तिलकुटा चौथ की कहानी संकट चतुर्थी, माही चौथ कहानी Tilkuta Chouth Ki Kahani

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तिलकुटा चौथ संकट चौथ माही चौथ : कथा सुनने की सामग्री
  • गुड़
  • तिल
  • गणेश जी
  • चौथ माता
  • एक छोटा सा आसन
  • एक तांबे का कलश पानी से भरा हुआ
  • दक्षिणा सामर्थ्यानुसार
  • वस्त्र

तिलकुटा चौथ की कहानी/संकट चतुर्थी की कहानी /माही चौथ की कहानी

तिलकुटा चौथ की कहानी संकट चतुर्थी, माही चौथ कहानी Tilkuta Chouth Ki Kahani

 
Tilkuta Chouth Ki Kahani : एक बार एक गांव में दो भाई रहते थे बड़ा भाई बहुत ही अमीर था और छोटा भाई बहुत ही गरीब था छोटे भाई की पत्नी बड़े भाई के घर काम करने जाती थी बदले में बड़े भाई की पत्नी उसे थोड़ा सा खाना और पुराने वस्त्र दे देती थी जिनसे उनके घर का गुजारा चलता था देवरानी जब उनके घर पर आटा, छानती थी तो वह आटा छानने का कपड़ा अपने घर लाकर धो लेती थी और उस पानी को अपने पति को पिला देती थी वह बचा हुआ खाना अपने बच्चों को दे देती थी 1 दिन जेठानी ने उपवास किया हुआ था और किसी ने भी खाना नहीं खा या था तो उसने अपनी देवरानी को खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया और वह आटे का कपड़ा भी नहीं ला पाई क्योंकि जेठानी ने देख लिया था कि वह आटे का कपड़ा ले जाती थी इसलिए उसने न उ स से कहा कि वो कपड़ा धोकरके जाए इसलिए उस दिन आटे के कपड़े को नहीं ला पाई और उसके पति को जो पानी पिलाती थी आटा मिला हुआ पानी पिला ती थी वह भी नहीं पीला पाई जब पति ने कहा कि लाओ मुझे आटा मिला हुआ पानी दो तो उसने कहा कि आज वह नहीं दे पाएगी क्योंकि जेठानी ने वही रख लिया है तो पति को बहुत ही गुस्सा आया कि तुम पूरा दिन उनके घर काम करती हैं और बदले में सिर्फ आटे का कपड़ा और बचा हुआ खाना लेकर आती है फिर भी उसने वह कपड़ा नहीं दिया तो वहां जाती ही क्यो हो और उसने अपनी पत्नी को बहुत ही ज्यादा मारा ज्यादा परेशान होने की वजह से उसकी वही आंख लग गई 
 
और गणेश जी गणेश जी करते हुए ही उसे नींद आ गई सपने में उसे गणेश जी आए और कहा बोलो मुझे शौच लगी है मैं कहां करूं तो देवनानी ने कहा कि पूरा घर पड़ा खाली पड़ा है मेरे पास तो कुछ भी नहीं कहीं पर भी कर लो फिर उसने कहा कि पू छु कहां पर है तो देवरानी को गुस्सा आया हुआ था वह तो उसने गुस्से में कहा मेरे सर पर और कहां यह सु नकर के गणेश जी अंतर्धान हो गए जब आंख खुली तो उसने देखा कि उसने कहा था गणेश जी को शौच करने के लिए वहां हीरे जवाहरात के ढेर लगे हैं और जहां उन्होंने अपने सीर का नाम लिया था वहां जगमग जगमग गहने चमक रहे थे

वह बहुत ही खुश हुई और वह अपनी जेठानी के यहां काम पर नहीं गई जेठानी ने अपने बच्चों को कहा कि जाओ आज तुम्हारी चाची काम पर कैसे नहीं आई जाओ उसे बुलाकर लाओ गए तो उन्होंने देखा कि उनका घर हीरे जेवरात से भरा पड़ा है और सारी चीजें चमक रही है नए बर्तन नए वस्त्र और बहुत सारे पकवानों से घर भरा पड़ा था उन्होंने वापस जाकर अपनी मां से कहा कि चाची तो बहुत पैसे वाली हो गई है और वह अपने यहां काम करने नहीं आएगी जेठानी सुन कर के आश्चर्यचकित रह गई और उसने सोचा कि यह बच्चे ऐसे ही कह रहे हैं और उसने खुद ने वहां जाकर देखा तो वाकई में देवरानी का घर तो बहुत ही ज्यादा चमक रहा था 

