ततो येयु प्रदेशेषु कपिगात्रात् परिच्युताः।
पीयुषबिन्दवः पेतुस्तेभ्यो जाता गुडूचिका॥
पीयुषबिन्दवः पेतुस्तेभ्यो जाता गुडूचिका॥
गिलोय से बढाए रोग प्रतिरोधक क्षमता Increase Immune Power with Giloy
आजकल आप देखते होंगे की बाबा रामदेव किस प्रकार से गिलोय को ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ ओषधि बताते हैं। ऐसा नहीं है की बाबा ने यूँ ही गिलोय को सर्वश्रेष्ठ ओषधि बोल दिया हो। गिलोय आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से आयुर्वेद का अहम् भाग रहा है। बाबा को नमन है की उन्होंने गिलोय और इसके गुणों को आम जन तक पहुंचाया है, इसका श्रेय तो रामदेव बाबा को ही जाता है। आजकल हर व्यक्ति गिलोय के बारे में खोज रहा है, और ये सही भी है। सबको पता होना चाहिए इस दिव्य ओषधि के प्रभावों का, तो आइये जानते है की गिलोय क्या है, कैसे ये रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है और इसके लाभ क्या हैं जो हम प्राप्त कर सकते हैं।
गिलोय का उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है। पतंजलि आयुर्वेदा के गिलोय क्वाथ, गिलोय स्वरस, गिलोय घनवटी ऐसी दवा हैं जिनका एक मात्र घटक गिलोय ही है। गिलोय के सेवन से चमत्कारिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। गिलोय में प्राकृतिक रूप से एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो शरीर से फ्री रेडिकल्स को दूर करते हैं। ये मुक्त कण ही होते हैं जो विभिन्न रोगों के जनक बनते हैं, इसलिए आयुर्वेद में रोगों के उपचार के साथ साथ रोगों से लड़ने की क्षमता पर बल दिया जाता है।
और इसे नीम के पास लगाते थे। आप भी गिलोय के बेल को अवश्य लगाएं और इसके ताजे हरे पत्ते खाएं और रोगों से मुक्त रहे। औषधीय रूप में गिलोय के पत्ते कटु, तिक्त मधुर, उष्णवीर्य, लघु, त्रिदोष शामक, रसायन, अग्निदीपक, बलकारक, मलरोधक, चक्षुष्य तथा पथ्य होते हैं। गिलोय के पत्तों का सेवन करने से वातरक्त, तृष्णा, दाह, प्रमेह, कुष्ठ, कामला तथा पाण्डु रोग में लाभ प्राप्त होता है। गिलोय का प्रधानता से वातरक्त, पाण्डु, ज्वर, छर्दि, जीर्णज्वर, कामला, प्रमेह, अरुचि, श्वास, कास, हिक्का, अर्श, दाह, मूत्रकृच्छ, प्रदर आदि रोगों की उपचार में किया जाता है।
गिलोय (Tinosporacordifolia (Willd.) Miers)
गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) होता है। गिलोय एक ओषधीय बेल / लता होती है जो असंख्य गुणों से परिपूर्ण होती है। आयुर्वेद में गिलोय को अमृता कहा गया है। गिलोय को अंग्रेजी में टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया कहा जाता है जो की इसका वानस्पतिक नाम है। आयुर्वेद में इसके गुणों को पहचान कर इसके बारे में विस्तार से बताया गया है और आयुर्वेद में इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि नामो से जाना जाता है। यह बेल पहाड़ों, खेतों के मेड़ों पर और पेड़ों के आस पास पायी जाती है और जिस पेड़ के सहारे ये ऊपर चढ़ती है उसके गुणों का समावेश स्वंय में कर लेती है। इसलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को "नीम गिलोय" कहा जाता है। नीम के सारे गुण अपने में समावेश कर लेती है इसीलिए