श्रीकृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी Krishna Aur Arishtasur Vadh Kahani

स्वागत है मेरे इस पोस्ट में, इस पोस्ट में हम एक प्राचीन, प्रेरणादायक कथा जानेंगे, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अपने साहस और बुद्धिमानी से अरिष्टासुर नामक राक्षस का वध किया। इस कहानी में न केवल साहस की झलक है बल्कि हमें जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने का तरीका भी सिखाती है। इस दिलचस्प कथा के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे श्रीकृष्ण ने अपनी सूझ-बूझ से अपने साथियों और बृजधाम की रक्षा की। तो चलिए, इस प्रेरणादायक कहानी के बारे में जानते हैं।

श्रीकृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी Krishna Aur Arishtasur Vadh Kahani

श्रीकृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी

यह कथा उस समय की है जब श्रीकृष्ण एक छोटे बालक थे और अपने नन्द बाबा की गायों और बछड़ों को चराने का काम किया करते थे। बाल कृष्ण के मामा कंस ने कई बार उन्हें मारने के प्रयास किए, लेकिन हर बार श्रीकृष्ण की शक्ति और बुद्धिमानी ने उसे असफल कर दिया। एक बार कंस ने अपने नापाक इरादे के तहत अरिष्टासुर नामक राक्षस को श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा।

अरिष्टासुर जानता था कि श्रीकृष्ण की शक्ति अत्यधिक है, इसलिए उसने इस बार धोखे का सहारा लिया। उसने एक बछड़े का रूप धारण कर लिया और चुपचाप गायों के झुंड में शामिल हो गया। उसका उद्देश्य था कि वह झुंड के बीच में रहते हुए श्रीकृष्ण पर हमला कर सके। अरिष्टासुर सही अवसर की तलाश में रहा, लेकिन जब उसे सीधे श्रीकृष्ण पर वार करने का मौका नहीं मिला, तो उसने उनके बाल सखाओं को मारना शुरू कर दिया।

जब श्रीकृष्ण ने देखा कि उनके प्रिय मित्रों पर हमला हो रहा है, तो वे समझ गए कि यह किसी सामान्य घटना का परिणाम नहीं है। उन्होंने शीघ्र ही यह महसूस किया कि यह राक्षस की करतूत है। बिना समय गवाएं, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया और अरिष्टासुर का सामना किया। उन्होंने अरिष्टासुर के बछड़े के रूप में छुपे होने के छल को भांप लिया और उसकी टांग पकड़कर उसे ज़मीन पर पटक दिया, जिससे अरिष्टासुर की वहीं मृत्यु हो गई।

जब राधारानी को इस घटना की जानकारी हुई, तो उन्होंने श्रीकृष्ण को उलाहना दिया और कहा, “कान्हा, तुमने एक बछड़े का वध किया है, जो पाप है। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए तुम्हें सभी तीर्थों की यात्रा करनी होगी।” श्रीकृष्ण ने राधारानी की बात को गंभीरता से लिया, परंतु सभी तीर्थों की यात्रा कर पाना उनके लिए संभव नहीं था। तब उन्होंने नारद मुनि से इस समस्या का समाधान पूछने का निश्चय किया।

नारद मुनि ने श्रीकृष्ण को एक अनोखा उपाय सुझाया। उन्होंने कहा, “तुम सभी तीर्थों को अपने पास आने का आदेश दो ताकि वे जल के रूप में तुम्हारे पास एकत्र हो जाएं। तब उस जल में स्नान करने से तुम्हारे ऊपर से गोहत्या का पाप समाप्त हो जाएगा।” श्रीकृष्ण ने नारद मुनि की सलाह पर अमल किया और सभी तीर्थों को बृजधाम बुलाया। उन्होंने अपनी बांसुरी से एक कुंड का निर्माण किया, जिसमें सभी तीर्थों के जल को एकत्र कर स्नान किया। इस स्नान के बाद, श्रीकृष्ण के ऊपर से गोहत्या का पाप समाप्त हो गया।

कहा जाता है कि मथुरा से कुछ दूरी पर अरिता नामक एक गांव है, जहां आज भी वह कुंड मौजूद है जिसे श्रीकृष्ण ने बांसुरी से बनाया था। यह कुंड पवित्र माना जाता है और यहां लोग भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने आते हैं।
 

श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी // Shri Krishna Aur Aristasura Vadh // पौराणिक कहानी
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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