सभी जगह हीरे मोती जवारात दिखाई दे रहे थे जब उसने पूछा कि यह क्या हुआ तो देवनानी ने रात वाली सारी कहानी बता दी जेठानी धन की भुखी सारी की सारी कहानी अपने पति को बताने लगी और कहा कि आप भी मेरी पिटाई करो और पति ने कहा कि ऐसा मत करो ऐसा ऐसी बात नहीं है लेकिन जेठानी नहीं मानी उसने कहा कि नहीं आप मुझे मारो जब उसको मारना शुरू किया तो वह गणेश जी गणेश जी कहते-कहते वह बेहोश हो गई और गणेश जी का नाम लेते हुए उसे भी नींद आ गई रात को जब गणेश जी उसके सपने में आए तो गणेश जी ने कहा कि मुझे शौच लगी है मैं कहां जाऊं जीठानी ने कहा देवरानी का तो छोटा सा ही घर था मेरा तो बहुत बड़ा घर है आपका मन करे वही कर लो तो उन्होंने वैसा ही किया।
उन्होंने कहा अब पूछूं कहां तो जिठानी बोली की मेरे सर पर पोंछ ऐसा सुन के गणेश जी अंतर्धान हो गए सुबह जब जेठानी की आंख खुली तो बहुत ही बदबू आ ई देखा तो पूरा घर मे गंदगी फैलाई प ड़ी थी उसने कहा है गणेश जी महाराज यह क्या किया आपने मेरी देवरानी को तो बहुत सारा धन दिया और मेरे को यह कूड़ा करकट दिया गणेश जी ने कहा कि उसने तो अपने पति धर्म को निभाते निभाते मार खा ई और तुमने धन की भूखी मार खाई इसलिए ऐसा हुआ तो जेठानी बोली जी महाराज गलती हो गई गणेश जी ने कहा कि मैं तो तभी यह सब कुछ साफ करूंगा जब तुम अपने धन में से आधा धन अपनी देवरानी को दे दोगी जेठानी ने कहा ठीक है मैं आधा धन अपनी देवरानी को दे दूंगी और उसने वैसा ही किया है भगवान गणेश जी जैसे देवरानी को दिया वैसे सबको दे जैसे जेठानी को दिया वैसा किसी को ना दे कहानी सुनने वाले को सभी को अपना आशीर्वाद प्रदान करें जय गणेश जी महाराज

तिलकुटा चौथ माही चौथ  संकट चतुर्थी की कथा

बहुत समय पहले की बात है एक गांव था और उसमें एक परिवार रहता था उस परिवार में पति पत्नी रहते थे उनके कोई संतान नहीं थी एक दिन जब स्त्री अपने घर में कुछ कार्य कर रही थी तो उसने देखा बहुत सारी स्त्रियां कहीं पूजा कर रहे हैं तो वह वहां स्त्रियों के पास गई कि आप क्या कर रहे हो तो उन स्त्रियों ने कहा कि हम तो तिलकुटा चौथ माता की पूजा कर रही हैं उनकी कहानी सुन रही हैं तो वहां उसने पूछा कि यह है क्या इससे क्या होता है तो उन्होंने बताया कि इससे घर में समृद्धि आती है सुख आता है और चौथ माता की पूजन से संतान की प्राप्ति होती है तो उसने कहा ठीक है मैं भी आपके साथ यह चौथ की कथा सुनती हूं और उसने भी चौथ माता की कहानी सुनी व्रत किया और कहां की है चौथ माता मैं आपके सवा किलो का तिलकुटा चढ़ आऊंगी अगर मैं गर्भवती हो जाऊं तो थोड़े ही समय पश्चात वह स्त्री गर्भवती हो गई तो उसने बोला है चौथ माता अगर मेरे पुत्र प्राप्ति हो जाए तो मैं आपका सवा 5 किलो तिलकुटा च ढ़ा उगी थोड़े दिनों पश्चात उसके पुत्र की प्राप्ति भी हो गई ऐसे ही करके स्त्री की मनोकामना पूर्ण हो गई लेकिन उसने चौथ माता का तिलकुटा नहीं बांटा तिलकुटा नहीं बांटा फिर उसने कहा कि हे चौथ माता मेरे पुत्र की शादी हो जाए तो मैं सवा 11 किलो का तिलकुट चढ़ आऊंगी और उसके पुत्र की शादी फिक्स हो गई।