नीम पर चढ़ी गिलोय को श्रेष्ठ माना जाता है। आचार्य चरक ने इसके गुणों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। आयुर्वेद में इसका वर्णन प्राप्त होता है। इसका रस कड़वा होता है। रक्त वर्धर्क इसका गुण है। यह ज्वर नाशक है। गिलोय त्रिदोष नाशक होती है, यानी ये कफ, वात और पित्त को संतुलित करती है। इसके गुणों के कारण ही इसे अमृता कहा गया है और माना गया है की जो व्यक्ति नियमित रूप से गिलोय का सेवन करता है वह अपनी पूर्ण आयु को प्राप्त करता है बिना किसी रोग दोष के।
गिलोय के पत्ते
गिलोय बेल का हर हिस्सा गुणकारी होता है। गिलोय के पत्ते हलके कसेले, तीखे और कड़वे होते हैं जो मुंह में चिकना स्वाद छोड़ते हैं। गिलोय के पत्ते पान के पत्ते से मिलते जुलते होते हैं। आप चाहे तो दो पत्ते रोज गिलोय की बेल से तोड़कर सीधे ही सेवन कर सकते हैं। गिलोय के पत्ते में कैल्शियम, प्रोटिन, फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसके तनों में स्टॉर्च पाया जाता है। बुजुर्ग लोग इसकी महत्ता को समझते थे
और इसे नीम के पास लगाते थे। आप भी गिलोय के बेल को अवश्य लगाएं और इसके ताजे हरे पत्ते खाएं और रोगों से मुक्त रहे। औषधीय रूप में गिलोय के पत्ते कटु, तिक्त मधुर, उष्णवीर्य, लघु, त्रिदोष शामक, रसायन, अग्निदीपक, बलकारक, मलरोधक, चक्षुष्य तथा पथ्य होते हैं। गिलोय के पत्तों का सेवन करने से वातरक्त, तृष्णा, दाह, प्रमेह, कुष्ठ, कामला तथा पाण्डु रोग में लाभ प्राप्त होता है। गिलोय का प्रधानता से वातरक्त, पाण्डु, ज्वर, छर्दि, जीर्णज्वर, कामला, प्रमेह, अरुचि, श्वास, कास, हिक्का, अर्श, दाह, मूत्रकृच्छ, प्रदर आदि रोगों की उपचार में किया जाता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए
गिलोय के एंटीऑक्सीडेंट्स इसे अद्भुत बनाते हैं। एंटीऑक्सीडेंट्स के कारण यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का तेजी से विकास करती है। गिलोय के गुणों के अनुसार यह शरीर से फ्री रेडिकल्स को शरीर से बाहर निकलती है। शरीर में समय के साथ बनने वाले विषाक्त प्रदार्थों को भी बाहर निकालने में गिलोय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर हो जाने पर ही बार बार एलर्जी होना, सर्दी जुकाम का लगना बुखार और त्वचा के संक्रमण से सबंधित रोग होते हैं। गिलोय शरीर को इन संक्रमण से लड़ने की शक्ति देता है। सुबह खाली पेट गिलोय स्वरस इसके लिए बेहतर उपाय हो सकता है। यदि आप स्वंय इसका रस घर पर बनाना चाहते हैं तो या तो आप इसके पत्ते चिक्तिसक की सलाह के अनुसार मुँह में चबा कर खाएं या फिर आप आधे गिलास पानी में गिलोय के कुचले हुए तने और पत्तों को धीमी आंच पर उबाले। इस काढ़े तो तब तक उबलने दें जब तक की ये चाय के छोटे कप जितना ना रह जाय। इसके बाद इसे छान लें और गुनगुने काढ़े को चाय की तरह पिए, इससे सर्दी जुकाम और अन्य संक्रमण में मदद मिलेगी।
बवासीर में लाभदायक
बवासीर रोग में भी गिलोय के सकारात्मक लाभ प्राप्त होते हैं। हरड़, गिलोय तथा धनिया को बराबर भाग (१0 ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी में इनका क्वाथ बनाये। जब यह क्वाथ एक कप रह जाए तो इसे ठंडा करके इसका सेवन करने से बवासीर रोग में लाभ प्राप्त होता है।
