मित्र द्रोह का फल कहानी Mitra Droh Ki Kahani Panchtantra

नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है इस पोस्ट में! आज हम जानेंगे एक बेहद प्रेरक कहानी "मित्र-द्रोह का फल" के बारे में। यह कहानी हमें सिखाती है कि बुरे इरादों से किया गया कोई भी काम अंत में बुरे परिणाम ही लाता है। सरल और रोचक भाषा में प्रस्तुत इस कहानी को पढ़कर आप निश्चित ही जीवन में अच्छे मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा पाएंगे। तो चलिए, शुरू करते हैं यह दिलचस्प कहानी।
 
मित्र द्रोह का फल
 

मित्र द्रोह का फल

बहुत समय पहले, हिम्मत नामक नगर में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे—धर्मबुद्धि और पापबुद्धि। धर्मबुद्धि ईमानदार और नेकदिल था, जबकि पापबुद्धि चालाक और स्वार्थी। एक दिन पापबुद्धि के मन में लालच का बीज अंकुरित हुआ। उसने सोचा, “क्यों न दूसरे नगर जाकर धन कमाया जाए, और लौटते समय सारा धन हड़प लिया जाए।” उसने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए धर्मबुद्धि को भी साथ चलने के लिए मना लिया।

दोनों ने अपने नगर से व्यापार का सामान लेकर दूसरे शहर का रुख किया। वहां कुछ महीनों में उन्होंने काफी लाभ कमाया। जब उनके पास पर्याप्त धन एकत्र हो गया, तो दोनों वापस लौटने लगे। पापबुद्धि ने रास्ते में अपनी योजना को अंजाम देने के लिए एक चाल चली।

रास्ते में उसने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र, अगर हम यह सारा धन अपने नगर ले जाते हैं, तो लोग ईर्ष्या करेंगे और चोर इसे चुरा लेंगें। बेहतर होगा कि आधा धन जंगल में छिपा दिया जाए।” धर्मबुद्धि, पापबुद्धि की बातों में आ गया। उन्होंने जंगल में एक पेड़ के पास गड्ढा खोदा और धन छिपा दिया।

कुछ दिनों बाद, पापबुद्धि चुपके से जंगल गया और सारा धन निकाल लाया। समय बीतता गया। एक दिन जब धर्मबुद्धि को धन की आवश्यकता पड़ी, तो उसने पापबुद्धि को याद किया। दोनों जंगल गए, लेकिन जब उन्होंने गड्ढा खोदा, तो वह खाली था।

पापबुद्धि ने चतुराई से शोर मचाना शुरू कर दिया और धर्मबुद्धि पर चोरी का आरोप लगा दिया। मामला न्यायालय पहुंचा। न्यायाधीश ने दोनों की बातें सुनीं और मामले की सच्चाई पता लगाने का आदेश दिया। न्यायाधीश ने कहा कि तुम दोनों को अग्नि परीक्षा देनी होगी।

चालाक पापबुद्धि ने कहा, “अग्नि परीक्षा की आवश्यकता नहीं है। वन देवता स्वयं गवाही देंगे।” न्यायाधीश ने यह प्रस्ताव मान लिया। पापबुद्धि ने पहले ही एक सूखे पेड़ में छिपने की योजना बना ली थी।

जब न्यायाधीश ने वन देवता से पूछा, तो पेड़ से आवाज आई, “धर्मबुद्धि ने धन चुराया है।” लेकिन धर्मबुद्धि ने तुरंत समझ लिया कि यह पापबुद्धि की चाल है। जिस पेड़ से आवाज आई धर्म बुद्धि ने उसी पेड़ में आग लगा दी। आग लगते ही पापबुद्धि जलते हुए बाहर निकला और अपनी गलती स्वीकार कर ली।

न्यायाधीश ने सच्चाई का पता लगने पर धर्मबुद्धि को उसका धन लौटा दिया और पापबुद्धि को फांसी की सजा सुना दी। इस प्रकार अपने मित्र से छल करके पापबुद्धि ने स्वयं का ही नुकसान किया। पाप बुद्धि ने अपने दोस्त को तो खोया ही इसके साथ ही उसने अपना सम्मान और जीवन भी खो दिया।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुरा सोचने और गलत काम करने वालों को अंत में अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। हमेशा नेकदिल और ईमानदार बनें। हमेशा दूसरे व्यक्तियों के साथ अच्छा व्यवहार करें। उनके साथ छल ना करें, दूसरों के साथ छल करने का परिणाम अंत में स्वयं को ही भुगतना होता है।
 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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