भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर

स्वागत है मेरी पोस्ट में, इस पोस्ट में हम महाभारत की एक अत्यंत प्रेरणादायक कहानी जानेंगे, जो भीष्म पितामह और उनके पांच चमत्कारी तीरों से जुड़ी है। यह कहानी ना केवल हमें महाभारत के महान योद्धाओं की वचनबद्धता और निष्ठा के बारे में सिखाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सही समय पर सुझाए गए उपाय और विचार कैसे किसी की भी रक्षा करते हैं। आइए, इस कहानी से प्रेरणा लें और इसे सरल भाषा में जानें ताकि हर कोई इसे समझ सके और इससे प्रेरित हो सके।
 
भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर
 

महाभारत की कहानी/भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर

महाभारत के युद्ध के दौरान, कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ था। भीष्म पितामह, जो अपनी वीरता और असीम शक्ति के लिए जाने जाते थे, कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे थे। लेकिन कौरवों के सबसे बड़े भाई दुर्योधन के मन में यह शंका थी कि भीष्म पितामह पांडवों को चोट नहीं पहुंचाना चाहते। उसे लगता था कि भीष्म पितामह के पास इतनी ताकत है कि वह पांडवों का आसानी से नाश कर सकते हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहे हैं। दुर्योधन को यह लग रहा था कि भीष्म पितामह उनके साथ होते हुए भी पांडवों का पक्ष ले रहे हैं।

यह सोचकर दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और उनसे सवाल किया, "पितामह, आपके पास इतनी शक्ति है फिर भी आप पांडवों को मारने में हिचकिचा रहे हैं। लगता है आप पांडवों के खिलाफ अपने पूरे बल का उपयोग नहीं कर रहे।" इस पर भीष्म पितामह मुस्कुराए और बोले, "अगर तुम्हें ऐसा लगता है, तो मैं कल ही पांचों पांडवों को समाप्त कर दूंगा। मेरे पास पांच चमत्कारी तीर हैं जिनसे मैं यह कार्य करूंगा।"

दुर्योधन को अब भी उन पर पूरी तरह भरोसा नहीं था। उसने भीष्म पितामह से आग्रह किया कि वे इन पांच तीरों को उसे सौंप दें ताकि वह इन्हें अपने पास सुरक्षित रख सके। भीष्म पितामह ने बिना किसी आपत्ति के वह पांचों तीर दुर्योधन को दे दिए।

इस बात की खबर भगवान श्रीकृष्ण को लग गई। भगवान श्रीकृष्ण ने स्थिति की गंभीरता को जानते हुए अर्जुन को इस स्थिति से अवगत कराया। अर्जुन इस खबर को सुनकर चिंतित हो गया और सोचने लगा कि इस संकट से कैसे निपटा जाए। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि एक समय गंधर्वों के हाथों दुर्योधन की जान खतरे में पड़ गई थी और तब अर्जुन ने उसकी रक्षा की थी। उस समय, कृतज्ञता में दुर्योधन ने वचन दिया था कि अर्जुन जब भी उससे कुछ मांगेगा, वह उसे मना नहीं करेगा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सलाह दी कि वह इस समय दुर्योधन से वही वचन पूरा करने के लिए कहे और उससे वे पांचों तीर मांग ले।

अर्जुन को श्रीकृष्ण की सलाह बिल्कुल सही लगी। उसे वह पुरानी बात याद आई और यह भी कि वचन निभाना उस समय के योद्धाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। उसने तुरंत दुर्योधन के पास जाकर उसे उसकी कसम याद दिलाई और पांच तीर देने का निवेदन किया। दुर्योधन ने अपना वचन निभाया और बिना किसी हिचकिचाहट के पांचों तीर अर्जुन को दे दिए। इस तरह, श्रीकृष्ण की सूझबूझ और अर्जुन की समझदारी ने पांडवों की जान बचाई।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सही समय पर सही सलाह और अपने वचनों को निभाने की महत्ता कितनी मूल्यवान होती है। श्रीकृष्ण की चतुराई और अर्जुन की दृढ़ता ने असंभव को संभव बना दिया और यह एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे सूझबूझ से बड़े से बड़े संकट से उबरा जाता है।

आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर, महाभारत की प्रेरणादायक कहानियां, श्रीकृष्ण की रणनीति, अर्जुन और दुर्योधन का वचन, कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की रक्षा
 
 
भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर | Bhishma Pitamah | Bhakti Kahani | Hindi Kahani | Bedtime Stories
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

मेरे इस ब्लॉग पर आपको प्रेरणादायक कहानिया जैसे की पंचतंत्र की कहानिया, प्रेरणादायक कहानियां, महात्मा बुद्ध की कहानिया, अकबर बीरबल के किस्से, आप रोचक तरीके से प्राप्त करेंगे। इन कहानियों से आपको जीवन में कई अमूल्य शिक्षाएं मिलेंगी. इसके अतिरिक्त इस साईट पर आप भजन, शब्द वाणी, कबीर के दोहे, हेल्थ आदि विषयों पर जान्कारिओं को सहजता से प्राप्त कर पायेंगे.....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post