रक्त को बनाये साफ़
गिलोय में एंटी ऑक्सीडेंट्स और एंटी बैक्ट्रियल गुण होते हैं जो की हमारे रक्त को साफ़ करते हैं और उसे स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं।
गिलोय से मानसिक तनाव कम करें
तनाव से जीवन का हर क्षेत्र प्रभावित होता है, इसलिए स्ट्रेस से मुक्ति के लिए गिलोय लाभदायक हो सकती है। गिलोय के सेवन से आप तनाव भी कम कर सकते हैं, इसका कारण है इसमें पाए जाने वाले एडाप्टोजेनिक जो की तनाव कम करने में मदद करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर से ऐसे तत्वों को बाहर निकलता है जो की मानसिक अवसाद का कारन बनते हैं। आयुर्वेदिक टॉनिक में इसका उपयोग मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके चूर्ण को शहद में मिलाकर लेने से मस्तिष्क से सबंधित बिमारियों में सहारा मिल सकता है।
गिलोय का उपयोग त्वचा के लिए
गिलोय का उपयोग त्वचा सबंधी रोगों की रोकथाम के लिए भी किया जाता है। त्वचा के संक्रमण जनित रोगों के लिए गिलोय उपयोगी होता है। दाद खाज फोड़े फुंसी के अलावा गिलोय के सेवन से त्वचा की झुर्रियां और कालेपन के निशान दूर होते हैं, ऐसा इसमें पाए जाने वाले एंटी एजिंग प्रॉपर्टीज के कारन होता है। त्वचा पर इसके रस को लेप की तरह से लगाना भी लाभदायक होता है।
अस्थमा के लिए गिलोय
अस्थमा रोग और अन्य स्वसन सबंधी रोगों में भी गिलोय का उपयोग लाभदायक होता है। इसके रस के सेवन या फिर पत्तियों को चबाने से अस्थमा और अन्य स्वास से सबंधित विकारों में मदद मिलती है। पुरानी खांसी के उपचार के लिए गिलोय का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। दो चमच गिलोय का रस रोज सुबह लेने से खांसी का उपचार होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ साथ इन रोगों से मुक्ति मिलती है।
पेशाब की रुकावट के लिए गिलोय का उपयोग
यदि मूत्र से सबंधित कोई विकार है या फिर पेशाब मूत्र से सबंधित मार्ग में पथरी हो तो गिलोय इसके लिए लाभदायक होती है। इसके लिए गिलोय का स्वरस उपयोगी होता है। गिलोय रस के साथ यदि अश्वगंधा की जड़ों को भी उपयोग में लिया जाय तो इसके लाभ बढ़ जाते हैं।
गिलोय का उपयोग पाचन तंत्र के सुधार के लिए
गिलोय का स्वरस पाचन तंत्र के सुधार के लिए भी उपयोगी होता है। त्रिफला के साथ यदि गिलोय का भी प्रयोग किया जाता है पाचन तंत्र सबंधी विकारों से शीघ्र लाभ मिलता है।
हाथ पैरों में जलन के लिए
यदि आपके हाथ पैरों में जलन रहती है और वे गर्म बने रहते है तो आप गिलोय के तने और पत्तों का पेस्ट बना कर उसे हाथों और तलवों में लगाएं। इसके साथ साथ गिलोय स्वरस का भी सेवन करें जिससे आपके हाथ पैरों की जलन ठीक हो जायेगी।
कान में दर्द के लिए
कान में दर्द होने पर गिलोय का रस कान में डालने पर राहत मिलती है।
खुजली के लिए गिलोय
दाद खाज और खुजली वाले स्थान पर गिलोय को हल्दी में पीस कर लगाने से आराम मिलता है।
गठिया रोग में गिलोय का योगदान
गिलोय स्वरस का सेवन करने से गठिया के रोग में कुछ लाभ मिलता है। गिलोय में पाए जाने वाले एंटी इंफ्लेमेंटरी और एंटी सेप्टिक गुणों के कारण इसका उपयोग गठिया रोगों में भी लाभ पहुंचा सकता है।
गिलोय का उपयोग बुखार के लिए
