निकल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया,
मैं गिरते गिरते संभल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
जब साईं ने थामा हाथ मेरा,
मेरा सारा जीवन बदल गया।
मैं गिरते गिरते संभल गया,
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
मैं घर से चला झोली डाले,
सुन दर्द भरे मेरे नैना।
इन नैनों में जोत भर लूँ,
साईं के मैं दर्शन कर लूँ।
चला नगर नगर मैं डगर डगर,
फिर खौफ का तर करता था सफर।
सूरज भी ढला और रात हुई,
बादल गरजा, बरसात हुई।
तन्हाई मन में बसने लगी,
रात अँधेरी डसने लगी।
वहाँ खाई थी, मैदान में था,
मुझे खाई का कुछ भी ध्यान न था।
वह दो कदम पर खाई थी,
रो-रो कर मैंने दुआ दी।
मेरा पाँव अचानक फिसल गया,
मेरे मुँह से साईं निकल गया।
मैं गिरते गिरते संभल गया।
लकवा था, उसको मार गया,
वो जीवन से था हार गया।
कुछ काम नहीं कर सकता था,
पानी भी पी नहीं सकता था।
बेकार थे उसके पाँव, हाथ उसके,
थे इतने बुरे हालात उसके।
हर एक से जब मायूस हुआ,
श्री साईं ने सुनी उसी सदा।
दर्द की उसको दी दवा,
कल रोता है, आज हँसता है।
हँस-हँस कर साईं कहता है,
तुम ही साईं जीवन मेरा।
कोई और नहीं साईं मेरा,
अब जादू घटा से निकल गया।
मेरे मुँह से साईं निकल गया,
मैं गिरते गिरते संभल गया।
Girte Girte Sambhal Gaya Sai Bhajan By Pankaj Raj [Full HD Song] I Sai Faqeer Ka Deewana
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Sai Bhajan: Girte Girte Sambhal Gaya
Album Name: Sai Faqeer Ka Deewana
Singer: Pankaj Raj
Music Director: Jeetu
Lyricist: Pankaj Raj
Music Label: T-Series
Album Name: Sai Faqeer Ka Deewana
Singer: Pankaj Raj
Music Director: Jeetu
Lyricist: Pankaj Raj
Music Label: T-Series
जब जीवन में कठिनाइयाँ और संकट गहराते हैं, तब मनुष्य का मन स्वाभाविक रूप से किसी ऐसी शक्ति की ओर दौड़ता है, जिसमें उसे पूर्ण विश्वास और सहारा मिलता है। यह विश्वास कभी-कभी अनायास, किसी कठिन घड़ी में, हृदय से निकलने वाली पुकार के रूप में प्रकट होता है। जब मनुष्य पूरी तरह असहाय, अकेला या भयभीत होता है, तब एक नाम, एक स्मरण, एक आह्वान उसे गिरने से बचा लेता है। यही वह क्षण होता है जब आत्मा को अपने भीतर छिपी हुई शक्ति और किसी दिव्य उपस्थिति का साक्षात्कार होता है। यह अनुभव जीवन को एक नया अर्थ देता है और मनुष्य को भीतर से मजबूत बना देता है।
कई बार जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं, जब सब कुछ निरर्थक और निराशाजनक लगता है—शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से व्यक्ति टूट जाता है। लेकिन जब वह अपने दुख, डर और असहायता को किसी दिव्य शक्ति के आगे समर्पित करता है, तो उसे एक नई ऊर्जा, आशा और साहस मिल जाता है। यह अनुभव केवल चमत्कार या चमत्कारी घटना नहीं, बल्कि उस गहरे विश्वास और श्रद्धा का परिणाम है, जो हर कठिनाई में मनुष्य को संभाल लेता है। जीवन की सबसे घनी अंधेरी रात में भी, जब यह विश्वास जागता है, तो वह रोशनी बनकर राह दिखाता है, और मनुष्य फिर से उठ खड़ा होता है—मजबूत, आशावान और कृतज्ञ। यही वह भाव है, जो हर गिरावट को संभाल में बदल देता है।
कई बार जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं, जब सब कुछ निरर्थक और निराशाजनक लगता है—शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से व्यक्ति टूट जाता है। लेकिन जब वह अपने दुख, डर और असहायता को किसी दिव्य शक्ति के आगे समर्पित करता है, तो उसे एक नई ऊर्जा, आशा और साहस मिल जाता है। यह अनुभव केवल चमत्कार या चमत्कारी घटना नहीं, बल्कि उस गहरे विश्वास और श्रद्धा का परिणाम है, जो हर कठिनाई में मनुष्य को संभाल लेता है। जीवन की सबसे घनी अंधेरी रात में भी, जब यह विश्वास जागता है, तो वह रोशनी बनकर राह दिखाता है, और मनुष्य फिर से उठ खड़ा होता है—मजबूत, आशावान और कृतज्ञ। यही वह भाव है, जो हर गिरावट को संभाल में बदल देता है।
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Author - Saroj Jangir
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