हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी Hans Aur Murkh Kachuye Ki Kahani Panchtantra

स्वागत है मेरी पोस्ट में। इस पोस्ट में हम एक रोचक और प्रेरणादायक कहानी जानेंगे "हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी"। यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कभी-कभी चुप रहना भी समझदारी होती है। तो आइए, इस प्रेरक कहानी को पढ़ें और समझें कि कैसे एक छोटी-सी गलती बड़ी सिख देने में सक्षम होती है।

हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी Hans Aur Murkh Kachuye Ki Kahani Panchtantra

हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी

एक घने जंगल के बीचों बीच एक तालाब था, जहां हर रोज़ कई जानवर अपनी प्यास बुझाने आते थे। इसी तालाब में एक बातूनी कछुआ भी रहता था, जिसे फालतू की बातें करने की आदत थी। इस वजह से सभी जानवरों ने उसका नाम "बातूनी कछुआ" रख दिया था। लेकिन, दो हंस उसके करीबी दोस्त थे और हमेशा उसकी भलाई की सोचते थे।

एक बार गर्मियों का मौसम आया, और तालाब का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा। अब जानवर पानी की कमी महसूस करने लगे। हंसों ने यह देखा और कछुए से कहा, "इस तालाब का पानी कम हो रहा है और संभव है कि जल्द ही यह पूरी तरह सूख जाए। तुम्हें यहां से निकलकर किसी दूसरे तालाब में जाना चाहिए।"

कछुआ चिंतित हो गया और बोला, "मैं यहां से कैसे जा सकता हूं? इस तालाब के पास कोई दूसरा तालाब भी नहीं है!" अपने मित्र की समस्या सुनकर हंसों ने उसके लिए एक उपाय सोचा।

दोनों हंसों ने उसे एक तरकीब बताई - "हम एक मजबूत लकड़ी लाएंगे। तुम उसे अपने मुंह से बीच में पकड़ लेना, और हम दोनों उसके किनारे पकड़ कर तुम्हें एक दूसरे बड़े तालाब तक ले जाएंगे। वहां बहुत सारा पानी है, जो कभी नहीं सूखेगा।"

कछुए ने खुशी-खुशी उनकी बात मान ली और उनके बताए अनुसार लकड़ी पकड़ने के लिए तैयार हो गया। उड़ान से पहले हंसों ने उसे चेतावनी दी, "सुनो, यात्रा के दौरान कुछ भी मत बोलना। अगर तुमने मुंह खोला, तो गिर जाओगे। जब हम दूसरे तालाब पर पहुंच जाएंगे, तब तुम जो चाहो बोल सकते हो।"

कछुए ने सहमति में सिर हिलाया और लकड़ी को मजबूती से पकड़ लिया। दोनों हंसों ने लकड़ी के छोर पकड़कर उड़ान भरी। वे एक गांव के ऊपर से उड़ते हुए जा रहे थे, और नीचे के लोग यह अद्भुत दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्हें देखकर कुछ लोग तालियां बजाने लगे और हंसने लगे।

यह सब देखकर कछुए से रहा नहीं गया। वह जानना चाहता था कि नीचे क्या हो रहा है। जैसे ही उसने बोलने के लिए अपना मुंह खोला, लकड़ी उसके मुंह से छूट गई, और वह ऊंचाई से नीचे गिर गया। ज़मीन पर गिरते ही उसकी जान चली गई। हंस दुखी मन से वहां से चले गए। इस प्रकार बिना सोचे समझे अधिक बोलने से कछुए को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बेवजह या बिना मतलब के बातें नहीं करनी चाहिए। अनावश्यक बोलने से अक्सर अपना ही नुकसान होता है। संयम और धैर्य बनाए रखना ही समझदारी है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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