वायरल बुखार के लिए गिलोय का सेवन लाभदायक होता है। चिकन गुनिया, डेंगू, वायरल बुखार के लिए गिलोय का काढ़ा लाभदायक होता है। गिलोय में पाए जाने वाले एंटी सेप्टिक गुण बुखार दूर करने में सहायता करते हैं।
मोटापा दूर करने के लिए गिलोय
मोटापा दूर करने के लिए गिलोय और त्रिफला के चूर्ण को शहद के साथ लेने से मोटापा दूर होता है।
उलटी के लिए गिलोय
गिलोय का काढ़ा पिने से जी घबराना और उलटी में लाभ मिलता है।
कैंसर में गिलोय का प्रयोग
गिलोय में एंटी ऑक्सीडेंट्स गुण होते हैं जो शरीर में स्थिर फ्री रेडिकल्स को शरीर से बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं। गिलोय के साथ तुलसी, नीम और गेंहू के ज्वारे का स्वरस लिया जाय तो यह कैंसर के फैलने को रोकने में मददगार हो सकता है।
हृदय रोग और ब्लड प्रेशर के लिए गिलोय
हृदय रोग और ब्लड प्रेशर को नियन्त्रिक करने के लिए गिलोय लाभदायक होता है। इसके नियमित सेवन से हृदय सबंधी रोगों में लाभ मिलता है।
मधुमेह में गिलोय का लाभ
मधुमेह रोग में भी गिलोय का लाभ होता है। लो डायबिटीज वाले व्यक्तियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए या फिर चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
गिलोय का उपयोग पेट दर्द के लिए
यदि आप अक्सर पेट दर्द से परेशान रहते हैं तो पांच से छह पत्तों का रस निकाल लें और इसका सेवन शहद के साथ करें। इससे आपके पेट के कृमि भी दूर होंगे और पेट दर्द में राहत मिलेगी।
गिलोय के अन्य लाभ
- मस्तिष्क से सबंधित बिमारियों और स्मरण शक्ति के विकास के लिए गिलोय लाभदायक हो सकती है।
- पेट से सबंधित बिमारियों के उपचार के लिए गिलोय सहायक हो सकती है।
- गिलोय के सेवन से गुप्त रोगों के उपचार में सहायता मिलती है, इसके लिए किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह लेवें।
- रक्त से सबंधित व्याधियों के लिए गिलोय का सेवन लाभदायक हैं।
- त्रिफला के साथ गिलोय का नित्य सेवन करने से पुराना कब्ज दूर होता है।
- मूत्र सबंधी विकारों में गिलोय लाभदायक होती है।
- गिलोय के सेवन से शरीर में रक्त बढ़ता है।
- गिलोय के रस का नित्य सेवन करने से स्मरण शक्ति में इजाफा होता है और यह एक तरह से मस्तिष्क के लिए टॉनिक का काम करता है|
- शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाता है।
- खाँसी, मलेरिया, शीत ज्वर (विषाणुक संक्रमण) में इसका उपयोग लाभदायक होता है।
- गिलोय के सेवन से रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रण में रखा जा सकता है।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।
- गिलोय के सेवन से त्वचा जवान बनी रहती है और त्वचा के संक्रमण दूर होते हैं।
- कुष्ठ रोगों में इसका सेवन लाभकारी होता है।
- गिलोय का सेवन लिवर की देखभाल के लिए लाभदायक होता है।
- गिलोय शरीर के विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में लाभदायी होता है।
- पीलिया में इसका उपयोग किया जाता है।
- गठिया और अन्य जोड़ों के दर्द में इसका सेवन लाभदायक होता है।
- हाई कोलेस्ट्रॉल की रोकथाम में उपयोगी। शुगर के मरीजों को इससे परहेज करना चाहिए या फिर डॉक्टर की राय लेनी चाहिए।