शादी के दिन चौथ माता ने सोचा कि अगर ऐसे ही बोलती रहेगी और प्रसाद में कुछ भी नहीं किया तो कोई भी मुझे नहीं मानेगा कलयुग में क्यों ना इसको कुछ सबक सिखाया जाए हर बार कुछ ना कुछ बोल देती है लेकिन वह पूर्ण नहीं करती हैं इसलिए जिस दिन उसके बेटे की शादी थी उसी दिन आधे फेरों के पश्चात एक बहुत ही तेज तूफान आया और उस लड़के को उठाकर ले गया और एक पीपल के पेड़ के ऊपर बिठा दिया तो उनका विवाह अधूरा ही रह गया और वहां पर सभी अपने उस लड़के को ढूंढने लगे लेकिन किसी को भी वह नहीं मिला ज ब उस लड़की की पहली गणगौर आई तो जब वह लड़की गणगौर माता की पूजा करने के लिए पीपल के पेड़ पर गई तो जैसे ही वह पूजा करने के लिए बैठी तो वहां से ऊपर से आवाज आई की आ जाओ मेरी आधी दुल्हन लड़की बहुत ही परेशान हो गई रोज-रोज यही होने लगा। 

जब भी वह पीपल के पेड़ के ऊपर पूजा करती तो वह लड़का रोज उसे आवाज लगाता आ जाओ मेरी आधी शादी की हुई दुल्हन यह सुन सुनकर वह लड़की बहुत ही बीमार पड़ गई और पतली हो गई तो एक बार उसकी मां ने उससे पूछा कि बेटी मैं तुझे अच्छा खिलाती हूं अच्छी तरीके से रखती हूं फिर भी तुम इतनी दुबली पतली होती जा रही हो तो उसने वह पूरी बात अपनी मां को बताई और कहा कि मैं यही बात है जिसकी वजह से मैं परेशान हूं उसकी मां उसके साथ पीपल के पेड़ पर गई और कहां की है भगवान यह क्या है मेरी बेटी को कौन परेशान कर रहा है तो वहां पर बैठा वह लड़का बोला कि मेरी मां हमेशा तिलकुटा बोल देती थी लेकिन कभी थी उसने तिलकुट को प्रसाद के रूप में किसी को नहीं बांटा था इसलिए चौथ माता उनसे नाराज है और उन्होंने मुझे शादी के मंडप से उठा लिया अब आप ही कुछ कीजिए यह सुनकर लड़की की मां बहुत ही प्रसन्न हुई कि आखिरकार उन्हें अपनी बेटी का दूल्हा मिल ही गया और घर आकर उसने सवा 100 किलो का तिलकुटा किया और पूरे गांव में बटवाया और चौथ माता खुश हो गई है और उस दूल्हे को नीचे उतार दिया और उनकी शादी करवा दी हे चौथ माता माता जैसे दुल्हन की मां को खुश किया वैसे ही सबको करना सब पर अपना आशीर्वाद बनाए रखना चौथ माता आपकी जय हो जय श्री गणेश
 
 

तिलकुटा चौथ की कहानी, संकट चतुर्थी की कहानी, माही चौथ की कहानी Tilkuta Chouth Ki Kahani, Sankat Chaturthi Ki Kahani Mahi Chouth Ki Kahani

एक गाँव में एक देवरानी और जेठानी रहती थीं। देवरानी गरीब थी और उसकी जेठानी बहुत अमीर थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ियाँ काटकर बेचता था और अक्सर बीमार ही रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती थी और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसे दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार का गुजारा होता था।

एक बार माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। पाँच रुपए का तिल और गुड़ लेकर उसने तिलकुट्टा बनाया। उसने पूजा की और तिल चौथ की कथा भी सुनी। फिर उसने तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा कि चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा खाएगी और उसके बाद ही कुछ भोजन करेगी। तिलकुटा चौथ की कहानी को सुनकर वह अपनी देवरानी,  जेठानी के घर काम करने गई।

खाना बनाकर उसने जब बच्चों को कहा की वे खाना खा ले तो उन्होंने उसे मना कर दिया। इसके बाद जब उसने जेठ जी से पूछा तो उन्होंने भी मना कर दिया की वह उसको खाना नहीं दे सकता है क्योंकि जेठजी ने और बच्चों ने अभी खाना नहीं खाया है. सभी के खाने के बाद ही उसे खाना मिलेगा। इसके बाद जेठानी ने कहा की उसे अगले दिन खाना बचने के उपरान्त मिलेगा।

