तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर हिंदी अर्थ

तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर: राजस्थानी मुहावरा / Rajasthani Idiom

हिंदी में अर्थ- राजस्थानी संस्कृति में यह मुहावरा विभिन्न त्योहारों के क्रम और उनके महत्व को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। "तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर" का आशय है कि श्रावण शुक्ल पक्ष की तीज से त्योहारों का सिलसिला शुरू होता है और यह चैत्र शुक्ल तृतीया (गणगौर) के साथ समाप्त हो जाता है। सावन की तीज से शुरू होने वाली त्योंहारों श्रृंखला गणगौर विसर्जन तक चलती है और सभी बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं. इस मुहावरे में त्योहारों की एकता और उनके समापन का सांस्कृतिक महत्व दिखाया गया है।

राजस्थान में मारवाड़ी समाज, विशेष रूप से शेखावाटी और मारवाड़ क्षेत्र में, "तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर" कहावत काफी प्रचलित है। यह कहावत सावन की तीज से शुरू होने वाले त्योहारों के सिलसिले और उनके गणगौर पर समापन को दर्शाती है। हरियाली तीज के साथ शुरू होकर नाग पंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, और नवरात्र जैसे त्योहारों का दौर चलता है, जो छः महीने बाद चैत्र की गणगौर पर जाकर समाप्त होता है। गणगौर राजस्थान का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें शिवजी के रूप में ईसर और पार्वती के रूप में गौरा माता की पूजा होती है। यह होली के तीन दिन बाद से शुरू होकर 16 दिनों तक चलता है। पार्वतीजी द्वारा शिवजी को वर के रूप में पाने के लिए किए गए व्रत और तपस्या की इस पौराणिक कथा के आधार पर यह त्योहार कुंवारी लड़कियों और सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

सातुड़ी तीज
भाद्रपद कृष्ण तृतीया को मनाया जाने वाला त्योहार.
गणगौर तीज
चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला त्योहार. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए गणगौर माता की पूजा करती हैं.
हरियाली तीज
इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं.

तीज तिंवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर

The Rajasthani idiom "Teej Tinwara Bawdi Le Doobi Gangaur" symbolizes the sequence of festivals beginning with Teej in the month of Shravan and ending with Gangaur on Chaitra Shukla Tritiya. It reflects the cultural and festive journey of the Rajasthani tradition.

This idiom captures the cyclical nature of festivals in Rajasthani culture. Teej, celebrated in Shravan, signifies prosperity and greenery. Tinwara (Til Chauth) reflects prayers for family well-being. Gangaur, observed in Chaitra, is dedicated to marital bliss and devotion. The phrase beautifully portrays the interconnectedness of these festivals, emphasizing their cultural significance in Rajasthani life.


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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