- गिलोय के रस को शहद के साथ सेवन करने से पेट से जुड़े रोग ठीक होते हैं
- राजयक्ष्मा रोग (Tuberculosis) में लाभ मिलता है।
- शरीर की इम्युनिटी को बढाती है |
- शरीर की सुजन कम करने में लाभकारी होती है
- गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, हृदयरोगनाशक ,शोधनाशक और लीवर टॉनिक भी है।
- गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।
- गिलोय गुर्दे और लीवर के सारे विषाक्त पदार्थों को दूर करता है।
- गिलोय के तने को तुलसी, पपीते के पत्ते, एलोवेरा और अनार के रस के साथ जूस बनाकर पीने से डेंगू रोग में सुधार होता है।
- इसके रस का सेवन करने से खून की कमी दूर होती है| साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है| यह कोलेस्ट्रोल (Cholesterol) कम करती है|
- गिलोय का पत्ता पीलिया रोग में बहुत ही फायदेमंद होता है। 1 चम्मच गिलोय, 1 चम्मच शहद और त्रिफला को मिलकर खाने से पीलिया जैसा रोग दूर हो सकता है।
- गिलोय के रस को शहद के साथ लेने से शारीरिक कमज़ोरी दूर होती है|
- गिलोय में एंटी-पाइरेटिक कम्पाउंड होता है जो क्रोनिक बुखार से बचाता है।
- गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन को काबू में लाया जा सकता है।
गिलोय का उपयोग कब नहीं किया जाना चाहिए
वैसे तो गिलोय एक आयुर्वेदिक हर्ब होती है जिसके सेवन से कोई हानि नहीं होती है, फिर भी निम्न अवस्थाओं में गिलोय का सेवन नहीं करे अथवा चिकित्सक से संपर्क करें।
गिलोय का सेवन निश्चित मात्रा से अधिक नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है।
गर्भावस्था के दौरान भी गिलोय का सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
यदि आपका ब्लड शुगर कम है तो भी आप गिलोय का सेवन नहीं करें क्योंकि गिलोय के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर और अधिक कम हो जाता है।
छोटे शिशु को गिलोय देने से परहेज करें या चिकित्सक की सलाह लें।
गिलोय का सेवन निश्चित मात्रा से अधिक नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है।
गर्भावस्था के दौरान भी गिलोय का सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
यदि आपका ब्लड शुगर कम है तो भी आप गिलोय का सेवन नहीं करें क्योंकि गिलोय के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर और अधिक कम हो जाता है।
छोटे शिशु को गिलोय देने से परहेज करें या चिकित्सक की सलाह लें।
गिलोय की तासीर
गिलोय की तासीर गर्म होती है। इसका सेवन सर्दियों में करना अत्यंत ही लाभदायक होती है। गर्मियों में चिकित्सक की सलाह के उपरांत इसका सेवन हितकर होता है।
क्या नीम पर चढ़ी गिलोय ज्यादा लाभदायक होती है
हाँ, गिलोय जिस वृक्ष पर चढ़ती है उसके गुणों का समावेश अपने में कर लेती है। नीम भी एंटी बेक्टेरियल, एंटी फंगल होता है और जब इस पर गिलोय चढ़ जाती है तो मानिये सोने पर सुहागा।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं इस ब्लॉग पर रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों और टिप्स यथा आयुर्वेद, हेल्थ, स्वास्थ्य टिप्स, पतंजलि आयुर्वेद, झंडू, डाबर, बैद्यनाथ, स्किन केयर आदि ओषधियों पर लेख लिखती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |