राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी लिरिक्स Ram Brahm Chinmay Abinashi Lyrics

राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी लिरिक्स Ram Brahm Chinmay Abinashi Lyrics

 
राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी लिरिक्स Ram Brahm Chinmay Abinashi Lyrics

राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी,
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू,
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद,
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद,
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी,
सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं,
मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया,
फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा,
आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी,
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही,
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा,
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा,
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताई,
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्‍या दोष लगाइ,
राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी
raam brahm chinamay abinaasee. sarb rahit sab ur pur baasee,
jagat prakaasy prakaasak raamoo. maayaadhees gyaan gun dhaamoo,
byaapak brahm niranjan nirgun bigat binod,
so aj prem bhagati bas kausalya ken god,
eesvar ans jeev abinaasee. chetan amal sahaj sukh raasee,
so maayaabas bhayu gosaeen. bandhyo keer marakat kee naeen,
main aru mor tor tain maaya. jehin bas keenhe jeev nikaaya,
phirat sada maaya kar prera. kaal karm subhaav gun ghera,
aakar chaari lachchh chauraasee. joni bhramat yah jiv abinaasee,
kabahunk kari karuna nar dehee. det ees binu hetu sanehee,
baden bhaag maanush tanu paava. sur durlabh sab granthanhi gaava,
saadhan dhaam mochchh kar dvaara. pai na jehin paralok sanvaara,
so paratr dukh paavi sir dhuni dhuni pachhitaee,
kaalahi karmahi eesvarahi mith‍ya dosh lagai,




राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥
श्री रामचन्द्रजी ब्रह्म हैं, चिन्मय (ज्ञानस्वरूप) हैं, अविनाशी हैं, सबसे रहित और सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करने वाले हैं॥

जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू॥
यह जगत प्रकाश्य है और श्री रामचन्द्रजी इसके प्रकाशक हैं। वे माया के स्वामी और ज्ञान तथा गुणों के धाम हैं।

ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद॥198॥

भावार्थ:-जो सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वही प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में (खेल रहे) हैं॥198॥

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥
जीव ईश्वर का अंश है। (अतएव) वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥1॥ 

सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥
हे गोसाईं ! वह माया के वशीभूत होकर तोते और वानर की भाँति अपने आप ही बँध गया।

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥
मैं और मेरा, तू और तेरा- यही माया है, जिसने समस्त जीवों को वश में कर रखा है॥

फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥
माया की प्रेरणा से काल, कर्म, स्वभाव और गुण से घिरा हुआ (इनके वश में हुआ) यह सदा भटकता रहता है।

आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी॥2॥
यह अविनाशी जीव (अण्डज, स्वेदज, जरायुज और उद्भिज्ज) चार खानों और चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाता रहता है॥2॥

कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही॥
बिना ही कारण स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके इसे मनुष्य का शरीर देते हैं॥3॥

बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥

भावार्थ:-बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया,॥

सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताई।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्‍या दोष लगाइ॥43॥

भावार्थ:-वह परलोक में दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा (अपना दोष न समझकर) काल पर, कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है॥43॥ 

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