देवरानी इस पर उदास होकर घर पर लौट आई। उसके बच्चे और पति उसकी राह देख रहे थे की वह आते हुए उनके लिए खाना लेकर आयेगी, लेकिन वह खाली हाथ ही लौट आई। उसका पति और बच्चे आस लगाये बैठे थे की आज तो त्योंहार है तो उनको अच्छा खाना मिलेगा। अपनी माँ को खाली हाथ देखकर उसके बच्चे रोने लगे और उसके पति ने क्रोध में आकर उसकी पिटाई कर दी। उसके पति ने गुस्से में कहा की वह पूरे दिन उनके घर पर काम करती है और वह क्या रोटियाँ भी नहीं लेकर आ सकती है। उसके पति ने गुस्से में आकर कपड़े धोने के धोवने से उसे पीटा।

इस पर वह स्त्री बहुत उदास हो गई और वह भूखी ही पानी पीकर सो गई। सपने में उसके गणेश जी आए और कहने लगे की धोवने मारी, पाटे मारी, सो रही है या जाग रही है। वह बोली की कुछ सो रहे हैं और कुछ जाग रहे हैं। गणेश जी ने कहा की उनको भूख लगी है, उनको कुछ खाने के लिए दे?
इसपर देवरानी ने कहा की उसके घर पर तो कुछ भी खाने के लिए कुछ भी नहीं है। तिलकुटा चौथ का तिलकुटा छींके में रखा है गणेश जी ही खा लें। इसके बाद गणेश जी ने तिलकुटा खा लिया और कहा की "धोवने मारी ,पाटे मारी , निमटाई लगी है ! कहाँ निमटे"

देवरानी ने कहा की खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकते हैं, जहाँ इच्छा हो वहाँ निमट लो, जहाँ आपका मन करे। फिर गणेश जी बोले “अब कहाँ पोंछू" इस पर देवरानी को गुस्सा आ गया और वह बोली की तुम मुझे कब से परेशान कर रहे हो, मेरे माथे पर पौंछ दो. इसके बाद देवरानी सो गई। सुबह उसने देखा की उसकी झोपड़ी हीरे मोतियों से भरी पड़ी है। उसके माथे पर गणेश जी पोंछनी करके गए थे वहां पर हीरे और मोती जगमगा रहे थे। इस दिन वह जेठानी के घर पर काम करने नहीं गई।

जेठानी के बच्चे उसे बुलाने गए तो देवरानी ने मना कर दिया. बच्चों ने जाकर अपनी माँ को सारी बात बताई तो जेठानी देवरानी के घर पर आई और बोली की उसके घर पर इतनी सारी दौलत कैसे आई ? इस पर देवरानी ने सारी बात अपने जेठानी को बताई।  इसके बाद जेठानी अपने घर पर लौट गई और अपने पति को पूरी बात बताने के बाद कहने लगी की आप भी मुझे धोवने और पाटे से मारो। जेठानी के पति ने कहा की उसने कभी भी उस पर हाथ नहीं उठाया है, वह भला कैसे उसे मार सकता है। लेकिन अपनी पत्नी के जिद करने पर उसने भी अपनी पत्नी को धोवने और पाटे से मारा।
इसके बाद जेठानी ने घी डालकर चूरमा बनाया और उसे छींके में रख दिया. रात को चौथ विनायक महाराज जी उसके सपने में आए और उससे कहने लगे की उनको भूख लगी है, वे क्या खाएं. जेठानी ने कहा की छींके में देसी घी का चूरमा रखा है गणेश जी उसे खा लें.
गणेश जी ने इसके बाद कहा की अब वे निपटे कहाँ ? इस पर जेठानी ने कहा की उनका बहुत बड़ा मकान हैं, जहा जी चाहे निपट लें. इसके बाद गणेश जी ने कहा की पोंछे कहाँ ? जेठानी ने ने कहा की पहले चूल्हे के नीचे गाडी हुयी मोहरो की हांडी औरताक में रखी सुई की भी पांति करो। इस प्रकार गणेश जी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया को समेंत लिया।

हे गणेश जी महाराज आपने जैसे देवरानी पर कृपा की वैसे ही हम सब पर कृपा करना। कथा कहने वाले, सुनने वाले, हुंकार भरने वाले सभी पर कृपा करना लेकिन जैसी सजा आपने जेठानी को दी वैसी किसी को भी मत देना। जय गणेश जी महाराज जी की।
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1 टिप्पणी

  1. Sharwan sharma